आज भी पतिदेव लेट थे ...रुचि को बहुत गुस्सा आ
रहा था । जब भी ससुराल के कार्यक्रम होते हैं , जनाब
को कोई न कोई जरूरी काम आ ही जाता है । वह कब
से दीदी के घर जाने की तैयारी कर रही थी ..उनकी बेटी
की सगाई थी ..इसके लिये इतनी खरीददारी की ...
दीदी कब से उसे जल्दी आने को कह रही थीं , जल्दी जाना तो दूर ; कार्यक्रम में शामिल होना ही खटाई में पड़ रहा था।
तुरन्त रुचि को बहुत गुस्सा आ जाता है , बाद में
वह शांत हो जाती है... पर इस बार उसने सोच लिया था
उनसे बात नहीं करेगी वह..आने दो । नाराजगी में कपड़ों पर प्रेस करते हुए अपने पैर जला बैठी थी वह ।
रात को पतिदेव आये ...माहौल देखकर ही समझ गये
थे मैडम जी का मूड खराब है ,पर अब क्या करें नौकरी
ही ऐसी है ...कब क्या काम आ जाये कुछ कह नही सकते ।ऐसे समय में बच्चे दल - बदल कर उनकी पार्टी
में चले जाते हैं और इशारों में खुसुर - फुसुर बातें होती
रहती हैं । रुचि सब कुछ जानते हुए टी. वी. देखते लेटी हुई थी । उसके पैर नीचे से खुले हुए थे , अचानक पतिदेव की नजर उसके जले हुए पैर पर पड़ी और वह
तुरंत फ्रिज से बर्फ निकाल लाये । रुचि की लापरवाही पर झल्लाते हुए बर्फ मलने लगे और एंटीसेप्टिक क्रीम
भी लगाया ...जुबान में मिश्री की डली की तरह उसका
गुस्सा भी पिघलने लगा था और मन मधुरता से सराबोर
हो रहा था ।
स्वरचित - डॉ . दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़ ☺️☺️
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