Monday, 8 June 2020

गीत 3

कोकिल कंठी कूक उठी है , मौसम हुआ सुहाना है ।
मन के पावन तटबन्धों पर , सुंदर सपन सजाना है ।।

झंकृत हो उठी देह - तन्त्री , अधरों लिखा फसाना है ।
प्रेमभाव के अनुबंधों पर , हिय का लुटा खजाना है ।।

ख्वाबों के उड़ते पंछी ने , पाया नया ठिकाना है ।
प्रेमपूरित सरल हृदय में , अनुपम गेह बसाना है ।।

पद्मपुंज के सिंहासन पर , साजन तुम्हें बिठाना है ।
मिलने को आतुर नयनों को , तेरी राह बिछाना है ।।

उमड़ - घुमड़ रहे मोद अम्बुद , प्रेम धार बरसाना है ।।
पावक सम पावन बन्धन को , सातों जनम निभाना है ।।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

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