Friday, 19 June 2020

सजल - 15

सूना  है वह जीवन जिसमें राग नहीं है
झूठा है वह  यौवन जिसमें आग नहीं है
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घुल जाने  दो जीवन में खुशियों के सब रंग
फीका है वह फागुन जिसमें फ़ाग नहीं है
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जीवन बीता है सदा  एड़ियां रगड़ते हुए
 प्रारब्ध में  रोटी तो कभी साग नहीं है
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 खतरे में  पड़ा है आज  उसका अस्तित्व 
  वह डसने वाला  जहरीला नाग नहीं है
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लालसा के कीचड़  में आकंठ डूबे हैं
चेहरों के  मुखौटे भी बेदाग नहीं है 
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सींच कर इसकी हरियाली बचाये रखना 
हृदय पुष्प  खिले न जहाँ वो बाग नहीं है 
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उतरना  ही था कभी बर्तन के मुलम्मे को 
जीवन की हकीकत है सब्जबाग नहीं है
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स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़



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