Monday, 19 February 2018

आजकल के लइका

गली गाँव के सुन्ना परगे ,
जम्मो कुरिया म ओलिहागे ।
चौक - चौपाल म कोनो नई जुरय,
हर हाथ म मोबाइल आगे ।।
फोन म गोठियाथे दिन भर ,
अमरइया मुरझावत हे ।
घर मा नल अउ शॉवर आगे ,
तरिया - नदिया सुखावत हे ।।
घर - घर मा गाड़ी माढे हे ,
रेंगे बर भुलागे जी ।
मैगी अउ कुरकुरे खाथे ,
चीला - फरा नन्दागे जी ।।
किसिम - किसिम के ओनहा पहिरे ,
जूता - सेंडिल के भरमार हे ।
हाथ - गोड़ हलावय नहीं ,
दाई - ददा बनिहार हे ।।
अपन भाखा ल जानय नहीं ,
अंगरेजी म गिटपिटाथे ।
रीति - रिवाज ल मानय नहीं ,
लबर - लबर गोठियाथे ।।
संगी - जवंरिहा भगवान होगे ,
दाई - ददा अलकरहा ।
ऊंखर केहे मा रेंगही ,
सियान ल कहहि भोकवा ।।
लइका ल पोसे बार ,
हाड़ गोड़ कमायेन ।
अपन  मुंह के कौरा ल ,
लइका ल खवायेन ।।
आनी बानी के चीज मंगथे ,
हलाकान कर देथे ।
गोठ सियान के सुनय नहि ,
रतिहा ल बिहान कर देथे ।।

स्वरचित ---डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़

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