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भारत माँ की रक्षा करने ,
सीमा पर जाना तुम ।
दुश्मनों को मार भगाना ,
पीठ नहीं दिखलाना तुम ।
अपनी बाहों में कसकर ,
मुझको गले लगाना तुम ।
विदा करो हँसकर मुझको ,
आँख में आँसू न लाना तुम ।
सूरज को जब अर्ध्य करूँ तो ,
अपना हाथ लगाना तुम ।
रात में चन्दा को निहारूँ ,
अपनी झलक दिखाना तुम ।
फूलों का दीदार करूँ जब ,
यादों में महक जाना तुम ।
नींद अगर मुझको आये तो ,
ख्वाबों में मिलने आना तुम ।
दर्पण देख शृंगार करूँ जब ,
बिंदिया में छबि दिखाना तुम ।
माटी का कर्ज चुकाकर ,
पास मेरे लौट आना तुम ।
पास मेरे लौट आना तुम ।।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग ,छत्तीसगढ़
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