थककर हो जाऊँ जब चूर ।
अवसादों के घने अंधेरे ,
कर दे राहों को अवरूद्ध ।
ढूँढूँगी जब कोई सहारा
हाथ न अपना बढ़ाओगे ,
तुम फिर याद आओगे ।।
धोखा पाकर अपनों से ,
अधूरे छलते सपनों से ।
पीड़ा में रो रहा अंतर्मन ,
मेघों सा हो रहा सघन ।
दर्द से बोझिल इन आँखों से ,
आँसू बन न बरस पाओगे ।
तुम फिर याद आओगे ।।
कंकड़ मिले निवालों में ,
नमक पड़े जब छालों में ।
काँटे चुभ जायेंगे पांवों में ,
चोट लगे फिर घावों में ।
तन्हाई भरे लम्बे सफर में ,
साथ मेरे न चल पाओगे ।
तुम फिर याद आओगे।।।
क्षत - विक्षत हुए विश्वासों से ,
अन्तर्द्वन्द्व में घुटती साँसों से ।
पास न कोई सुख होगा ,
साथ में केवल दुःख होगा ।
विरहन के इस दग्ध हृदय में ,
नेह नीर न बरसाओगे ।
तुम फिर याद आओगे ।।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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