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मन - मंदिर के देव तुम्हीं हो ,
जीवन का पाथेय तुम्हीं हो ,
आराधन , पूजन ,व्रत सारा ,
करती हूँ नित ध्यान तुम्हारा ।
याद तुम्हें ही करती हूँ मैं ,
और मुझे कोई काम नहीं ।
बिन तेरे मेरी शाम नहीं ।।
हृदवीना के तार तुम्हीं हो ,
मधुरिम सुर शृंगार तुम्हीं हो ,
पावन गीत सजे अधरों पर ,
स्वर्ण-रश्मि शबनम-कतरों पर ।
मैं चल पड़ी अनुराग-पथ पर,
अब लक्ष्य-पूर्व आराम नहीं ।
बिन तेरे मेरी शाम नहीं ।।
मिल जाए यदि प्यार तुम्हारा ,
खिल जाए हिय-उपवन प्यारा ।
सुरभित पुलकित होगा जीवन ,
नाच उठे यह मन - बंजारा ।
जगह बना लूँ दिल में तेरे ,
है इससे बड़ा मुकाम नहीं ।।
बिन तेरे मेरी शाम नहीं ।।
- डॉ. दीक्षा चौबे