उस दिन मैं एक शादी में गई हुई थी जब चाचा जी
का फोन आया कि रीमा की शादी तय हो गई है ।
लड़का बालको के प्लांट में इंजीनियर था ।काफी समय से चाचा जी लगे हुए थे ।सब कुछ संतुष्टिपूर्ण होने पर
यहां आखिरकार शादी तय हुई । कहते हैं हर काम का समय तय रहता है ,जोड़ियां ऊपरवाला बनाता है फिर
हमें वह जीवनसाथी ढूढने के लिये इतना प्रयास क्यों
करना पड़ता है ।अभी शादी की तारीख तय की जा रही थी तो एक और जगह जहां चाचाजी बहुत दिनों पहले
प्रस्ताव दिए थे वहां से भी सकारात्मक जवाब आया कि
वो भी तैयार हैं । अब चाचा जी दुविधा में थे कि क्या किया जाए क्योंकि उनकी और रीमा की भी पहली
पसन्द वे ही थे ।उनका मन काफी समय से वही शादी
करने का था क्योंकि लड़के की सरकारी नौकरी थी
और दिखने में भी वह उन्नीस ही था ।
कई लोगों को नाराज कर चाचा जी ने पहले जहां
शादी तय हुई थी ,उनसे माफी माँगकर दूसरे लड़के से
रीमा की शादी तय कर दी । बहुत धूमधाम से सगाई रस्म हुई ।शादी की भी जोरों से तैयारियां होने लगी ।
एक ही बेटी है सोचकर चाचा जी ने दिल खोलकर खर्च
किया था । रीमा की हर पसन्द उन्होंने पूरी की थी ।
शादी के दिन जब हम मन्दिर से माँ दुर्गा की पूजा करके वापस आये तो किसी बच्चे ने कहा - रीमा दी , आपकी
सहेलियां आई है ,आपके कमरे में इंतजार कर रही है ,।
मैं रीमा को वहाँ छोड़कर कमरे से बाहर आ गई और उसे जल्दी से नहाकर निकलने को कहा ताकि उसके
बाद होने वाली कुंवारी पूजा जल्दी हो सके और हम
समय पर पार्लर जा सकें ।
रीमा अपने कमरे में जो घुसी तो बाहर आने का नाम ही नही ले रही थी । उसकी वो सहेलियां चली गई थीं पर उसके कमरे में छोटे चाचा और मौसा जी जाने क्या मन्त्रणा कर रहे थे कि घण्टों वे कमरे में बंद रहे । कोई कुछ बोलता भी न था आखिर देर क्यों हो रही है ।
पूरी दोपहर खत्म हो गई ,आखिर शाम को नहाकर रीमा बाहर आई तो कुवांरी पूजन हुआ और मैं उसे तैयार करने पार्लर लेकर गई तब तक मुझे वह सामान्य ही लग रही थी । उसने मुझे कुछ बताया नही ।
जब हम पार्लर में ही थे तभी मौसा जी का फोन आया कि जल्दी वापस आ जाओ , यहाँ कुछ गड़बड़ हो गई
है । बड़े अरमान से तैयार होती रीमा को देखकर कलेजा मुँह को आ रहा था , उससे कुछ कहने की हिम्मत नहीं हो रही थी ।जब हम वापस आये तो पूरा
माहौल तनाव से भरा था । सब अलग - अलग समूहों
में कानाफूसी कर रहे थे । मासूम सी रीमा बेहद खूबसूरत लग रही थी , दुल्हन के मेकअप में वह लाजवाब लग रही थी ।
भैया और चाचा , सभी रिश्तेदार चर्चा कर रहे थे,
अब क्या किया जाए । दरअसल एक लड़की बारात
आने के पहले ही मंडप में आकर हल्ला कर रही थी
कि वह दूल्हे की प्रेमिका है । मेरे एक मामा का लड़का
जो स्वयं थाना प्रभारी था ,उस लड़की को लेकर पास के थाने में गया ताकि वहाँ कोई भगदड़ न मचे ।
बारात के आने पर दूल्हे व उसके भाई , पिता जी
को कोई वहाँ से सीधे थाने ले गया ताकि सब कुछ
लड़की के सामने ही स्पष्ट हो जाये । चश्मदीद बताते हैं
कि वहाँ दूल्हे व उस लड़की के बीच ऐसी बहस हो रही
थी मानो वे पति - पत्नी हों । लड़के ने इंकार भी नहीं
किया कि उसके सम्बन्ध उस लड़की से नहीं हैं । उसके
पिता जरूर यह कहते रहे कि वह लड़की पैसे लेने के
लिए यह सब कर रही है और सब बातें झूठी हैं । वह
जो सूबूत तस्वीरें , मेसेज वगैरह दिखा रही है , सब
नकली हैं ।
चाचाजी की हालत बड़ी नाजुक थी , वे फफक कर रो
पड़े थे क्योंकि एक सामान्य मध्यमवर्गीय पिता के लिये
यह बड़ा मुश्किल फैसला था । शादी कर लेते हैं तो बेटी
का भविष्य कैसा रहेगा कोई कह नहीं सकता । जानबूझकर कोई मख्खी नहीं निगल सकता । शादी
कैंसिल करने का फैसला करने से इतना खर्च फिर से
करना उनके लिये असम्भव था । बड़ी मुश्किल घड़ी थी
पूरे मेहमान सकते में थे ,खाना लगा हुआ था पर कोई
खाने नही जा रहा था । अंत में एक मध्यस्थ द्वारा समझौता कराने की कोशिश की गई , उन्होंने लड़के
पक्ष की तरफ से यह स्वीकार किया कि चूंकि उनके
कारण यह सब हंगामा हुआ है तो वे हर्जाने के तौर पर
शादी का लगभग सभी बड़े खर्च देने को तैयार हैं । उनके इस सुझाव ने चाचा जी को यह निर्णय लेने में
मदद किया कि वे यह शादी तोड़ दें । आज तक समाचार - पत्रों में ही यह सब पढा था ,पहली बार इसका हिस्सा बनने पर महसूस हुआ कि कितना कठिन
है ऐसे अवसरों पर निर्णय लेना ।एक - एक पल भारी पड़ रहा था । बारात वापस लौट गई
थी , बाहरी मेहमान भी चले गए थे । रिश्तेदार व घर के
लोग न खाना खाये और न ही सो पाये । रात भर बैठे -
बैठे ही बिता दिये । एकमात्र अपने कर्तव्य ही हैं जो
मनुष्य को प्रत्येक परिस्थिति में चलते रहने की प्रेरणा
देते हैं । दूसरे दिन भवन खाली करना था तो हम सब उसमें ही लग गए। घर पर सभी सामानों को अच्छी
तरह से पैक करके सुरक्षित रख सब अपने - अपने
गन्तव्य की ओर रवाना हो गए । चाचा - चाची की चिंता हो रही थी पर अपना काम छोड़कर कितने दिन
साथ रहा जा सकता है । अब जो भी परिस्थिति बनेगी
सामना तो उन्हें ही करना था ।हमें छोड़ने बाहर आये
चाचाजी फफक कर रो पड़े थे । उन्हें देखकर बड़ा दुःख हो रहा था ...दुनिया में इतने रिश्ते होते हैं , यह सब उन्हीं के साथ होना था । बहुत भारी मन से उनसे विदा लेकर हम वापस घर आये ।
कुछ समय बाद लड़के वालों ने बारह लाख रुपए
भिजवाया , पर शायद यह उन्हें बहुत अखर रहा था
क्योंकि उसके बाद उन्होंने एक नई चाल चलनी शुरू
कर दी । अपने एक प्रभावशाली रिश्तेदार जो मंत्रालय
में काम करते थे ,के माध्यम से उस थाना प्रभारी भैया
के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दिए कि उन्होंने दबाव बना
कर शादी तुड़वाई और पैसे वापस करने के लिये जोर
डाला । उनके खिलाफ समाचार पत्रों में रोज ही कुछ न
कुछ गलत छपने लगा और उन्हें परेशान किया जाने लगा । उनके खिलाफ विभागीय जाँच के आदेश आ गए। कितने निर्मम होते हैं लोग , एक तो उनकी वजह से एक मासूम लड़की का दिल टूटा ....उसका पूरा परिवार सदमे में था ,ऊपर से वो ऐसी हरकतें कर रहे थे ।अपनी बदनामी से वे बहुत बौखलाए हुए थे और कई लोगों से संदेश भिजवाकर उनके बेटे से शादी करने के लिए दबाव बना रहे थे । चाचा जी एक तरफ बेटी की शादी टूटने से परेशान थे , दूसरी तरफ इन सब बातों का तनाव ...कभी सोचा न था कि जिस व्यक्ति , परिवार को
उन्होंने अपनी लाडली बेटी के लिये चुना था वे इतनी
घटिया हरकत करेंगे । वे इतना दबाव चाचा जी पर डाल
रहे थे ताकि वे टूट जाये और अपनी बेटी की शादी उसी
लड़के से करने को तैयार हो जाए ...सामाजिक रूप से
भी उन पर दबाव डाला जा रहा था कि या तो वे शादी करें या रुपये उन्हें लौटा दें । चाचा जी झुके नहीं , उन्होंने
भी रीमा के साथ जाकर रिपोर्ट दर्ज कराई कि उन्हें परेशान किया जा रहा है , उन्होंने जो भी फलदान में
लड़के वालों को जो उपहार दिए थे ,उन सब की लिस्ट
थमा दी और सभी सामान वापस करने के लिये दबाव
बनाया । उस समय सबको मानसिक रूप से परेशान देखकर उन पर इतना गुस्सा आ रहा था कि क्या कर डालूँ ।रीमा ने भी मानसिक रूप से परेशान किये
जाने की बात समाचार पत्रों में कही ,अधिक परेशान करने पर जान देने की बात की , महिला संगठनों के द्वारा दबाव बनाया तब जाकर वे समझौते पर उतरे कि अपनी -अपनी रिपोर्ट वापस ले ली जाए । दुनिया में न जाने कितने प्रकार के लोग होते
हैं , इन्हें ही देखकर मालूम हुआ अगर आप सीधे सादे हैं
तो हर व्यक्ति आपका शोषण करने की कोशिश करता
है , ऐसे लोगों को उनकी भाषा में ही जवाब देना पड़ता
है । बिना कुसूर किये ही चाचा जी और हमारा पूरा परिवार तनावग्रस्त हुआ ।आर्थिक , मानसिक पीड़ा से
हमें गुजरना पड़ा । जो गलत होता है वह अपने - आपको सही दिखाने की कोशिश जरूर करता है । वे लड़केवाले अपने - आपको सही साबित करने के लिये
लड़की से पहले अपने लड़के की शादी करके दिखाने
का दावा करने लगे और आनन - फानन जो भी पहला
रिश्ता मिला , वहाँ उसकी शादी कर दी । वे समाज में यह साबित करना चाहते थे कि वे गलत नहीं थे जबकि
सच पूछिए तो उनके पास कोई चारा ही न था ।उनकी
बेशर्मी की हद देखिये हमारे घर के किसी रिश्तेदार के सामने पड़ने पर वे अपनी मूंछों पर ताव दे रहे थे मानों बहुत बड़ा तीर मार लिया हो ।
पर चाचा जी किसी से भी रीमा की शादी थोड़े ही कर देते ....उन्हें समाज को या उन लड़के वालों को
दिखाने से ज्यादा अपनी बिटिया की खुशी अधिक प्यारी थी । वे जुटे रहे , अच्छे घर - परिवार की खोज
करते रहे ...जहाँ उसकी भावनाओं को सम्मान मिले ,
उसे वो प्यार - दुलार व संरक्षण मिले , जिसकी वह
हकदार है। कहते हैं जहाँ चाह होती है , वहाँ राह होती
है ...चाचा जी की मेहनत रंग लाई और उन्हें वह परिवार
मिला जिन्होंने सारी बात सुनी , समझी और रीमा को
अपनाने का फैसला किया । रीमा के बिखरे हुए अरमानों को उन्होंने अपने स्नेह की डोर से बांध दिया और
वह अपने भयावह अतीत को भुला पाई । यही दुनिया
है जहाँ रावन जैसे किरदार मिलते हैं तो उन्हें पराजित
करने वाले राम भी जन्म लेते हैं । अच्छाई और बुराई
का युद्ध हर युग में होता है , होता रहेगा । इस युद्ध का
परिणाम हर बार अच्छाई के पक्ष में हुआ है और युगों
तक होता रहेगा ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
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