Tuesday, 30 June 2020

गीत 9

बिन तेरे मेरी शाम नहीं 
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मन - मंदिर के देव तुम्हीं हो ,
जीवन का पाथेय तुम्हीं हो ,
आराधन , पूजन ,व्रत सारा ,
करती हूँ  नित ध्यान तुम्हारा ।
याद तुम्हें ही करती  हूँ मैं ,
और मुझे कोई काम नहीं ।
बिन तेरे मेरी  शाम नहीं ।।

हृदवीना के तार तुम्हीं  हो ,
मधुरिम सुर शृंगार तुम्हीं हो ,
पावन गीत सजे अधरों पर ,
स्वर्ण-रश्मि शबनम-कतरों पर ।
मैं चल पड़ी अनुराग-पथ पर,
अब लक्ष्य-पूर्व आराम नहीं ।
बिन तेरे मेरी शाम नहीं ।।

मिल जाए यदि प्यार तुम्हारा ,
खिल जाए हिय-उपवन प्यारा ।
सुरभित पुलकित होगा जीवन ,
नाच उठे यह मन - बंजारा ।
जगह बना लूँ दिल में तेरे ,
है इससे बड़ा मुकाम नहीं ।।
बिन तेरे मेरी शाम नहीं ।।

 - डॉ. दीक्षा चौबे





 

Wednesday, 24 June 2020

सजल

सजल
समां त - आने
पदांत -  दो
मात्राभार - 16
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कोयल को खुलकर गाने दो
मन की बगिया मुस्काने दो
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 अंकुर फूटेंगे  निश्चित ही
बीजों को  जरा भिगाने दो
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खोल दो घर की किवाड़ों को
सूरज को  भीतर आने दो
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कल तुझ पर ही बरसेंगे वे
 नेकी के बादल छाने दो
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सीने की जलन बुझ जायेगी
आँखों को नीर बहाने दो ।
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काँटों से डरकर मत बैठो
फूलों को चुनकर लाने दो
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 महकेगा अपना घर - आँगन
फूल  खुशियों के खिलाने दो 
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स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग ,छत्तीसगढ़

दोहे ( प्रेम )

मीरा डूबी प्रेम में , मोहन की कर भक्ति ।
डूबी नैया तार दे , उनमें इतनी शक्ति ।।
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गहरी नदिया प्रेम है , उतरे जो हो पार ।
उथला मानस पंक सम , जीना होगा भार ।।
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देना सब कुछ प्रेम है , लेना जाओ भूल ।
खुशबू अपनी टूटकर , दे जाता है फूल  ।।
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पौध उगे हर बाग में , मिले फूल या खार ।
ढूँढ रहा है  रात दिन , प्रेम खुशी आगार ।।
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 दम्भ , काम को त्याग कर , जप ले प्रभु का नाम ।
प्रेम भाव की राह में ,  बनते बिगड़े काम ।।
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स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़


Friday, 19 June 2020

सजल 16

सजल
समांत -  इत
पदांत - कर देना
मात्राभार - 26

हृदय धरा पर बीज स्नेह का रोपित कर देना
 मनभावों को प्रेम खाद से पोषित कर देना 

लुप्त हो रही है रिश्तों की जो पावन फसलें,
उनको भी सद्भाव बूंद से जीवित कर देना 

सूने - सूने घर आँगन में सुरभित हो खुशियाँ,
  बच्चों की किलकारी से फिर गुंजित कर देना।

अंबर सम अपने अंतस को विस्तारित रखना,
 राग द्वेष छल लोभ कपट को लोपित कर देना।

देख निर्धनों की पीड़ा को मन यह रोता है,
 न्याय दिलाकर इन लोगों को पुलकित कर देना।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

सजल - 15

सूना  है वह जीवन जिसमें राग नहीं है
झूठा है वह  यौवन जिसमें आग नहीं है
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घुल जाने  दो जीवन में खुशियों के सब रंग
फीका है वह फागुन जिसमें फ़ाग नहीं है
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जीवन बीता है सदा  एड़ियां रगड़ते हुए
 प्रारब्ध में  रोटी तो कभी साग नहीं है
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 खतरे में  पड़ा है आज  उसका अस्तित्व 
  वह डसने वाला  जहरीला नाग नहीं है
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लालसा के कीचड़  में आकंठ डूबे हैं
चेहरों के  मुखौटे भी बेदाग नहीं है 
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सींच कर इसकी हरियाली बचाये रखना 
हृदय पुष्प  खिले न जहाँ वो बाग नहीं है 
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उतरना  ही था कभी बर्तन के मुलम्मे को 
जीवन की हकीकत है सब्जबाग नहीं है
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स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़



तुम फिर याद आओगे

जीवन पथ पर चलते - चलते ,
थककर  हो जाऊँ जब चूर ।
अवसादों के घने अंधेरे ,
कर दे राहों को अवरूद्ध ।
ढूँढूँगी  जब कोई सहारा 
हाथ न अपना बढ़ाओगे ,
तुम फिर याद आओगे ।।

धोखा पाकर अपनों से ,
अधूरे छलते सपनों से ।
पीड़ा में रो रहा अंतर्मन ,
मेघों सा हो रहा सघन ।
दर्द से बोझिल इन आँखों से ,
आँसू बन न बरस पाओगे ।
तुम फिर याद आओगे ।।

कंकड़ मिले निवालों में ,
नमक पड़े जब छालों में ।
काँटे चुभ जायेंगे पांवों में ,
चोट लगे फिर  घावों में ।
तन्हाई भरे  लम्बे सफर में ,
साथ मेरे न चल पाओगे ।
तुम फिर याद आओगे।।।

क्षत - विक्षत हुए विश्वासों से ,
अन्तर्द्वन्द्व में घुटती साँसों से ।
पास न कोई सुख होगा ,
साथ में केवल दुःख होगा ।
विरहन के इस दग्ध हृदय में ,
नेह नीर न बरसाओगे ।
तुम फिर याद आओगे ।।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़


Thursday, 18 June 2020

गीत ( छत्तीसगढ़ी )

हमन छत्तीसगढ़िया अन....हमन  छतीसगढिया अन ।।
आनी बानी के फूल खिले हे
कांटा खूंटी अउ कचरा मा
भोरमदेव अउ सिरपुर कस
नगीना जड़े मोर अंचरा मा
कालिदास जिहा लिखिस मेघदूत
हम वो पहाड़ रामगढ़िया अन....।।
हमन छत्तीसगढ़िया अन ..हमन छत्तीसगढ़िया अन ।।

खेती किसानी करके मेंहा
जग के भूख मिटाथव ।
बोहा के अपन खून पसीना
लोहा तको गलाथव ।
भेलई के स्टील प्लांट कस 
अब्बड़ हम जंगरिहा अन...।।
हमन छत्तीसगढ़िया अन...हमन छत्तीसगढ़िया अन ।।

गुरतुर गुरतुर मोर बोली 
गुड़ मा अतेक मिठास कहाँ ।
बर , पीपर ,तरिया नदिया मा
तउरत रथे  बिश्वास  इहाँ  ।
माँ बाप के सेवा करथन
घर मंदिर के गढ़िया अन ...।
हमन छत्तीसगढ़िया अन ...हमन छत्तीसगढ़िया अन ।।

सीधा सादा हमर जिनगी 
पइसा के पीछू नई दौड़न ।
बैर भाव ल कभू नई जानेन
दंगा फसाद म मुड़ नई फोड़न ।
जोर के रखथन हमन सबला
रिश्ता के मान बढ़इया अन ।
हमन छत्तीसगढ़िया अन...हमन छत्तीसगढ़िया  अन ।।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़




Saturday, 13 June 2020

गीत 4

साँसों के मोती गुँथे आशा के तार में ,
तन - मन रंग गया स्नेह और प्यार में ।
मधुरिम भावों से पुलकित रोम - रोम _
जीवन यह बह गया प्रीत की धार में ।।
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जीवन सुमन  खिल जाते हैं खार में ,
जीत का सूत्र  मिला जीवन के सार में ।
मदमाते सौरभ से छलक उठा यौवन_
उमंगों की लहर उठीं जीवन के ज्वार में ।।
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भाव सारे बह गये अश्कों की धार में ,
मनमीत से मिलन  झील के उस पार में  ।
दिल में बसा ली छबि  प्यारे सजन की_
बाकी अब क्या रहा नश्वर संसार में ।।
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बदलाव न कर  रीतियों के आकार में ,
रिश्तों को दाँव पर न लगा अहंकार में ।
अधूरा नहीं  है सौंदर्य उपमान बिन_
आभूषित  वनिता लाज के अलंकार में ।।
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स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़




Thursday, 11 June 2020

सुरता

सुरता
रिमझिम बरसात म , तोर सुरता आथे
मुंधियारी रतिहा हा अड़बड़ डरवाथे ।
कुहू कुहू कोइली के जियरा भरमाथे
मया के आगी म  तन भुर भुर जर जाथे ।।

सुन्ना सुन्ना लागय गली खोर अउ कुरिया
आँखि  ले आंसू ह मोर रहि रहि चुचुवाथे ।
काम बुता म एकोच कन मन नई लागय
तोर रद्दा देखत देखत मा मोर बेरा पहाथे ।।

बाहरत पोंछत तोरे धियान करत रहिथव
बेचैन जिवरा द्वारी म नजर  गड़ियाथे ।
साज सिंगार करके बइठे हंव तोर अगोरा 
 घेरी बेरी दरपन म मुँह देखत लाज आथे ।।

तोर संग पाय के सेतिर  तरसत हावव
मोर मन के मैना तोर तीर उड़ि उड़ि जाथे ।
 कमाय खाय के मजबूरी म दुरिहा होगेंन ,
  मया के मछरी ह पानी बिन  छटपटाथे ।।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़




Wednesday, 10 June 2020

व्यवहार ( लघुकथा)

   बेटे के विदेश चले जाने के बाद मनोरमा ने घर के ऊपरी हिस्से को किराये पर दे दिया था । वृद्धावस्था में घर की देखभाल के साथ कुछ आमदनी भी हो जाती थी । वे अपने - अपने कार्यों में व्यस्त रहते थे , सामान्य बातचीत  का व्यवहार बना रहा । ऊपरवाली सिलाई मशीन का उपयोग करती थी , यह जानकर मनोरमा कभी - कभार  पुराने पेंट के कपड़े को काटकर उससे एक थैला सिलने के लिए  उसे  दे दिया करती थी और वह सिलाई कर वापस कर देती थी । उन्हें रहते चार - पाँच वर्ष हो गए थे पर मनोरमा ने कभी उनका किराया नहीं बढ़ाया था । इस बार कपड़ा देने गई तो  उसकी किराएदार ने मशीन खराब होने की बात कहकर थैला सिलने से इंकार कर दिया था । अगले दिन मनोरमा को मशीन की खड़ - खड़ सुनाई दे गई थी  । 
             इस बार उसने घर का किराया बढ़ा दिया था , जहाँ छल हो वहाँ व्यवहार कैसा ?

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

Monday, 8 June 2020

गीत 3

कोकिल कंठी कूक उठी है , मौसम हुआ सुहाना है ।
मन के पावन तटबन्धों पर , सुंदर सपन सजाना है ।।

झंकृत हो उठी देह - तन्त्री , अधरों लिखा फसाना है ।
प्रेमभाव के अनुबंधों पर , हिय का लुटा खजाना है ।।

ख्वाबों के उड़ते पंछी ने , पाया नया ठिकाना है ।
प्रेमपूरित सरल हृदय में , अनुपम गेह बसाना है ।।

पद्मपुंज के सिंहासन पर , साजन तुम्हें बिठाना है ।
मिलने को आतुर नयनों को , तेरी राह बिछाना है ।।

उमड़ - घुमड़ रहे मोद अम्बुद , प्रेम धार बरसाना है ।।
पावक सम पावन बन्धन को , सातों जनम निभाना है ।।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

गीत 1

दया धर्म शुचि मानवता का ,
भाव हमें जो नित्य दिया ।
तुलसी , मीरा , संत कबीर ने ,
अनुपम वह साहित्य दिया ।

प्रबुद्ध , प्रगल्भ ,प्रभाकर ने ,
नव - जीवन का स्तुत्य किया ।
कर्मशीलता के भावों ने ,
जीवन को औचित्य दिया ।

साधु , सन्तों , उपासकों ने ,
 रीति , नीति  और सत्य दिया ।
भक्तिकाल के सरस भाव ने  ,
प्रचंड प्रखर पांडित्य दिया  ।

मर्यादा के आदर्श राम ने ,
 तप से देह आवृत्त किया ।
त्याग ,समर्पण की आभा ने ,
प्रभास सा लालित्य दिया ।

भक्ति  की पावनी गंगा ने ,
मानव को धर्म प्रवृत्त किया ।
सद्भावों की पुण्य सलिला ने  ,
 मानस  को  कृतकृत्य  किया ।।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

Saturday, 6 June 2020

ईमानदारी का थर्मामीटर ( लघुकथा)

         स्वाति आज पहली बार सीमा के साथ बाजार गई थी ।  उसने देखा सीमा  कुछ चुनिंदा दुकानदारों से ही खरीदारी कर रही थी । उसके कई काम की चीजें उनके पास न होने पर  वह किसी और से वह सामान नहीं खरीद रही थी बल्कि उन्हें ही अगली बार मँगाकर रखने के लिए कह रही थी । स्वाति ने सीमा को किसी भी दूसरे दुकानदार से वह सामान खरीदने  को कहा तो उसने मना कर दिया यह कहकर कि वे ईमानदार नहीं हैं ।
   " थोड़ी देर में किसी का चेहरा देखकर तुम कैसे कह सकती हो कि यह ईमानदार है या बेईमान ?" स्वाति  ने अपनी शंका प्रकट करते हुए कहा । " मैं जान - बूझकर कई बार उन्हें दो - चार रुपये अधिक दे देती हूँ जो ईमानदार होते हैं वे  सच बताते हुए पैसे वापस कर देते हैं  , खोटी नीयत वाले चंद रुपयों के लाभ का मोह नहीं छोड़ पाते और ग्राहकों का विश्वास खो देते हैं । बस , यही है मेरा ईमानदारी परखने का थर्मामीटर "।स्वाति को भी भा गया था यह थर्मामीटर ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

Tuesday, 2 June 2020

सजल

सजल
समांत - अ अती
पदांत - है
मात्रा भार - 20
मात्रा पतन - **
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स्त्री है नदी ,वह अविरल बहती है
 संस्कृति को साथ लेकर चलती है
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 पालती और  दुलारती है  सबको
 सीने में उसके  ममता पलती  है
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 देख नहीं सकती किसी को दर्द में
 पीड़ा में भी वह हँसती  रहती है 
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त्याग तप धैर्य की मूरत है नारी
परिवार के लिए सब दुख सहती है
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अपने बच्चों में भेद नहीं  करती  
  अनहोनी होने से  वह डरती है
#
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़