Friday, 30 March 2018

दहेज - उत्पीड़न कब तक?

आज फिर अखबार की सुर्खियों में दहेज की प्रताड़ना से दुखी  पीड़िता द्वारा खुदकुशी की खबर पढ़कर  मन खिन्न हो गया..कभी दहेज के लिए दुल्हन को जला देने की खबर , कभी शादी टूटने की खबर मन को उद्वेलित कर देती है.. आखिर कब तक यह दानव मासूमों की जान लेते रहेगा ..कितने घरों को बर्बाद करता रहेगा , कब रुकेगा यह सिलसिला मौत के तांडव का ?
      कहते हैं ना कि बेटी घर की रौनक होती है.. कितने अरमानों के साथ पिता अपनी बेटी का पालन पोषण करता है.. उसके नखरे उठाता है.. अपने दिल के टुकड़े
को डोली में बिठाकर विदा करता है ..तलाश करता है उसके लिए एक ऐसे घर की , जहाँ उसे प्यार , मान -
सम्मान मिले...अपनापन मिले , वह सदा खुश रहे ।  ढूँढता है ऐसा हमसफ़र जो जीवन के हर मोड़ में , सुख में  ,दुख में उसका साथ दे ...
   जहाँ बचपन गुजारा उस आँगन को छोड़कर किसी और के घर - आँगन  सँवारने चल पड़ती हैं बेटियाँ...एक अनजान शख्स का हाथ पकड़ किसी अनजान सफर पर चल पड़ती है सिर्फ यह विश्वास मन में लेकर कि वह जीवन भर उसका साथ निभायेगा  , जी भर प्यार लुटाने वाले भाई बहन , माता पिता को छोड़कर   वह एक अनजान परिवार को दिल से अपना लेती है । पति से जुड़े सारे रिश्तों को अपना मान लेती है  , उन की देखभाल सेवा करती है । पर वही पति जब उस विश्वास को तोड़ देता है..रिश्तों को धन के तराजू में तौलने लगता है ...पत्नी को सोने के अंडे देने वाली मुर्गी समझने लगता है...दहेज के लिए उसे प्रताड़ित करने लगता है..दिन रात ताना मारकर उसका जीना मुश्किल कर देता है तो क्या बीतती होगी उस पर
विश्वास के बदले मिलता है धोखा , प्यार के बदले मिलता है शिकायतों  , गालियों भरे ताने , नफ़रतें  । हिंसा , मारपीट  करके , डरा धमका कर उसे पिता से रुपये माँगने के लिए मजबूर करते हैं । शादी खत्म करने की धमकी देते हैं  , जला कर मार डालते हैं.. आखिर क्या दोष है उसका ..लड़की का जन्म लेना ?
  क्यों टूट जाती है स्नेह के मनकों से बनी विश्वास की माला .. रिश्तों की नाजुक डोर ...सात जन्मों के रिश्ते सात माह भी नहीं टिकते । आखिर क्यों लालच की बलि चढ़ जाता है इतना पावन रिश्ता ..क्या ऐसे लोग समाज में रहने के योग्य हैं... ऐसे लोगों को चिन्हित कर समाज से अलग नहीं कर देना चाहिए । कानून द्वारा इनके लिए कड़ी सजा के प्रावधान हैं पर  यह काफी नहीं है । ये एक नहीं कई लोगों की जिंदगी बर्बाद करते हैं , इसलिए इन्हें पहचान कर इनका बहिष्कार किया जाना चाहिए ।
   सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि कुछ लड़की वाले अच्छे रिश्ते पाने के लिए  अच्छा दहेज देने की पेशकश करते हैं । घर , कार और न जाने क्या...ऐसे लोगों की शह पाकर इनका भाव और बढ़ जाता है ।  दहेज के लालची लोगों को यदि कोई अपनी बेटी न दे तभी उनको सबक मिलेगा । चेहरे से तो लोगों के विचारों का पता लगाना मुश्किल होता है पर समाज में इतनी जागरूकता होनी चाहिए कि  सम्बन्धी , पड़ोसी ,दोस्त ऐसे लोगों से लड़की वालो को सावधान करें । उन्हें हतोत्साहित किया जाना चाहिए कि यदि आपने दहेज की बात भी की तो आपको विवाह के लिए कोई लड़की देने को तैयार नहीं होगा ।  यहाँ तो एक दहेज देने से मना करे तो दूसरा अधिक दहेज  देने की पेशकश कर शादी के लिए तैयार हो जाता है । याद रखिये लालच का घड़ा कभी नहीं भरता । कोई भी उपाय सोचकर हमें अपनी लाड़लियों को बचाना होगा ऐसे दानवों के हाथों में पड़ने से  ।
इस दहेज ने फैलाया भारी अत्याचार है ।
इस दानव को मार भगाओ यह समाज का भार है ।।

स्वरचित -- डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़

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