Sunday, 4 February 2018

शायद ( कहानी )

तीन बहनों में सबसे छोटी नेहा लाडली थी सबकी । उसकी पढ़ाई अभी पूरी ही हुई थी कि माँ का देहांत हो गया । पिता का स्वर्गवास तो बहुत पहले ही हो गया था जब वह बहुत छोटी थी । पापा का चेहरा धुंधला सा याद आता है उसे ... गोदी में  लेकर घुमाया करते थे उसे , कभी - कभी हवा में उछाल कर खूब हँसाया करते थे उसे ...पिता की गोद कितनी अनमोल होती है , उनके न रहने पर महसूस हुआ ।  माँ ने किसी तरह पालन - पोषण किया  , सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई उसकी बहनों ने । दोनों बहनों से वह बहुत छोटी थी  , उनका प्यार खूब मिला उसे । बहनों ने  स्वतः अपनी जिम्मेदारियां सम्भाल ली । रश्मि दीदी पढ़ - लिखकर नौकरी करने लगी तो उन्होंने घर की जिम्मेदारी संभाल ली । उनकी शादी होते तक स्वाति दीदी की नौकरी लग चुकी थी  । रश्मि दीदी ने स्वाति दीदी की शादी का खर्च उठा लिया और माँ  की आधी चिंता दूर कर दी । स्वाति दीदी की शादी होते तक नेहा की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी और वह भी नौकरी की तलाश में जुट गई थी । आग में तपकर ही सोना खरा बनता है..विपरीत परिस्थितियों ने  तीनों बहनों को  जिम्मेदार बना दिया था , वे अपनी
पढ़ाई के प्रति  सजग थी  , अपना भविष्य  सँवारने के लिए तत्पर थीं  इसलिए पढ़ते ही नौकरी पाती गई । नेहा  भी शासकीय स्कूल में व्याख्याता हो गई थी । नेहा की शादी का जिम्मा स्वाति दीदी ने ले लिया था । इस तरह बहनों ने माँ की जिम्मेदारी  आपस में बाँटकर एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत किया था  ।  काला टीका किसी की नजर उतारने के लिए  अच्छा माना जाता है परन्तु यही रंग  किसी  तन के लिए अभिशाप बन जाता है । बहनों का प्यार व देखभाल कहीं समाज में  सराहा जा रहा था तो नेहा के ससुराल वालों के लिए आपत्ति का प्रमुख कारण बन गया था । नेहा  की अपनी विचारधारा भी बहनों द्वारा सिखाई जाने वाली कही जाने लगी थी ।नेहा के पति किसी और शहर में नौकरी करते थे और प्रत्येक शनिवार को घर आते थे । उसके एक जेठ थे जिन्होंने  शादी नहीं  की थी । ससुर का निधन हो गया था । सास और जेठ ,बस  दो ही लोग थे । नेहा नौकरी के साथ परिवार की अपेक्षाओं पर भी खरा उतरने की कोशिश कर रही थी परंतु  सासु माँ  खुश ही नहीं रहती थी । अपने बेटे को भी नेहा के खिलाफ़ भड़काती रहती
कि उसे अधिक छूट मत दो । कहीं भी आने - जाने की उसे अनुमति लेनी पड़ती थी , उसके पति माँ का सम्मान करते थे या यूँ कहें कि शब्दशः अपनी माँ की बात मानते थे  । पर नौकरी करने वाली स्त्री को यूँ बन्धन में किस तरह बाँधा जा सकता था । कभी घर की जरूरतों के लिए , कभी स्कूल के काम से ,  प्रशिक्षण में जाने के कारण थोड़ी - बहुत देर हो ही जाती थी  , जो उनके जीवन में तनाव उत्पन्न कर रही थी । अब उनके जीवन में एक प्यारा सा बेटा भी आ गया था..नेहा को विश्वास था कि  पोते का प्यार सास और पति का उसके प्रति रूखा व्यवहार बदल देगा , पर ऐसा नहीं हुआ ।
      नेहा ससुराल के कठोर अनुशासन में निभाने का प्रयास करती रही  । बहनों ने   सामंजस्य का एक रास्ता सुझाया कि घर के ऊपरी हिस्से को बनवाकर वहीं शिफ्ट हो जाओ तो परिवार का साथ भी बना रहेगा और तुम्हें कुछ समय अपने लिये भी मिल सकेगा । अलग रहकर भी साथ  रहोगे और छोटी - छोटी बातों से होने वाला तनाव भी कम हो सकेगा । नेहा के  स्कूल जाने पर  बच्चे को दादी की देखभाल व प्यार भी मिलता
रहेगा । उसके पति भी कभी माँ , कभी पत्नी की शिकायतों से तंग थे ..उन्हें भी यह  सुझाव पसन्द आया और उन्होंने ऊपर घर बनवाने के लिए हामी भी भर दी ।
घर बनने के बाद दो वर्ष ही ऊपर रह पाये थे कि सास की   शिकायतों एवं गलतफहमी उत्पन्न करने की प्रवृति के चलते पति - पत्नी में फिर से झगड़े शुरू हो गए । एक बार तो नेहा के पति ने उसे घर से ही निकाल दिया । यह तो अच्छा हुआ कि उसकी रश्मि दीदी वहीं रहती थी , नहीं तो वह सड़क पर आ जाती । दोनों बहनों ने उसके ससुराल जाकर उसके पति और सास , जेठ से बातचीत कर समझौता करवाने का प्रयास किया । जो भी दूरियाँ उनके दिलों में आ गई थीं उन्हें दूर करने का प्रयास किया । उनके प्रयासों का यह परिणाम निकला कि वे कुछ शर्तों पर समझौता करने के लिए  मान गये ।
सुखद गृहस्थ जीवन के लिए सामंजस्य और एक - दूसरे पर विश्वास रखना आवश्यक है ...अगर यह न हो पाए तो रिश्तों को सम्भालना मुश्किल हो जाता है । सबसे बड़ी परेशानी बच्चों की परवरिश में आती है क्योंकि बच्चे के जीवन में एक कमी सी आ जाती है , घर में कलह का वातावरण उनके  शारीरिक , मानसिक विकास को अवरुद्ध कर देता है ।
      अब  नेहा को किराए के घर में रहना पड़ रहा था । बेटे के लिए उसने दो ऑटो किया था ..पहला ऑटो उसे स्कूल छोड़ता था और दूसरा छुट्टी के बाद दादी के घर पर । नेहा बेटे के स्कूल जाने के बाद अपने स्कूल चली जाती थी और लौटते समय बेटे को ससुराल से लेकर घर आ जाती थी ।  उसके पति प्रत्येक शनिवार को आते थे ...फिर वे ही सब सामान खरीद कर लाते थे घर की जरूरत की चीजें  लेने की भी नेहा को इजाजत नहीं थी । अपनी कमाई से भी खर्च करने का उसे अधिकार नहीं था । उसके पति अपनी माँ के घर ही रुकते थे । जीवन इसी प्रकार चल रहा था कि उसके पति को हृदय सम्बंधित कुछ समस्याएं होने लगीं थीं ।
उनकी मानसिक उद्विग्नता , तनाव  शायद इसकी वजह थी । उनकी माँ के क्रोधी  , शक्की स्वभाव ने उनके अपने ही बेटे की जिंदगी में जहर घोल दिया था । वह मानसिक ही नहीं शारीरिक रूप से भी बीमार हो गए थे । एक रात वह अपने कमरे में सोये थे ..सुबह समय पर उठे नहीं तो माँ  , भाई ने बहुत आवाज लगाई ...अंदर से कोई जवाब नहीं आने पर दरवाजा तुड़वाया गया । अंदर उनका बेटा जमीन पर गिरा पड़ा था.. शायद रात को उन्हें हृदयाघात हुआ होगा ...उन्होंने दरवाजे तक पहुँचने का प्रयास किया था पर पहुंच नहीं पाये ...वहीं उनका निधन हो चुका था । माँ अविचल हो अपने बेटे के निश्चेष्ट देह को देख रही थी..बेटे को अपने नियन्त्रण में रखने की उनकी जिद का यह दुष्परिणाम उनके सामने था । वह भूल गई कि पतंग की ऊँची उड़ान के लिये उसकी डोर को ढील देना पड़ता है , अधिक तनाव से उसके टूटने का डर रहता है । काश ! वह अपने बेटे - बहु की गृहस्थी के बीच में न आई होतीं तो उनका बेटा जीवित होता ।  बच्चे  यदि गलती करें तो उन्हें समझाना माता - पिता का फर्ज होता है ,  यदि मैं कोशिश करती तो बेटे की गृहस्थी बच जाती ....शायद वह अपनी पत्नी के साथ होता तो कम से कम तुरन्त चिकित्सा मिल जाती ...शायद वह बच गया होता..शायद...अनगिनत ऐसे ही शायदों ने नेहा की सास का हृदय - परिवर्तन कर दिया था । अब उन्होंने नेहा और उसके बेटे दोनों को अपना लिया है और वे सब साथ ही रहते हैं । पर अब भी एक बात उन्हें परेशान करती रहती है...शायद उनका बेटा आज जीवित होता..शायद ।

स्वरचित -- डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़

No comments:

Post a Comment