सोंचें , समझें , सीखें ....
विस्तृत करें अपना ज्ञान ।
शिक्षा के इस महायज्ञ में ,
करना है हमको अंशदान ।।
विचलित न हों कर्तव्य - पथ से ,
अपने - आप को लघु मान ।
सागर की विशालता में ,
हर बूँद का होता योगदान ।।
लीक पुरानी छोड़ चलें अब ,
नवाचार की बाहें थाम ।
छँट गई बदली भ्रांतियों की ,
विज्ञान को मिला खुला आसमान ।।
छिड़ जाने दो जमकर ,
उजाले - अंधेरे का महासंग्राम ।
तैयार खड़े हैं अक्षर - बाँकुरे ,
करके सारे इंतजाम ।।
बाल - मन की श्यामल धरा पर,
बीज उगाएं कर्मवान ।
स्नेह , प्रेरणा के सिंचन से ,
भविष्य बनाएं निष्ठावान ।।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
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आसमान में उड़ते बादलों की तरह भाव मेरे मन में उमड़ते -घुमड़ते रहते हैं , मैं प्यासी धरा की तरह बेचैन रहती हूँ जब तक उन्हें पन्नों में उतार न लूँ !
Tuesday, 13 June 2017
शिक्षक के लिए
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