उस प्रेमी युगल को देखकर प्रत्येक व्यक्ति हैरान होता था..कॉलेज में सबको आश्चर्य हुआ था कि अनुभा अन्वय से प्रेम करती है... आश्चर्य से अधिक ईर्ष्या हुई थी ..अबे यार...क्या देखा उसमें ...हम इतने दिन चक्कर लगाते रहे और उसने पसन्द भी किया तो किसे ! काला कलूटा , न शक्ल न सूरत ..लोफर दिखता है पूरा लोफर..और एक ही कक्षा में दो - तीन साल पढ़कर बेस मजबूत कर रहा है । इतने बड़े कॉलेज में उसे कोई और नहीं मिला । सभी तरफ उनके प्यार के ही चर्चे थे पर उन्हें किसी की बातों से कोई फर्क नहीं पड़ा था.. वे एक दूसरे के हाथों में हाथ डाले घूमते रहते ।पर यह सच भी तो था..अनुभा दिखने में जितनी सुन्दर ..अन्वय उतना ही बदसूरत था ..हाँ उसकी ऊँचाई अच्छी थी और देहयष्टि थोड़ी तगड़ी भी.. पर अनुभा का रंग एकदम गोरा ..संगमरमर की तरह झक सफेद..स्निग्ध , बड़ी - बड़ी आँखें जिनमें पूरी दुनिया समा जाये और काली घटाओं की तरह लम्बे काले बाल ..जिन्हें कभी - कभी खुले रखकर सबके होश उड़ा देती थी वह । इसके ठीक विपरीत अन्वय का रंग एकदम काला था ..बहुत रईस भी नहीं था पर खाते - पीते परिवार का था । कॉलेज में बाइक से आता था.. बाइक से उतर कर अमिताभ की स्टाइल में बालों में हाथ फेरता ..शायद उसके पास एक यही चीज थी जिस पर उसे अभिमान था और अनुभा को उसने अपने स्टाइल से ही खुश किया था । कई बार उसे लिफ्ट भी दी थी और पानीपूरी , चाट खिलाने भी ले गया था । दूसरों की मदद करने की उसकी भावना ने भी अनुभा को प्रभावित किया था । अनुभा को एक - दो बार अवसर मिला था जब उसने अन्वय की मन की खूबसूरती देखी थी जिसकी आभा में उसका काला रंग दब गया था । दूसरी सबसे बड़ी असमानता थी पढ़ाई...अनुभा कक्षा में प्रथम आने वाली कुशाग्र बुद्धि छात्रा थी और अन्वय बड़ी मुश्किल से पास होता था ..कभी - कभी किसी कक्षा में दो वर्ष भी रहा ...बारहवीं तक तो यही रिकॉर्ड रहा उसका..बी. ए.
प्रथम वर्ष मुश्किल से पास हुआ था कि ये प्रेम रोग लग गया ...अब तो कहाँ पढ़ाई ..कहाँ की परीक्षा ...इस खूबसूरत एहसास ने साधारण सी दिखने वाली चीजों को भी खास बना दिया था..अनुभा के साथ किसी तालाब का किनारा भी झील की तरह मोहक लगता..
आसमान बहुत खूबसूरत लगता और हर मौसम बसन्त की तरह मादक लगता...जिन नजारों को उसने कभी ध्यान से देखा नहीं था वे अनुभा के साथ बड़े प्यारे लगने लगे थे । ..द्वितीय और तृतीय वर्ष में उसके रिजल्ट चौंकाने वाले थे...उसने अनुभा की तरह ही बहुत अच्छे अंक लिए थे । उसके परीक्षा परिणाम में यह बदलाव सबको चकित कर गया था और उसके माता - पिता , भाई - बहन सब बेहद प्रसन्न थे । जिस प्यार ने उसमें इतना अभूतपूर्व परिवर्तन ला दिया उसे सबकी स्वीकृति अपने - आप मिल गई थी । उसके बाद उनके कदम रुके नहीं ..एम.
ए. में अनुभा और अन्वय दोनों प्रावीण्य सूची में अपना नाम दर्ज करा चुके थे और संजीदा होकर प्रतियोगी परीक्षाओं में जुट गये.. इसी वर्ष उन्होंने शादी कर ली । अन्वय के घर में तो सभी तैयार थे पर अनुभा के परिवार वाले नाराज थे ...उन्हें लगता था कि अनुभा के लिए एक से बढ़कर एक अच्छे रिश्ते मिल सकते थे , उनके अनुसार दोनों की जोड़ी बेमेल थी । पर जब उन दोनों के बीच रूप - रंग बाधा नहीं बनी तो किसी और की आपत्ति से क्या होता । वैसे भी प्यार के लिये दिलों का मिलना जरूरी होता है , इसमें जाति - भेद , रूप - रंग
इत्यादि बाधा नहीं बनते..यदि परिवार की सहमति मिल
जाये तो खुशियाँ दुगुनी हो जाती हैं । अनुभा के साथ
ऐसा नहीं हुआ पर अन्वय के पापा मम्मी ने यह कमी पूरी कर दी ...उन्होंने स्वयं दोनों की शादी करवाई । अनुभा के प्यार ने उनके बेटे का भविष्य सँवार दिया था ...वह पढ़ाई के प्रति संजीदा हो गया था साथ ही घर की जिम्मेदारियों के प्रति भी । जल्द ही दोनों ने सहायक प्राध्यापक परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी और आस - पास ही दोनों की नियुक्ति हो गई थी ।प्रेम लोगों को बर्बाद कर देता है इस धारणा को झुठला दिया था उन्होंने.. उनकी सफल प्रेम कहानी समाज में एक उदाहरण बन गई थी ..स्नेह और विश्वास के तिनकों से बनाये घरौंदे में वे खुशी से रहने लगे थे । पर विधाता के
लेख को कौन बदल सकता है..दो वर्षों के पश्चात एक
भयानक दुर्घटना में अन्वय का निधन हो गया । पत्थर सी बन गई थी अनुभा..अपने सामने अपने प्रिय को दम तोड़ते देखा उसने ..पर उसे रोक न पाई । जीवन ने ये कैसे मोड़ दिखाये थे उसे..सारी खुशियाँ मरीचिका की तरह अचानक गायब हो गई थी । अन्वय के प्रेम भरी यादों ने अनुभा को वो शक्ति प्रदान की थी कि उसके परिवार की देखभाल को उसने अपना कर्तव्य मान लिया था.. सात फेरों के बंधन इतने कमजोर नहीं थे कि एक ही जन्म में टूट जाते..अपने प्यार से किये वादे वह नहीं भूली थी न ही भूलेगी.. अनुभा ने संकल्प लिया था उसके माता - पिता और भाई - बहनों को संभालने का ...उसके परिवार को अनुभा के प्यार में सदा अन्वय दिखाई देता मानो उसकी आत्मा रह गई हो अनुभा के शरीर में..प्रेम ने दो जानों को एक कर दिया था । फूल की खुशबू दिखती नहीं परन्तु अपनी उपस्थिति महसूस कराती है उसी प्रकार प्रेम जीवन में अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है । अनुभा को जिंदगी ने प्रेम के कई रंग दिखाये थे..पर हर रंग को उसने निष्ठा के साथ अपनाया था और हर परीक्षा में वह खरी उतरी थी ।
स्वरचित -- डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़
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