कभी सोचा है तुमने ,
देह के उतार -चढ़ाव से परे...
उसमें एक हृदय होगा ,
वात्सल्य भरी माँ का...
जो धड़कता है सिर्फ ,
अपनी संतान के लिए...
कभी सोचा है तुमने ,
उसमें एक हृदय होगा ,
एक ममतामयी बहन का...
जो सदैव चिंतातुर रहती है ,
अपने भाई के लिए...
कभी सोचा है तुमने ,
उसमें एक हृदय होगा ,
एक स्नेहमयी बेटी का...
जो व्याकुल होगी ,
अपने माता - पिता के लिए..
कभी सोचा है तुमने ,
उसमें एक हृदय होगा ,
एक सेवाभावी पत्नी का...
जो व्रत रखती है ,
पति की लम्बी उम्र के लिए...
कभी सोचा है तुमने ,
उसमें एक हृदय होगा ,
एक प्यारी दोस्त का...
जो वादा करती है ,
मुसीबत में साथ देने का..
कभी सोचा है तुमने ,
वह एक अच्छी इंसान होगी ..
जियेगी और मरेगी जो ,
मानवता की रक्षा के लिए...
कभी सोचा है तुमने ,
देह के उतार - चढ़ाव से परे...
कभी सोचा है तुमने....
स्वरचित --
डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
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