चारों ओर गहन अंधकार फैला था...हाथों को हाथ न
सूझता था...न जाने कितने रहस्य छुपाये बैठा है ये
अंधेरा जिसके साम्राज्य में डर , निराशा, नकारात्मकता
हावी दिखाई देते हैं । राहगीर मन में कई संशयों को पनाह देते ...घबराते हुए आगे बढ़ रहा था । भय ने उसके शरीर को शिथिल कर दिया था...ऊपर से झींगुरों की आवाजें , हवा की सरसराहट उसकी हिम्मत पस्त किये दे रही थी । तभी दूर कहीं एक दिए की मद्धिम रोशनी दिखाई पड़ी ....उम्मीद की किरण सी फूट पड़ी मन में , पता नहीं कहाँ से पैरों को नई ताकत
मिल गई ...मन के सारे संशय , भय सब नष्ट हो गये और
उसके भटके हुए कदम सन्तुलित हो गए ।
न जाने कितनी शक्ति है इस नन्हें से दिये में...सरल किन्तु असाधारण । दिये की हल्की सी रोशनी तम को खदेड़ देने के लिए काफी है ।उम्मीद और विश्वास जगाता है दिया, अपने से अधिक सामर्थ्यवान हवा से जूझता हुआ...यह सिखा जाता है कि जब तक दम है अंतर्विरोधों से लड़ते रहो । इसमें ऊर्जा भी है और ऊष्मा भी...रोशन कर देने की शक्ति से भरा यह दिया हमें सिखा जाता है जीवन को सार्थक बनाना । हमारा जीवन कितना दीर्घ या भव्य हो , यह जरूरी नहीं ...कितना सार्थक हो यह जरूरी है । इस छोटे से
दिये ने हमें असंख्य सीखें दी हैं ...दिये और रोशनी की
तरह सम्भावनावान बनें । ऊपर से कितने भी आकर्षक,
चमक - दमक हो पर भीतर से बिल्कुल सरल रहें ।मन में आशा का दीपक जला कर निराशा रूपी अंधेरों को
दूर भगायें ।
दिये की रोशनी हम सबके अन्तस् को
प्रकाशित कर खुशियों से रोशन कर दे । आप सभी के
जीवन से दुःख , निराशा के अंधेरे नष्ट हो और खुशहाली आये यही शुभेच्छा है । दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाएं ।
प्रस्तुति - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़, 🙏🏼😄😄
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