जिनगी के नइये ठिकाना रे संगी ,
सांसें के आना अउ जाना रे संगी ।
देहे के पिंजरा म मैंना फँसे हे ,
एला एक दिन उड़ जाना रे संगी ।
खाये पिये अउ सुत के बिता दे ,
करम ल बने बनाना हे संगी ।
कुछु नई जावय संग म तोर,
नाव ल बने कमाना हे संगी ।
सगा सुवारी म मन ह मोहागे ,
भजनों म मन ल रमाना हे संगी ।
रुपया पइसा ल बने बचाये ,
धरम ल तको बचाना हे संगी ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
☺️ ☺️ ☺️
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