रिमझिम बरसात म , तोर सुरता आथे
मुंधियारी रतिहा हा अड़बड़ डरवाथे ।
कुहू कुहू कोइली के जियरा भरमाथे
मया के आगी म तन भुर भुर जर जाथे ।।
सुन्ना सुन्ना लागय गली खोर अउ कुरिया
आँखि ले आंसू ह मोर रहि रहि चुचुवाथे ।
काम बुता म एकोच कन मन नई लागय
तोर रद्दा देखत देखत मा मोर बेरा पहाथे ।।
बाहरत पोंछत तोरे धियान करत रहिथव
बेचैन जिवरा द्वारी म नजर गड़ियाथे ।
साज सिंगार करके बइठे हंव तोर अगोरा
घेरी बेरी दरपन म मुँह देखत लाज आथे ।।
तोर संग पाय के सेतिर तरसत हावव
मोर मन के मैना तोर तीर उड़ि उड़ि जाथे ।
कमाय खाय के मजबूरी म दुरिहा होगेंन ,
मया के मछरी ह पानी बिन छटपटाथे ।।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
No comments:
Post a Comment