समाज की धुरी होता है परिवार और परिवार का
केन्द्र होती है महिला । परिवार में रिश्तों की डोर को
मजबूत बनाये रखने में घर की स्त्रियों की विशेष भूमिका होती है , यदि वह लापरवाह हो जाये तो
परिवार को बिखरते देर नहीं लगती । रिश्तों को जोड़ने
वाला प्रेम का धागा बड़ा नाजुक होता है । जरा सी
असावधानी से इसे टूटते देर नहीं लगती , यानी सावधानी हटी , दुर्घटना घटी । अर्थात सामाजिक
संरचना में रिश्तों का महत्वपूर्ण स्थान है । प्रेम के महीन
रेशों से बुने ये रिश्ते अत्यंत नाजुक होते हैं । भाई , बहन ,दोस्त , पति- पत्नी , चाचा , मां इत्यादि रिश्तों
का रुप चाहे जो भी हो , ये सभी विश्वास , आदर ,ईमानदारी एवं समर्पण की मांग करते हैं ।
रिश्तों की इस बेल को स्नेह , त्याग एवं विश्वास के
जल से सींचना अनिवार्य है , नहीं तो यह असमय
ही मुरझा जाती है ।
कई बार वर्षों के प्रेम संबंध छोटी -छोटी बातों,
गलतफहमियों या अफवाहों के कारण टूट जाते हैं ।
बहुत ही सोच - समझ कर , सही - गलत का परीक्षण
कर संबंध तोड़ना चाहिये क्योंकि एक बार सम्बन्ध
खराब हो गए तो फिर वह मिठास वापस नहीं आती ।
कवि रहीम ने इसी बात पर कहा है -
" रहिमन धागा प्रेम का , मत तोड़ो चटकाय ।
टूटे से फिर ना जुरे ,जुरै गाँठ पड़ जाय ।।"
प्रेम के तारों में गुँथे रिश्तों को बहुत ही सहेजकर
रखना चाहिये , उतावलापन इन सम्बन्धों के लिए घातक है । कुछ बिंदुओं पर गौर करें -
मर्यादित हो व्यवहार -
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विनीत और नीलेश बहुत अच्छे दोस्त थे । बातों
ही बातों में एक बार विनीत ने नीलेश के परिवार के
सम्बन्ध में अमर्यादित टिप्पणी कर दी , जिससे वह
आहत हो गया और उसने विनीत से मिलना , बात
करना बंद कर दिया ।
प्रगाढ़ सम्बन्धों में खुलापन और बेतकल्लुफ
होना गलत नहीं है , लेकिन वह मर्यादा की सीमा में
होना चाहिये । बड़ों का आदर , स्त्रियों की निजता
में खलल नहीं पड़नी चाहिये । मजाक में भी किसी
की भावना आहत न हो , इसका हमें ख्याल रखना
चाहिये ।
एक - दूसरे की भावना का आदर करना -
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कोई बात हमें अच्छी लगती है , जरूरी नहीं
कि वह सभी को अच्छी लगे । दूसरों के विचारों ,
भावनाओं का आदर करके हम उनके दिल में जगह
बना सकते हैं और अपने सम्बन्धों को मजबूत
आधार प्रदान कर सकते हैं ।
सहयोग की भावना -
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सम्बन्धों के मायाजाल में कई तरह के लोग होते
हैं । रिश्तों की कसौटी तो विपरीत परिस्थितियों में ही
होती है । खुशियों में साथ देने वालों की कमी नहीं रहती
लेकिन दुःख में हमारा साथ दे , वही सच्चा दोस्त/सम्बन्धी होता है । सहयोग की भावना किसी भी रिश्ते
को प्रगाढ़ता में बदल देती है ।
चुगलखोरों से बचें -
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निशा , यामिनी और रीना तीनों की खूब जमती थी ।
एक बार रीना ने गुस्से में निशा के समक्ष यामिनी के
बारे में कुछ गलत कह दिया । बाद में उसे अपने कथन
पर पछतावा हुआ लेकिन तब तक निशा यामिनी को
वह बात बता चुकी थी । इस कारण रीना और यामिनी
के सम्बन्धों में दरार उत्पन्न हो गई । कुछ लोग इधर की
बातों को उधर करके लोगों के बीच गलतफहमियां पैदा
करते हैं । ऐसे लोगों को नजरअंदाज करना चाहिए क्योंकि आवेश में व्यक्ति भले ही कुछ बोल दे , पर मन
शांत होने पर उसे अपनी गलती पर पछतावा होता है।
सहना भी सीखें -
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प्रेमपूर्ण सम्बन्धों में दोनों पक्षों को कुछ समझौते
करने पड़ते हैं । एक - दूसरे की अपेक्षाओं को पूरा
करना पड़ता है । सिर्फ अपना लाभ देखना रिश्तों के
बीच तनाव उत्पन्न कर सकता है । सीमा ,घर की
व्यवस्था न बिगड़े ,यह सोचकर अक्सर अपने घर पर
कोई भी कार्यक्रम करने में टाल - मटोल करती रहती
थी , लेकिन उसके इस स्वभाव ने उसे दोस्तों , रिश्तेदारों
से दूर कर दिया ।
जुलाहा जब कपड़ा बुनता है , उसके ताने - बाने में
हमें कोई गिरह या गांठ महसूस नही होती । जबकि
उसने कितने धागे जोडे होते हैं , हम रिश्तों का ऐसा
ताना - बाना क्यों नहीं बुन सकते जिसमें कोई गांठ न
हो । हमारे सम्बन्धों के ताने - बाने गाँठरहित होंगे तो
अधिक मधुर , चिरस्थायी एवं आनंददायक रहेंगे ।
प्रेम के धागों से बंधे इन रिश्तों को चाहिए - थोड़ी
सी देखभाल और विश्वास , फिर इनके टूटने का कभी
भय नहीं होगा । सम्बन्धों को आसानी से न टूटने दें ,
इनका उचित उपचार करें , भरसक प्रयास करें उन्हें
चिरस्थायी बनाए रखने का । कहा भी गया है -
" सोचकर कोई ताल्लुक तोड़ना ,
क्योंकि टूटकर पत्ते हरे नहीं होते ।"
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
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