Thursday, 11 June 2020

सुरता

सुरता
रिमझिम बरसात म , तोर सुरता आथे
मुंधियारी रतिहा हा अड़बड़ डरवाथे ।
कुहू कुहू कोइली के जियरा भरमाथे
मया के आगी म  तन भुर भुर जर जाथे ।।

सुन्ना सुन्ना लागय गली खोर अउ कुरिया
आँखि  ले आंसू ह मोर रहि रहि चुचुवाथे ।
काम बुता म एकोच कन मन नई लागय
तोर रद्दा देखत देखत मा मोर बेरा पहाथे ।।

बाहरत पोंछत तोरे धियान करत रहिथव
बेचैन जिवरा द्वारी म नजर  गड़ियाथे ।
साज सिंगार करके बइठे हंव तोर अगोरा 
 घेरी बेरी दरपन म मुँह देखत लाज आथे ।।

तोर संग पाय के सेतिर  तरसत हावव
मोर मन के मैना तोर तीर उड़ि उड़ि जाथे ।
 कमाय खाय के मजबूरी म दुरिहा होगेंन ,
  मया के मछरी ह पानी बिन  छटपटाथे ।।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़




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