2o11 की जनगणना में मेरी ड्यूटी लगी थी । लगभग तीन सौ घरों की जनगणना करनी थी, सभी वर्ग के लोग इस वार्ड में थे ।विभिन्न बिंदुओं पर जानकारी लेनी थी ।मध्यमवर्गीय घरों में मुझे पूरा सहयोग मिला , साथ ही उन्होंने चाय - पानी के लिये भी पूछा । जिनके घर जितने बड़े थे , वे व्यवहार में उतने ही संकीर्ण लगे ।
उन्होंने अपने ड्राइंगरूम में बिठाना भी उचित नही समझा ।घर के बाहर प्लास्टिक की कुर्सी में बैठकर
मुझे फॉर्म भरने पड़े ।जो जितने निम्नवर्ग के थे , वे
अपने घर की सबसे अच्छी कुर्सी मेरे लिये निकालते ,
चादर को झाड़ते , ठीक करते ।उ नका व्यवहार देख
कर मेरा मन प्रसन्न हो उठा । कुछ लोग सब कुछ
होते हुए भी गरीब होते है और कुछ लोग कुछ न होते
हुए भी दिल के अमीर होते हैं । अपना धन कोई किसी
को नही देता लेकिन अच्छा व्यवहार करके हम सामने
वाले के दिल में अपनी जगह बना लेते हैं ।
कई बार हम सामने वाले की हैसियत देखकर व्यवहार करते हैं । अगर किसी बड़े घर की शादी है , तो अरे अच्छा उपहार देना पड़ेगा । उनके लायक उपहार नही देंगे तो वो क्या कहेंगे । किसी गरीब के घर शादी हो तो कुछ भी दे दो, ऐसी सोच रखते हैं जबकि अधिक की आवश्यकता उन्हें ही है । जिसके पास कुछ नही है , वह हमारे उपहार की अधिक कद्र करेगा । जिसके पास सब कुछ है , उसे जितना भी देंगे , कम ही लगेगा ।थोड़ी सी अपनी सोच को विस्तृत करने की आवश्यकता है ,थोड़ा सा प्रयास किसी के लिये कर देने से वह जीवन भर याद रखता है ।
जरूरत पड़ने पर किसी की मदद कर देने से वह जीवन भर एहसान मानता है ।
मेरे पिता जी अक्सर लोगो को विवाह योग्य वर - वधु के बारे में बताते रहते थे क्योंकि उनकी बहुत जान -
पहचान थी । वे हमारे घर आते रहते और बाकायदा दो - चार दिन रुकते भी थे । मैं बहुत नाराज होती क्योंकि
मेरी पढाई का नुकसान होता था । उन्हें खाना परोसना ,
पानी देना इत्यादि मेरा ही काम था ।माँ के तो वे जेठ ,
चाचा ससुर इत्यादि रिश्ते में आते थे ।उस समय पापा
मुझे समझाते थे कि विवाह लगाना पुण्य का काम है ,
वैसे भी जो होना है वो तो होगा ही , हम तो मात्र एक
माध्यम हैं । लोगों की दुआएं लेते रहना चाहिये , न जाने
हमें कब उनकी आवश्यकता पड़ जाये ।
हमारे घर आने वाला कौन सा व्यक्ति कितना महत्वपूर्ण है , ये जाने बिना सबके साथ सही व्यवहार करें । कुछ लोग प्रभावशाली , उच्च पद पर आसीन लोगों के साथ ही सम्बन्ध रखना पसंद करते हैं । इनके
दिखावे भरे व्यवहार से सभी परिचित रहते हैं और बिना
बताए समझ जाते हैं कि ये व्यक्ति काम पड़ने पर ही बात करता है । ऐसे लोगों को कोई पसन्द नहीं करता ।
हमारे पास सब कुछ है लेकिन हमारे सुख - दुख में
शामिल होने वाले अपने नहीं हैं तो सब कुछ बेकार है ।
कुछ लोगों के पास धन , मान , सम्मान नहीं होता पर
उनके चाहनेवाले बहुत होते हैं । दूसरों के लिये करने वाले नाम कमाकर इस दुनिया में अपनी छाप छोड़ जाते हैं ।कितने अमीर आये और धन के भंडार लेकर गुमनाम जिये और गुमनाम मरे ।पैसे वालों की भीड़ बढ़ती जा
रही है और दिल संकुचित होते जा रहे हैं ।काश वो
अपने धन का सही उपयोग जरूरतमन्दों की मदद में
कर पाते और अपना नाम अमर कर जाते ।
स्वरचित - डॉ . दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
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