Monday, 26 June 2017

आत्मविश्वास (लघुकथा)

एक प्यारी सी गुड़िया थी रानू । वह अपनी माँ के साथ
रहती थी । उसकी माँ दूसरों के घर का काम - काज
करके उसका और अपना पेट भरती थी । गरीब होकर
भी वह रानू को खूब पढ़ाना चाहती थी । रानू मन लगा
कर पढ़ती भी थी । हमेशा उसके अच्छे नम्बर आते थे ।
     जब वह आठवीं में थी , ठीक परीक्षा के वक्त उसकी माँ की तबीयत अचानक खराब हो गई । बेचारी रानू ! माँ की देखभाल करती , माँ के बदले में काम पर जाती
और रात को थोड़ा - बहुत पढ़ती। किसी तरह उसने परीक्षा दिलाई , लेकिन इस बार उसके बहुत कम नम्बर
आये ।
       गरीब माँ के गिड़गिड़ाने पर बड़ी मुश्किल से हाई -
स्कूल में दाखिला मिला । बड़ी मायूस हो गई थी रानू ,
उसे निराशा ने  घेर लिया था ।बस , दिन - रात रोते रहती । उसकी माँ भी उसकी हालत देखकर बहुत दुखी थी ।
      एक दिन रानू ने एक  अपंग भिखारी को देखा ।उसके हाथ - पैरों की उंगलियाँ गल गई थी । शारीरिक
विकलांगता होने के बावजूद उसमें जीने का उत्साह था , विपरीत परिस्थितियों से लड़ने का साहस था
     रानू सोचने लगी - "यह निर्बल होने पर भी खुश है ,
परिस्थितियों से लड़ रहा है । एक मैं हूँ जो एक छोटी
सी असफलता से ही घबरा गई हूँ ।" उसका खोया हुआ
आत्मविश्वास लौट आया । वह तन - मन से पढ़ाई में
जुट गई । उसकी मेहनत रंग लाई । इस बार उसने कक्षा
में सर्वाधिक  अंक प्राप्त किये ।
   उसे स्कूल के प्राचार्य ने पुरस्कार प्रदान किया । रानू
बहुत खुश थी । पुरस्कार लेते हुए वह मन ही मन संकल्प ले रही थी - "अब जीवन में किसी भी कठिनाई
का सामना करना पड़े तो मैं उससे लड़ूंगी ।"रानू को
आत्मविश्वास का बल जो मिल गया था ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगद
********☺️☺️

Saturday, 24 June 2017

जिनगी के नइये ठिकाना

जिनगी के नइये ठिकाना रे संगी ,
सांसें के आना अउ जाना रे संगी ।
देहे के पिंजरा म मैंना फँसे हे ,
एला एक दिन उड़ जाना रे संगी ।

खाये पिये अउ सुत के बिता दे ,
करम ल बने बनाना हे संगी ।
कुछु नई जावय संग म तोर,
नाव ल बने कमाना हे संगी ।

सगा सुवारी म मन ह मोहागे ,
भजनों म मन ल रमाना हे संगी ।
रुपया   पइसा ल बने बचाये ,
धरम ल तको बचाना हे संगी ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
     ☺️ ☺️ ☺️

Friday, 23 June 2017

सबक ( लघु कथा )

कई दिनों से मैं देख रही थी , कक्षा दसवीं की वह छात्रा
पढ़ाई में ध्यान नहीं दे रही थी  , न ही कोई गृहकार्य पूरा
कर रही  थी । आज तो मुझे गुस्सा आ गया था , मैंने उसे कक्षा में जोर की डांट  लगाई थी । इस बार तुम्हारा
बोर्ड एग्जाम है  और तुम लापरवाह हो रही हो। कुछ
कहा नहीं था उसने ..बस नजर नीची किए मेरी बात
सुनती रही । बाद में मुझे उसकी सहेली ने कारण बताया
तो मेरा दिल रो उठा ...उसे उसके शराबी पिता ने घर
से निकाल दिया है मैडम , अपनी माँ को मारने का
विरोध करने के कारण ....अभी वह अपने बुआ के घर
पर रहती है । जिंदगी की कक्षा में कितने बड़े - बड़े
सबक सीख रही थी वह ।

   स्वरचित- डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
☺️   ☺️

Tuesday, 20 June 2017

अपनी वाली ( लघु कथा)

वह बस से रोज लगभग सौ किलोमीटर की यात्रा कर
अपने कार्यस्थल पर जाते हैं । बस में कई लोगों से
मुलाकात होती है । रोज आने वाले चेहरे लगभग
परिचित हो गए हैं । स्कूल की बहुत सी शिक्षिकायें
भी चढ़ती हैं  ...रंग - बिरंगी और सबके आकर्षण का
केंद्र भी होती हैं । सुबह छः बजे  घर से निकल जाने वाली ये मैडम न जाने कब समय निकाल लेती हैं , इतना तैयार होने के लिये ...वह अक्सर सोचता है ।
    उसे अपनी पत्नी याद आ जाती है । दिन भर घर
के कामों में व्यस्त ...कभी तैयार रहती ही नहीं । बिखरे
बाल ,अस्त व्यस्त कपड़े..दो जोड़ी पुराने कपड़े में
ही अक्सर दिखती है, लेकिन हाँ.. जब कहीं बाहर
जाने के लिये तैयार होकर आती है तो देखते ही रह
जाता है वह ....। कहाँ छुपा रहता है यह सौंदर्य बाकी
दिनों ।
    "  ए मिस्टर , जरा अपने पैरों को समेटकर बैठिए"
सामने बैठी खूबसूरत कन्या ने बड़ी ही बदतमीजी से
उसे वर्तमान में ला पटका ,खयालों में खोए हुए शायद
उसका पैर उन्हें छू गया था ।  सौम्य , सरल व्यवहार रखने  वाली पत्नी याद आ गई थी ....अपनी वाली ही
भली ...वह मन ही मन बुबबुदाया था ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
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Sunday, 18 June 2017

बेचारगी

जिंदगी क्या से क्या हो गई है ,
दिन बीत रहे हैं ,
उम्र रीत रहे हैं मगर...
धड़कनें  कहीं खो गई है ।
पंख है ,परबाज है ,
साज है , आवाज है पर ...
तरानों की सरगम खो गई है ।
शिकवे हैं , वादे हैं ...
रिश्ते हैं , नाते हैं वो ...
बातों की मिठास खो गई है ।
आस है ,प्रयास है ,
मन में  विश्वास  है ...
जाने क्यों तकदीर सो गई है।
बेबस  हाल है ,
ठनठन गोपाल है...
मजबूरी भी  हमपे रो दी है ।
दर्द भरी आहें हैं,
अनगिनत चाहे हैं....
बेचारगी की हद हो गई है ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे ,दुर्ग , छत्तीसगढ़
##############😢

+पिता क्या ऐसे ही होते हैं *

पिता...जो कभी न थकते हैं,
बच्चों की खुशी में सुख पाते,
अपनी तकलीफें भूल जाते,
दिन -रात मेहनत करते हैं ।
परिवार के लिये खटते ,
सारा सुख दूसरों के लिये ,
अपने बारे में कब सोचते हैं ।
कब से देख रही हूँ ...
पिता की फ़टी बनियान..
चप्पल भी घिसते तक पहनते हैं ।
पर ,अभी तो यह चलेगी ,
बच्चों की फीस भरनी है ,
मकान की छत सुधरवानी है ,
भाई का ऑपरेशन है ,
सब की जरूरतें पहले,
कहकर अपने खर्च टालते  हैं ।
वो कभी नहीं  कहते ,
उन्हें क्या खाना पसंद है ,
वो कभी बताते ही नहीं कि,
उन्हें दिलीप कुमार की फिल्में
अच्छी लगती थी कभी  ...
गाने सुनना कितना पसन्द था,
पर कभी समय ही नहीं मिला कि
बैठकर सुनें कभी इत्मीनान से ।
वो अपनी खुशी  ...
सबके चेहरों  में तलाश करते हैं ।
बीत  गया उनका  जीवन ..
सबकी ख्वाहिशें पूरी करते ,
कभी फुर्सत ही नही मिली ..
कि सोचें उनकी भी कोई चाहत है।
जिम्मेदारियों के निर्वहन में ही,
सच्ची राहत महसूस करते हैं ।
क्या सारे पिता ऐसे ही होते हैं ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
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Wednesday, 14 June 2017

मुश्किल फैसला ( कहानी )

उस दिन मैं एक शादी में गई हुई थी जब  चाचा जी
का फोन आया कि रीमा की शादी तय हो गई है ।
लड़का बालको के प्लांट में इंजीनियर था ।काफी समय से चाचा जी लगे  हुए थे ।सब कुछ संतुष्टिपूर्ण होने पर
यहां आखिरकार शादी तय हुई । कहते हैं हर काम का समय तय रहता है ,जोड़ियां ऊपरवाला  बनाता है फिर
हमें वह जीवनसाथी ढूढने के लिये  इतना प्रयास क्यों
करना पड़ता है ।अभी शादी की तारीख तय की जा रही थी तो एक और जगह जहां चाचाजी बहुत दिनों पहले
प्रस्ताव दिए थे वहां से भी सकारात्मक जवाब आया कि
वो भी तैयार हैं । अब चाचा जी दुविधा में थे कि क्या किया जाए क्योंकि उनकी और रीमा  की भी पहली
पसन्द वे ही थे ।उनका  मन काफी समय से वही शादी
करने का था क्योंकि लड़के  की सरकारी नौकरी थी
और दिखने में भी वह उन्नीस ही था ।
    कई लोगों को नाराज कर चाचा जी  ने पहले जहां
शादी तय हुई थी ,उनसे माफी माँगकर दूसरे लड़के से
रीमा की शादी तय कर दी । बहुत धूमधाम से सगाई रस्म हुई ।शादी की भी जोरों से तैयारियां होने लगी ।
एक ही बेटी है सोचकर चाचा जी ने दिल खोलकर खर्च
किया था । रीमा की हर पसन्द उन्होंने पूरी की थी ।
शादी के दिन जब हम मन्दिर से माँ दुर्गा की पूजा करके वापस आये तो किसी बच्चे ने कहा - रीमा दी , आपकी
सहेलियां आई है ,आपके कमरे में  इंतजार कर रही है ,।
मैं रीमा को वहाँ छोड़कर कमरे से बाहर आ गई और उसे जल्दी से नहाकर निकलने को कहा ताकि उसके
बाद होने वाली कुंवारी पूजा जल्दी हो सके और हम
समय पर पार्लर जा सकें ।
              रीमा अपने कमरे में जो घुसी तो बाहर आने का नाम ही नही ले रही  थी । उसकी वो सहेलियां चली गई थीं पर उसके कमरे में छोटे चाचा और मौसा जी जाने क्या मन्त्रणा कर रहे थे कि घण्टों वे कमरे में बंद रहे । कोई कुछ बोलता भी न था आखिर देर क्यों हो रही है ।
       पूरी  दोपहर खत्म हो  गई ,आखिर शाम को नहाकर रीमा बाहर आई तो कुवांरी पूजन  हुआ और मैं उसे तैयार करने पार्लर लेकर गई तब तक मुझे वह सामान्य ही लग रही थी । उसने मुझे कुछ बताया नही ।
जब हम पार्लर में ही थे तभी मौसा जी का फोन आया कि जल्दी वापस आ जाओ , यहाँ कुछ गड़बड़ हो गई
है । बड़े अरमान से तैयार होती रीमा को देखकर कलेजा मुँह को आ रहा था , उससे कुछ कहने  की हिम्मत नहीं हो रही थी ।जब हम वापस आये तो पूरा
माहौल तनाव से भरा था । सब अलग - अलग समूहों
में कानाफूसी कर रहे थे । मासूम सी रीमा बेहद खूबसूरत लग रही थी , दुल्हन के मेकअप में वह लाजवाब लग रही थी ।
    भैया और चाचा , सभी रिश्तेदार चर्चा कर रहे थे,
अब क्या किया जाए । दरअसल एक लड़की बारात
आने के पहले ही मंडप में आकर हल्ला कर रही थी
कि वह दूल्हे की प्रेमिका है । मेरे एक मामा का लड़का
जो स्वयं थाना प्रभारी था ,उस लड़की को लेकर पास के थाने में  गया ताकि वहाँ कोई भगदड़ न मचे ।
      बारात के आने पर दूल्हे व उसके भाई , पिता जी
को कोई वहाँ से सीधे थाने ले गया ताकि सब कुछ
लड़की के सामने ही स्पष्ट हो जाये । चश्मदीद बताते हैं
कि वहाँ दूल्हे व उस लड़की के बीच ऐसी बहस हो रही
थी मानो वे पति - पत्नी हों । लड़के ने इंकार भी नहीं
किया कि उसके सम्बन्ध उस लड़की से नहीं हैं । उसके
पिता जरूर यह कहते रहे कि वह लड़की पैसे लेने के
लिए यह सब कर रही है और सब बातें झूठी हैं । वह
जो सूबूत  तस्वीरें , मेसेज वगैरह दिखा रही है , सब
नकली हैं ।
           चाचाजी की हालत बड़ी नाजुक थी , वे फफक कर रो
पड़े थे क्योंकि एक सामान्य मध्यमवर्गीय पिता के लिये
यह बड़ा मुश्किल फैसला था । शादी कर लेते हैं तो बेटी
का भविष्य कैसा रहेगा कोई कह नहीं सकता । जानबूझकर कोई मख्खी नहीं निगल सकता । शादी
कैंसिल करने का फैसला करने से इतना खर्च फिर से
करना उनके लिये असम्भव था । बड़ी मुश्किल घड़ी थी
पूरे मेहमान सकते में थे ,खाना लगा हुआ था पर कोई
खाने नही जा रहा था । अंत में एक मध्यस्थ द्वारा समझौता कराने की कोशिश की गई  , उन्होंने लड़के
पक्ष की तरफ से यह स्वीकार किया कि चूंकि उनके
कारण यह सब हंगामा  हुआ है तो वे हर्जाने के तौर पर
शादी का लगभग सभी बड़े खर्च देने को तैयार हैं । उनके इस सुझाव ने चाचा जी को यह निर्णय लेने में
मदद किया कि वे यह शादी तोड़ दें  । आज तक समाचार - पत्रों में ही यह सब पढा था ,पहली बार इसका हिस्सा बनने पर महसूस हुआ कि कितना कठिन
है ऐसे अवसरों पर निर्णय लेना ।एक - एक पल भारी पड़ रहा था । बारात वापस लौट गई
थी , बाहरी मेहमान भी चले गए थे । रिश्तेदार व घर के
लोग  न खाना खाये और न ही सो पाये । रात भर बैठे -
बैठे ही बिता दिये । एकमात्र अपने कर्तव्य ही हैं जो
मनुष्य को प्रत्येक परिस्थिति में चलते रहने की प्रेरणा
देते हैं । दूसरे दिन भवन खाली करना था तो हम सब उसमें ही लग गए। घर पर सभी सामानों  को अच्छी
तरह से पैक करके सुरक्षित रख सब अपने - अपने
गन्तव्य की ओर रवाना हो गए । चाचा - चाची  की  चिंता हो रही  थी पर अपना काम  छोड़कर कितने दिन
साथ रहा जा सकता है । अब जो भी परिस्थिति बनेगी
सामना तो उन्हें ही करना था ।हमें छोड़ने बाहर आये
चाचाजी फफक कर रो पड़े थे । उन्हें देखकर बड़ा दुःख हो रहा था ...दुनिया में इतने रिश्ते होते हैं , यह सब उन्हीं के साथ होना था । बहुत भारी मन से उनसे विदा लेकर हम वापस घर आये ।
        कुछ समय बाद लड़के वालों ने बारह लाख रुपए
भिजवाया , पर शायद यह उन्हें बहुत अखर रहा था
क्योंकि  उसके बाद उन्होंने एक नई चाल  चलनी शुरू
कर दी । अपने एक प्रभावशाली रिश्तेदार जो मंत्रालय
में काम करते थे ,के माध्यम से उस थाना प्रभारी भैया
के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दिए कि उन्होंने दबाव बना
कर शादी तुड़वाई और पैसे वापस करने के लिये जोर
डाला । उनके खिलाफ समाचार पत्रों में रोज ही कुछ न
कुछ गलत छपने लगा और उन्हें परेशान किया जाने लगा । उनके खिलाफ विभागीय जाँच के आदेश आ गए। कितने निर्मम होते हैं लोग , एक तो उनकी वजह से एक मासूम लड़की का दिल टूटा ....उसका पूरा परिवार सदमे में था ,ऊपर से वो ऐसी हरकतें कर रहे थे ।अपनी बदनामी से वे बहुत बौखलाए हुए थे  और कई लोगों से संदेश भिजवाकर  उनके बेटे से शादी करने के लिए दबाव बना रहे थे । चाचा जी एक तरफ बेटी की शादी टूटने से परेशान थे , दूसरी तरफ इन सब बातों का तनाव ...कभी सोचा न था कि जिस व्यक्ति , परिवार को
उन्होंने अपनी लाडली बेटी के लिये चुना था वे इतनी
घटिया हरकत करेंगे । वे इतना दबाव चाचा जी पर डाल
रहे थे ताकि वे टूट जाये और अपनी बेटी की शादी उसी
लड़के से करने को तैयार हो जाए ...सामाजिक रूप से
भी उन पर दबाव डाला जा रहा था कि या तो वे शादी करें या रुपये उन्हें लौटा दें । चाचा जी झुके नहीं , उन्होंने
भी रीमा के साथ जाकर रिपोर्ट दर्ज कराई कि उन्हें परेशान किया जा रहा है , उन्होंने जो भी फलदान में
लड़के वालों को जो उपहार दिए थे ,उन सब की लिस्ट
थमा दी और सभी सामान वापस करने के लिये दबाव
बनाया । उस समय सबको मानसिक रूप से परेशान देखकर  उन पर इतना गुस्सा आ रहा था कि क्या कर डालूँ ।रीमा ने भी मानसिक रूप से परेशान किये
जाने की बात समाचार पत्रों में कही  ,अधिक परेशान करने पर जान देने की बात की , महिला संगठनों के द्वारा दबाव बनाया तब जाकर वे समझौते पर उतरे कि अपनी -अपनी रिपोर्ट वापस ले ली जाए । दुनिया में न जाने कितने प्रकार के लोग होते
हैं , इन्हें ही देखकर मालूम हुआ अगर आप सीधे सादे हैं
तो हर व्यक्ति आपका शोषण करने की कोशिश करता
है , ऐसे लोगों को उनकी भाषा में ही जवाब देना पड़ता
है । बिना कुसूर किये ही चाचा जी और हमारा पूरा परिवार तनावग्रस्त हुआ ।आर्थिक , मानसिक पीड़ा से
हमें गुजरना पड़ा । जो गलत होता है वह अपने - आपको सही दिखाने की कोशिश जरूर करता है । वे लड़केवाले अपने - आपको सही साबित करने के लिये
लड़की से पहले अपने लड़के की शादी करके दिखाने
का दावा करने लगे और आनन - फानन  जो भी पहला
रिश्ता मिला , वहाँ उसकी शादी कर दी । वे समाज में यह साबित करना चाहते थे कि वे गलत नहीं थे जबकि
सच पूछिए तो उनके पास कोई चारा  ही न था ।उनकी
बेशर्मी की हद देखिये हमारे घर के किसी रिश्तेदार के सामने पड़ने पर वे अपनी मूंछों पर  ताव दे रहे थे मानों बहुत बड़ा तीर मार लिया हो ।
    पर चाचा जी किसी से भी रीमा की शादी थोड़े ही कर देते ....उन्हें समाज को  या उन लड़के वालों को
दिखाने से ज्यादा अपनी बिटिया की खुशी अधिक प्यारी थी । वे जुटे रहे , अच्छे घर - परिवार की खोज
करते रहे ...जहाँ उसकी भावनाओं को सम्मान मिले ,
उसे वो प्यार - दुलार व संरक्षण मिले , जिसकी वह
हकदार है। कहते हैं जहाँ चाह होती है , वहाँ राह होती
है ...चाचा जी की मेहनत रंग लाई और उन्हें वह परिवार
मिला जिन्होंने सारी बात सुनी , समझी और रीमा को
अपनाने का फैसला किया । रीमा के बिखरे हुए अरमानों को उन्होंने अपने स्नेह की डोर से बांध दिया और
वह अपने भयावह अतीत को भुला पाई । यही दुनिया
है जहाँ रावन जैसे किरदार मिलते हैं तो उन्हें पराजित
करने वाले राम भी जन्म लेते  हैं । अच्छाई और बुराई
का युद्ध हर युग में होता है , होता रहेगा । इस युद्ध का
परिणाम हर बार अच्छाई के पक्ष में हुआ है और युगों
तक होता रहेगा ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़

Tuesday, 13 June 2017

शिक्षक के लिए

सोंचें , समझें , सीखें ....
विस्तृत करें अपना ज्ञान ।
शिक्षा के इस महायज्ञ में ,
करना है हमको अंशदान ।।
विचलित न हों कर्तव्य - पथ से ,
अपने - आप को लघु मान ।
सागर की विशालता में ,
हर बूँद का होता योगदान ।।
लीक पुरानी छोड़ चलें अब ,
नवाचार की बाहें थाम ।
छँट गई बदली भ्रांतियों की ,
विज्ञान को मिला खुला आसमान ।।
छिड़ जाने दो जमकर ,
उजाले - अंधेरे का महासंग्राम ।
तैयार खड़े हैं अक्षर - बाँकुरे ,
करके  सारे इंतजाम ।।
बाल - मन की श्यामल धरा पर,
बीज उगाएं कर्मवान ।
स्नेह , प्रेरणा के सिंचन से ,
भविष्य बनाएं निष्ठावान ।।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
************०**************

Sunday, 11 June 2017

कैसे कैसे लोग

2o11 की जनगणना में मेरी ड्यूटी  लगी थी । लगभग तीन सौ घरों की जनगणना करनी थी,  सभी वर्ग के लोग इस वार्ड में थे ।विभिन्न बिंदुओं पर जानकारी लेनी थी ।मध्यमवर्गीय घरों में मुझे पूरा सहयोग मिला , साथ ही उन्होंने चाय - पानी के लिये भी पूछा । जिनके घर जितने बड़े थे , वे  व्यवहार में उतने ही संकीर्ण लगे ।
उन्होंने अपने ड्राइंगरूम में बिठाना भी उचित नही समझा ।घर के बाहर प्लास्टिक की कुर्सी में बैठकर
मुझे फॉर्म भरने पड़े ।जो जितने निम्नवर्ग के थे , वे
अपने घर की सबसे अच्छी कुर्सी मेरे लिये निकालते ,
चादर को झाड़ते , ठीक करते ।उ नका व्यवहार देख
कर मेरा मन प्रसन्न हो उठा । कुछ लोग सब कुछ
होते हुए भी गरीब होते है और कुछ लोग कुछ न होते
हुए भी दिल के अमीर होते हैं । अपना धन कोई किसी
को नही देता लेकिन  अच्छा व्यवहार करके हम सामने
वाले के दिल में अपनी जगह बना लेते हैं ।
       कई बार हम सामने वाले की हैसियत देखकर व्यवहार करते हैं । अगर किसी बड़े घर की शादी है , तो अरे अच्छा उपहार देना पड़ेगा । उनके लायक उपहार नही देंगे तो वो क्या कहेंगे । किसी गरीब के घर शादी हो तो कुछ भी दे दो, ऐसी सोच रखते हैं जबकि अधिक की आवश्यकता उन्हें ही है । जिसके पास कुछ नही है , वह हमारे उपहार की अधिक कद्र करेगा । जिसके पास सब कुछ है , उसे  जितना भी देंगे , कम ही लगेगा ।थोड़ी सी अपनी सोच को विस्तृत करने की आवश्यकता है ,थोड़ा सा प्रयास किसी के लिये कर देने से वह जीवन भर याद रखता है ।
           जरूरत पड़ने पर किसी की मदद कर देने से वह जीवन भर एहसान मानता है ।
     मेरे पिता जी अक्सर लोगो को विवाह योग्य वर - वधु के बारे में बताते रहते थे क्योंकि उनकी बहुत जान -
पहचान थी । वे हमारे घर आते रहते और बाकायदा दो - चार दिन रुकते भी थे । मैं बहुत नाराज होती क्योंकि
मेरी पढाई का नुकसान होता था । उन्हें खाना परोसना ,
पानी देना इत्यादि मेरा ही काम था ।माँ के तो वे जेठ ,
चाचा ससुर  इत्यादि रिश्ते में आते थे ।उस समय पापा
मुझे समझाते थे कि विवाह लगाना पुण्य का काम है ,
वैसे भी जो होना है वो तो होगा ही , हम तो मात्र एक
माध्यम हैं । लोगों की दुआएं लेते रहना चाहिये , न जाने
हमें कब उनकी आवश्यकता पड़ जाये ।
    हमारे घर आने वाला कौन सा व्यक्ति कितना महत्वपूर्ण है , ये जाने बिना सबके साथ सही व्यवहार करें । कुछ लोग प्रभावशाली , उच्च पद पर आसीन लोगों के साथ ही सम्बन्ध रखना पसंद करते हैं । इनके
दिखावे भरे व्यवहार से सभी परिचित रहते हैं और बिना
बताए समझ जाते हैं कि ये व्यक्ति काम पड़ने पर ही बात करता है । ऐसे लोगों को कोई  पसन्द नहीं करता ।
हमारे पास सब कुछ है लेकिन  हमारे सुख - दुख में
शामिल होने वाले अपने नहीं हैं तो सब कुछ बेकार है ।
कुछ लोगों के पास धन , मान , सम्मान नहीं होता पर
उनके चाहनेवाले बहुत होते हैं । दूसरों के लिये करने वाले नाम कमाकर इस दुनिया में अपनी छाप छोड़ जाते हैं ।कितने अमीर आये और धन के भंडार लेकर गुमनाम जिये और गुमनाम मरे  ।पैसे वालों की भीड़ बढ़ती जा
रही है  और दिल संकुचित होते जा रहे हैं ।काश वो
अपने धन का सही उपयोग जरूरतमन्दों की मदद में
कर पाते  और अपना नाम अमर कर जाते ।

स्वरचित - डॉ . दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
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Saturday, 10 June 2017

ओ मेरे हमसफ़र

ओ मेरे हमसफ़र ....
मेरे पास शब्द नहीं ,
भावनाओं के कुछ फूल हैं ,
समर्पण के लिये ....
तुमने दिया आकार ,
मेरे बिखरते सपनों को ,
उन्हें सजाया ,सँवारा ,
प्यार के रंगों से ....
जब मद्धिम हुई रोशनी,
थरथराई दीये की लौ ,
पस्त हुई तूफानी हवा भी ,
तुम्हारी गर्म हथेलियों के घेरे से ...
जीवन के मुश्किल क्षणों में ,
तुमने हाथ थामा ,हौसला बढ़ाया ,
जीता हर गम को ,
तुम्हारे प्यार भरे साथ से ....
तुमसे है मेरी दुनिया ,
तुम ही जीवन के आधार ,
यह जीवन , ये प्यार मेरा ,
है सिर्फ तुम्हारे लिए ...
जब - जब हटूँ कर्तव्यपथ से ,
सही राह दिखाना तुम ,
ओ प्रियतम , ओ हमदम मेरे ,
जीवन भर साथ निभाना तुम ....

स्वरचित -
डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
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आपकी बाहों में

मेरा सपना हुआ साकार ,
भूल गई बाबुल का प्यार ,
सिमट गया मेरा संसार ,
आपकी बाहों में.....।
सारे बन्धन तोड़ कर ,
जीवन के हर मोड़ पर ,
पाया मैंने प्यार ही प्यार ,
आपकी बाहों में .....।
दर्द के लगे पहरे ,
छाये जब गम के कोहरे ,
पाया स्वच्छ बृहद आकाश ,
आपकी बाहों में .....।
सम्पूर्ण हुआ जीवन ,
महक उठा तन - मन ,
आई एक नई  बहार ,
आपकी बाहों में .....।
पुलकित हुआ यौवन ,
प्रेम रस भीगा आँगन ,
कर लिया अनूठा श्रृंगार ,
आपकी बाहों में .....।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
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सफ़र में

मुश्किल हों हालात ,
भाव भरे जज़्बात ,
कुछ न हो अपने हाथ ,
बहता चल , जीवन के लहर संग बहता चल ।
उलझे लम्हों को काटता,
सूझे न कोई रास्ता ,
मिला न कोई साथ ,
चलता चल ,जीवन की डगर मे चलता चल।
अंधेरे घनघोर बड़े ,
बाधाएं  राहों में खड़े ,
उम्मीदों के दीप जला ,
जलता चल , राहों को रोशन करता चल ।
अपनों का साथ ले,
दुःखो  को बाँट ले ,
हौसलों की बाँह थाम ,
सम्भलता चल ,औरों को सहारा देता चल ।
मन के हारे हार है ,
मन के जीते जीत ,
मन को ऐसा साध ले ,
फूटे विजय -संगीत , गाता चल ,गुनगुनाता चल ।
डूबकर समंदर में ,
मोती ढूंढ निकाल ,
उदासी के भँवर से ,
बाहर निकल ,मुस्कुराता चल ,हँसाता चल ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे ,दुर्ग , छत्तीसगढ़
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Thursday, 8 June 2017

आलेख- ***क्योंकि टूट कर पत्ते हरे नहीं होते

      समाज की धुरी होता है परिवार और परिवार का
केन्द्र होती है महिला । परिवार में रिश्तों की डोर को
मजबूत बनाये रखने में घर की स्त्रियों की विशेष भूमिका होती है , यदि  वह  लापरवाह हो जाये तो
परिवार को  बिखरते देर नहीं लगती । रिश्तों को जोड़ने
वाला प्रेम का धागा बड़ा नाजुक होता है । जरा सी
असावधानी से इसे टूटते देर नहीं लगती , यानी सावधानी हटी , दुर्घटना घटी । अर्थात सामाजिक
संरचना में रिश्तों का महत्वपूर्ण स्थान है । प्रेम के महीन
रेशों से बुने ये रिश्ते अत्यंत नाजुक होते हैं । भाई , बहन ,दोस्त , पति- पत्नी , चाचा , मां इत्यादि रिश्तों
का रुप चाहे जो भी हो , ये सभी विश्वास , आदर ,ईमानदारी एवं समर्पण की मांग करते हैं ।
रिश्तों की इस बेल को स्नेह , त्याग  एवं विश्वास के
जल से सींचना अनिवार्य है , नहीं तो  यह असमय
ही मुरझा जाती है ।
          कई बार वर्षों के प्रेम संबंध छोटी -छोटी बातों,
गलतफहमियों या अफवाहों के कारण टूट जाते हैं ।
बहुत ही सोच - समझ कर , सही - गलत का परीक्षण
कर संबंध तोड़ना चाहिये क्योंकि एक बार सम्बन्ध
खराब हो गए तो फिर वह मिठास वापस नहीं आती ।
कवि रहीम ने इसी बात पर कहा है -
  "  रहिमन धागा प्रेम का , मत तोड़ो चटकाय ।
    टूटे से फिर ना जुरे ,जुरै गाँठ पड़ जाय ।।"
          प्रेम के तारों में गुँथे रिश्तों को बहुत ही सहेजकर
रखना चाहिये , उतावलापन इन सम्बन्धों के लिए  घातक है । कुछ बिंदुओं पर गौर करें -
   मर्यादित हो व्यवहार -
-------------------------
         विनीत और नीलेश बहुत अच्छे दोस्त थे । बातों
ही बातों में एक बार विनीत ने नीलेश के परिवार के
सम्बन्ध में अमर्यादित टिप्पणी कर दी , जिससे वह
आहत हो गया और उसने विनीत से मिलना , बात
करना बंद कर दिया ।
        प्रगाढ़ सम्बन्धों में खुलापन और बेतकल्लुफ
होना गलत नहीं है , लेकिन वह मर्यादा की सीमा में
होना चाहिये । बड़ों का आदर ,  स्त्रियों की निजता
में खलल नहीं पड़नी चाहिये । मजाक में भी किसी
की भावना आहत न हो , इसका हमें ख्याल रखना
चाहिये ।
एक -  दूसरे  की भावना का आदर करना -
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        कोई बात हमें अच्छी लगती है , जरूरी नहीं
कि वह सभी को अच्छी लगे । दूसरों के विचारों ,
भावनाओं का आदर करके हम उनके दिल में जगह
बना सकते हैं  और अपने सम्बन्धों को मजबूत
आधार प्रदान कर सकते हैं ।
  सहयोग की भावना -
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      सम्बन्धों के मायाजाल में कई तरह के लोग होते
हैं । रिश्तों की कसौटी तो विपरीत परिस्थितियों में ही
होती है । खुशियों में साथ देने वालों की कमी नहीं रहती
लेकिन दुःख में हमारा साथ दे , वही सच्चा दोस्त/सम्बन्धी होता है । सहयोग की भावना किसी भी रिश्ते
को प्रगाढ़ता में बदल देती है ।
  चुगलखोरों से बचें -
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    निशा  , यामिनी और रीना तीनों की खूब जमती थी ।
एक बार रीना ने गुस्से में निशा के समक्ष यामिनी के
बारे में कुछ गलत कह दिया । बाद में उसे अपने कथन
पर पछतावा हुआ लेकिन तब तक निशा यामिनी को
वह बात बता  चुकी थी । इस कारण रीना और यामिनी
के सम्बन्धों में दरार उत्पन्न हो गई । कुछ लोग इधर की
बातों को उधर करके लोगों के बीच गलतफहमियां पैदा
करते हैं । ऐसे लोगों को नजरअंदाज करना चाहिए  क्योंकि आवेश में व्यक्ति भले ही कुछ बोल दे , पर मन
शांत होने पर उसे अपनी गलती पर पछतावा होता है।
   सहना भी सीखें -
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      प्रेमपूर्ण सम्बन्धों में दोनों पक्षों को कुछ समझौते
करने पड़ते हैं । एक - दूसरे की अपेक्षाओं को पूरा
करना पड़ता है । सिर्फ अपना लाभ देखना रिश्तों के
बीच तनाव उत्पन्न कर सकता है । सीमा ,घर की
व्यवस्था न बिगड़े ,यह सोचकर अक्सर अपने घर पर
कोई भी कार्यक्रम करने में  टाल - मटोल करती रहती
थी , लेकिन उसके इस स्वभाव ने उसे दोस्तों , रिश्तेदारों
से दूर कर दिया ।
   जुलाहा जब कपड़ा बुनता है , उसके ताने - बाने में
हमें कोई गिरह या गांठ महसूस नही होती । जबकि
उसने कितने धागे जोडे होते हैं , हम रिश्तों का ऐसा
ताना - बाना क्यों नहीं बुन सकते जिसमें कोई गांठ न
हो । हमारे सम्बन्धों के ताने - बाने गाँठरहित होंगे तो
अधिक मधुर  , चिरस्थायी एवं आनंददायक रहेंगे ।
     प्रेम के धागों से बंधे इन रिश्तों को चाहिए - थोड़ी
सी देखभाल और विश्वास , फिर इनके टूटने का कभी
भय नहीं होगा । सम्बन्धों को आसानी से न टूटने  दें ,
इनका उचित उपचार करें , भरसक प्रयास करें उन्हें
चिरस्थायी बनाए रखने का । कहा भी गया है -
" सोचकर कोई ताल्लुक तोड़ना ,
  क्योंकि टूटकर पत्ते हरे नहीं होते ।"

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
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