Friday, 16 February 2018

पंखुड़ी गुलाब की ( कहानी )

प्यार एक कोमल एहसास है... वह खूबसूरत भाव जो स्वार्थ , लाभ - हानि के हिसाब से परे होता है ।प्यार बदले में कुछ नहीं चाहता..बस  वह अपने प्रिय को खुश देखना चाहता है...उसे जीवन में आगे बढ़ते देखना चाहता है । वर्तमान में कई ऐसी घटनाएं घटती हैं जिनमें
एकतरफा प्यार में पड़े प्रेमी ने लड़की के इनकार पर उस पर एसिड से हमला  करके उसे घायल कर दिया । उसके चेहरे को वीभत्स बना दिया..उसे जीवन भर की पीड़ा दे दी..मन दुःख से भर जाता है , क्या यही प्यार है..आप जिसे अपना जीवनसाथी बनाना चाहते हैं , यदि
वह आपकी नहीं हो पाई तो आप उसे जीवन भर के लिए दर्द दे देते हैं । यह प्यार तो बिल्कुल नहीं है.. जिसे प्यार किया उसकी आँखों में एक बून्द  आँसू भी  नहीं देख सकते वो प्यार है । कभी - कभी तो प्यार का इकरार किये बिना ही जिंदगी गुजार देते हैं लोग..सिर्फ दोस्त बनकर । एक दूसरे की परवाह करके , एक दूसरे की देखरेख करके.. बिना किसी प्रतिदान की अपेक्षा किये । ऐसे ही प्रेम - कहानियों में से एक कहानी है यश और कीर्ति की ...दोनों एक ही स्कूल में साथ पढ़े ...एक ही जगह पर रहने के कारण दोनों के बीच कब दोस्ती हो गई , पता ही नहीं चला । कॉलेज में भी दोनों का एक ही
विषय था..कक्षा में , प्रैक्टिकल में हमेशा साथ रहते दोस्ती गहरी होने लगी थी ।आपसी समझ भी बढ़ने लगी थी ,  दोनों की दोस्ती में एक - दूसरे की परवाह नजर आने लगी थी इतनी कि अगल - बगल की सहेलियों , दोस्तों को वह महसूस होने लगी और त्रिपाठी मेडम ने यह कहकर कि अरे तुम दोनों के नामों का एक ही अर्थ है.. बोलकर आग में घी डालने का  काम कर दिया था । कक्षा में कीर्ति को निशा कोहनी मारकर बताती कि यश उसे बहुत देर से निहार रहा है । उम्र का भी अपना आकर्षण होता है ..यह आकर्षण उन्हें एहसासों के एक खूबसूरत डोर में बाँधने लगा था । दोनों के बीच बातें कभी पढ़ाई के बाहर नहीं गई ..न ही उन्होंने मर्यादा की सीमा कभी लांघी ।अपने प्रेम की प्रथम अभिव्यक्ति यश ने तब दी , जब कीर्ति ने उससे केमिस्ट्री के नोट्स माँगे ..वह घर पर कॉपी देने आया था और बाहर से ही उसके हाथ में कॉपी थमाकर तुरंत चला गया ..उसके कहने पर भी नहीं बैठा । यह भीनी सी  खुशबू  कहाँ से  आ रही है , उसने कॉपी खोली तो आखिरी पृष्ठ में  गुलाब की पंखुड़ियों  से LOVE  लिखा हुआ था । कीर्ति के दिलोदिमाग में  गुलाब की वह खुशबू बस गई थी ..उसका दिल जोर -जोर से धड़कने लगा था ..दिन  भर यश का ही ख्याल आता रहा ..उसका दिल गुनगुनाने लगा था...
मैं यहाँ और मेरा ख्याल कहाँ ...।
नींद आने का अब सवाल कहाँ...।
तेरी आँखों का चल गया जादू ..।
वरना कुदरत में ये कमाल कहाँ..।
   रात करवटें बदलते बीती..कॉलेज जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी । यश से आँखें कैसे मिलाऊंगी , बस यही विचार उसके मन में आ रहे थे ..संकोच से कदम उठ नहीं रहे थे । पर उसका सामना तो करना ही पड़ेगा..वैसे भी उसने कहीं मेरा नाम तो लिखा नहीं है , मैं क्यों सोचूँ कि यह मेरे लिए है । कीर्ति कॉलेज गई और कक्षा में बिल्कुल सामान्य बनी रही.. उसने यश की कॉपी बिल्कुल उसी स्थिति में वापस कर दिया..धन्यवाद ! बस
इतना ही कहा था उसने । उनकी दिनचर्या सामान्य बनी रही । कभी दो नजरें उठतीं.. एक दूसरे को ढूंढती और नजरें चार होने पर झुक जातीं । दोनों की यही हालत थी
पर दोनों ने कुछ भी  नहीं कहा । कभी - कभी थो ड़ी बहुत शरारतें करता था यश ..और न चाहते हुए भी
कीर्ति मुस्कुरा उठती थी । एक दिन अपनी  स्कूटी की चाबी  वह कक्षा में भूल आई थी..स्टैण्ड में पहुँचने पर देखा , चाबी नहीं है तो वह भाग कर कक्षा में आई । चाबी बेंच पर भी नहीं थी..वह इधर - उधर ढूँढने  पर भी
नहीं मिली ...वह परेशान हो गई , तभी उसके किसी क्लासमेट ने बताया ..चाबी शायद  यश के पास है । कीर्ति  दौड़कर यश के पास गई , पर वहाँ जाकर ठिठक गई...यश उसकी तरफ देखता रहा बिना कुछ कहे , मानो ठान कर रखा हो कि उसके माँगे बिना नहीं देगा ।
कीर्ति को उससे बात करना ही पड़ा ..मेरी स्कूटी की चाबी तुम्हारे पास है ..उसके पूछते ही यश ने मुस्कुराते हुए चाबी निकालकर  उसे दे दी थी । इस तरह दिल के अफ़साने निगाहों से ही लिखे जाते रहे । दिन बीतते रहे..अब वे एम. एस. सी. करने दूसरे शहर आ गए थे ..एक ही विषय ..एक ही कक्षा ...पढ़ाई के प्रति दोनों गम्भीर थे पर आँखों में अब भी स्नेह छलकता था..वे एक -दूसरे का ख्याल रखते थे पर कभी भी उन्होंने अपनी भावनाओं को शब्दों का जामा नहीं पहनाया । यूँ ही वक्त गुजरता रहा ।  पढ़ाई के अंतिम वर्ष  दीपावली की छुट्टियों के बाद कीर्ति  यश से कुछ कटी सी रहने लगी थी ..यश से वह नजरें चुराने लगी थी , बात  करना भी उसने बन्द कर दिया था । एक दिन यश ने उसे लाइब्रेरी में रुकने के लिए कहा और उसके व्यवहार में बदलाव का कारण पूछा । उसकी नजरों में सब कुछ पढ़ने वाले यश ने उसकी बेरुखी भी पढ़ ली थी । दरअसल तब  कीर्ति की दीदी के लव - मैरिज कर लेने पर उसके पिता को हृदयाघात हुआ था और भावुक कीर्ति अपने पिता को फिर  से वही दर्द नहीं
देना चाहती थी ..। फिर से वही  अप्रिय स्थिति उनके सामने नहीं लाना चाहती थी वह ..उसके लिए अपनी खुशी से बढ़कर उसके पापा थे जिन्होंने माँ के निधन के पश्चात माँ - बाप दोनों की भूमिका निभाई थी । यश को बताते हुए आँखें भर आईं थी उसकी..उसके दोनों हाथों को अपने हाथों में लेते हुए यश ने कितनी सुन्दर बात कही थी--मैं तुम्हारी स्थिति समझ सकता हूँ कीर्ति ..प्यार इतना स्वार्थी नहीं होता  कि वह सिर्फ अपनी खुशी देखे । माता - पिता की खुशी सर्वोपरि है हमारे लिये ..वे जैसा चाहते हैं तुम वही करो । मुझे सिर्फ तुम्हारी खुशी चाहिये और कुछ नहीं मेरे लिये जीने की यही वजह काफी है कि तुम जहाँ भी रहो खुश रहो । अगर तुम्हें एतराज न हो तो हम हमेशा दोस्त रहें ..बिल्कुल..अपने आँसू पोछते हुए कीर्ति ने काँपते होठों से कहा था । यश के इतने सुलझे हुए प्रतिक्रिया की उसने कल्पना भी  नहीं की थी ..वह बोझिल मन से उससे मिलने आई थी पर एकदम निश्चिंत होकर वापस जा रही थी । परीक्षा के बाद उसे मालूम हुआ कि यश ने परीक्षा छोड़ दी थी और अपने घर चला गया था । कीर्ति
अपने - आपको अपराधी महसूस कर रही थी..उसकी वजह से यश ने पढ़ाई छोड़ दी , शायद वह कीर्ति का सामना नहीं करना चाहता था.. पर कीर्ति के सामने वह कितना सामान्य बना रहा..अपने मन की व्यथा प्रकट नहीं की । कीर्ति यश से मिलकर उससे पूछना चाहती थी कि उसने अपने करियर को दाँव पर क्यों लगा दिया , पढ़ाई क्यों छोड़ दी परन्तु उससे मुलाकात नहीं हुई । यश अपने परिवार के व्यवसाय में व्यस्त हो गया था कीर्ति अपने जॉब के लिए प्रयास करने में । कुछ वर्षों में कीर्ति की सुयश से शादी हो गई और  यश की  सुगंधा से ..वे  दोनों अपनी - अपनी जिंदगी में  व्यस्त हो  गये
साथ बिताये प्यार भरे पलों की यादों के साथ..जिसने उनके जीवन में उदासियाँ नहीं , खुशनुमा रंग भर दिये थे। गुलाब की पंखुड़ियों की खुशबू उनके जीवन में रच - बस गई थी ।

स्वरचित -- डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़***

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