Wednesday, 24 June 2020

दोहे ( प्रेम )

मीरा डूबी प्रेम में , मोहन की कर भक्ति ।
डूबी नैया तार दे , उनमें इतनी शक्ति ।।
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गहरी नदिया प्रेम है , उतरे जो हो पार ।
उथला मानस पंक सम , जीना होगा भार ।।
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देना सब कुछ प्रेम है , लेना जाओ भूल ।
खुशबू अपनी टूटकर , दे जाता है फूल  ।।
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पौध उगे हर बाग में , मिले फूल या खार ।
ढूँढ रहा है  रात दिन , प्रेम खुशी आगार ।।
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 दम्भ , काम को त्याग कर , जप ले प्रभु का नाम ।
प्रेम भाव की राह में ,  बनते बिगड़े काम ।।
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स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़


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