तन - मन रंग गया स्नेह और प्यार में ।
मधुरिम भावों से पुलकित रोम - रोम _
जीवन यह बह गया प्रीत की धार में ।।
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जीवन सुमन खिल जाते हैं खार में ,
जीत का सूत्र मिला जीवन के सार में ।
मदमाते सौरभ से छलक उठा यौवन_
उमंगों की लहर उठीं जीवन के ज्वार में ।।
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भाव सारे बह गये अश्कों की धार में ,
मनमीत से मिलन झील के उस पार में ।
दिल में बसा ली छबि प्यारे सजन की_
बाकी अब क्या रहा नश्वर संसार में ।।
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बदलाव न कर रीतियों के आकार में ,
रिश्तों को दाँव पर न लगा अहंकार में ।
अधूरा नहीं है सौंदर्य उपमान बिन_
आभूषित वनिता लाज के अलंकार में ।।
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स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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