क्यों मार देते हो मुझे ,
कोख के भीतर ही...
दुनिया में क्या नहीं है ,
मेरे लिए एक कोना...
जवाब दो ना...।
क्या है अपराध मेरा ,
कुचल देते हो मेरा बचपन...
कुछ पाने से पहले ही ,
पड़ता है मुझको खोना....
जवाब दो ना....।
अल्हड़ सा मेरा यौवन ,
अभी ही देखा था एक सपना...
पा न सका पागल प्रेमी ,
रूप - रंग मेरा क्यों छीना.....
जवाब दो ना....।
अग्नि के समक्ष लिए थे फेरे ,
किया था तुमने वादा...
क्यों भूल गये उन्हें तुम ,
घूँट जुदाई का पड़ा पीना....
जवाब दो ना....।
सींचा था अपने लहू से ,
ममता से तुझको पाला...
माता को क्यों तू भूला ,
बातों से छलनी किया मेरा सीना...
जवाब दो ना...।
उंगली थामकर तेरी ,
चलना मैंने सिखाया...
आज कदम मेरे लड़खड़ाये ,
पर साथ खड़ा तू कहीं ना...
जवाब दो ना....।।
स्वरचित -- डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
👏👏👏
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