अपमानित किया कई बार ,
अत्याचार किया प्रतिदिन ।
बेवजह शक किया मुझ पर ,
लगाये हैं झूठे लांछन ।
चुपचाप सुन करूँ शिरोधार्य ,
मैं वो असहाय सीता नहीं ...।।
परित्यक्ता हूँ ,मैं पतिता नहीं ।।
दूँगी मैं जवाब सारे ,
सवाल जो तुमने पूछे हैं ।
लड़कर लूँगी अधिकार सारे ,
संविधान जो मुझे देते हैं ।
हार मान लूँ दौड़ में ,
ऐसी मैं कायर धाविका नहीं... ।।
परित्यक्ता हूँ ,मैं पतिता नहीं ।।
शुचिता पर मेरी तुमने ,
सदैव उंगलियाँ उठाई ।
अभिव्यक्ति पर मेरी ,
अनगिन पाबन्दियाँ लगाई ।
चट्टानें जिसे रोक पाये ,
मैं वो कृशकाय सरिता नहीं ...।।
परित्यक्ता हूँ, मैं पतिता नहीं ।।
पति का सहारा न हो तो ,
स्त्री कुलटा कहलाती है ।
हर शख्स की लोलुप निगाहें ,
सीना छलनी कर जाती है ।
पत्थर बन जिऊँ सदा ,
मैं वो चिर शापिता नहीं ...।।
परित्यक्ता हूँ ,मैं पतिता नहीं ।।
स्वरचित ---डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़😃
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