Monday, 16 October 2017

दो कदम तुम चलो


   रवि  बैंक से थका - हारा घर लौटा था....एक गर्म चाय
की प्याली की उम्मीद  कर रहा था ...पर  निशु शायद घर पर  नहीं थी । अरे ! तुम आ गये... मै थोड़ा बाजार चली गई थी , सब्जी लाने  ... ठेले वाले तो  पाँच से दस रुपये बढ़ाकर ही लेते हैं , आते ही निशु ने कहा ।
     हाँ भई ...ठीक है , अब तो जल्दी से चाय पिला दो ...बहुत थकान महसूस हो रही है - रवि ने कहा। निशु तुरन्त चाय बनाने लग गई । आज उसे भी दिनभर काम रहा...वह भी बहुत थकान महसूस कर रही थी। दोपहर में
उसकी ननद आ गई थी , उनके जाने के बाद बच्चों का होमवर्क कराया , उन्हें ट्यूशन छोड़ने गई ...कुछ देर टीचर ने भी ले लिया । वह घर पर भी उन्हें प्रश्न - उत्तर याद करवाने बोल रही थीं क्योंकि बच्चों के सेकंड मिड टर्म होने वाले थे । फिर बाजार चली गईं थी  ,आते ही पति के लिए चाय - नाश्ता बनाकर फिर खाने की तैयारी में जुट गई । रात को देर से  सोना और सुबह जल्दी उठ जाना उसके लिए रोज की बात है... दोपहर में कभी आराम मिलता है कभी नहीं क्योंकि बच्चों के स्कूल से वापस आने का समय हो जाता है । घर पर ढेर सारे काम होते हैं
, कभी गेहूँ साफ करना , कभी किराना समान लाना , बच्चों के प्रोजेक्ट की तैयारी करवाना , उनके स्कूल का
काम पूरा करवाना , बैंक , गैस सब उस की जिम्मेदारी है । लेकिन रवि को ऐसा लगता है कि वह घर पर आराम ही
करती है ,अक्सर इस बात का ताना वह निशु को देते रहता । उसने कभी घरेलू कार्यों को महत्व ही नहीं दिया
न कभी निशु को मदद करने का प्रयास किया ।
      एक दिन वह अपने दोस्त रमन के घर गया था ..रमन
घर पर बच्चे को पढ़ा रहा था । अरे ! तू बच्चे को पढ़ाता है , भाभी नहीं पढ़ाती क्या ?
अरे नही ! पढाती तो वही है  अभी वह खाना बना रही है तो मैंने सोचा ये काम मैं कर देता हूँ । वह जल्दी फ्री हो जायेगी तो थोड़ी देर हम भी साथ वक्त बिता लेंगे । कभी
जब वह बच्चे को पढ़ाती है तो मैं खाना बना लेता हूँ... घर
पर भी बहुत काम रहता है यार , थक जाती है बेचारी । मैं
रोज तो विशेष कुछ नहीं कर पाता पर हाँ छुट्टी के दिन थोड़ी मदद कर  देता हूँ । आज जिंदगी को एक नये नजरिये से देखा था रवि ने । उसने तो कभी यह महसूस नही किया कि निशु को भी मदद की आवश्यकता पड़ सकती है । उसने कभी भी , किसी काम में निशु की मदद
नहीं  की बल्कि अपने काम समय पर न होने पर उस पर झल्लाता रहा । शायद अधिक  थक जाने के कारण ही कभी - कभी वह  चिड़चिड़ा उठती है और बीमार भी पड़
जाती है ।
       रवि को  अपराधबोध हो रहा था .. वह घर आया तो
देखा - निशु बच्चों को पढ़ाने बैठी है । रवि को आया देखकर वह चाय बनाने  उठने लगी तो रवि ने उससे कहा ...तुम पढ़ाओ , चाय मैं बना लेता हूँ । निशु के चेहरे
पर  आश्चर्य मिश्रित खुशी के भाव थे   । पर रवि अपनी
जिम्मेदारी समझ गया था ...वक्त के साथ पत्नियों ने हमारे कितने सारे काम सम्भा ल लिये है..बच्चों को स्कूल
लाने , ले जाने के अलावा बैंक , अस्पताल इत्यादि तो हम
भी तो उनके किसी काम में मदद कर सकते हैं । उनकी भूमिका बदली है तो अब हमें भी बदलने की जरूरत है ।वे तो हमारी मदद करने के लिये कब की चल पड़ी हैं अब
हमारी बारी है  दो कदम चलने की  ।

   स्वरचित - डॉ . दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़

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