समांत - अ अती
पदांत - है
मात्रा भार - 20
मात्रा पतन - **
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स्त्री है नदी ,वह अविरल बहती है
संस्कृति को साथ लेकर चलती है
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पालती और दुलारती है सबको
सीने में उसके ममता पलती है
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देख नहीं सकती किसी को दर्द में
पीड़ा में भी वह हँसती रहती है
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त्याग तप धैर्य की मूरत है नारी
परिवार के लिए सब दुख सहती है
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अपने बच्चों में भेद नहीं करती
अनहोनी होने से वह डरती है
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स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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