Tuesday, 30 July 2019

ग़ज़ल

अब्दों से चली आ रही  पुरानी रवायत है ,
वर्तमान सदा अतीत से करता # शिकायत है ।

आज जो नया है वह कल तो पुराना होगा ,
वक्त को रोके रखने की किसकी हिमाकत है ।

नींव को तो  आदत है नीचे दबे रहने की ,
नजरों में बने रहना महलों  की सियासत है ।

हारने वालों को कहाँ पूछती है ये  दुनिया ,
जीतनेवालों  की सदा  करती जो इबादत है ।

लाजमी तो है पौधों का दरख़्त बनना "दीक्षा" ,
बुजुर्गों पर नजरें फिर क्यों न होती इनायत है ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

Friday, 26 July 2019

ग़ज़ल

दुनिया में सच - झूठ की जंग जारी है ,
यहाँ  नेकी बदी से कब कहाँ हारी है ।

बेच दिया ईमान उसने  चंद सिक्कों में ,
जरा बच कर रहना  यह एक बीमारी है  ।

दिखावे की चौंध में छुप गई सच्चाई ,
चेहरा अब मुखौटों की  हुई आभारी है ।

शहर खामोश है जरा अदब से रहना ,
हथौड़े की हर  चोट  पत्थर पर भारी है ।

फिदा न होना किसी की  मीठी जुबान पर ,
दाना  डालकर  तुम्हें फांसने  की तैयारी है ।

स्वरचित  - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

Wednesday, 24 July 2019

पहला खत

वो पहला खत ...
था बहुत खास ।
किया था जिसमें ,
प्यार का इज़हार ।
मुश्किल बहुत था
लफ़्ज़ों को चुनना  ।
ख्वाहिशों के रेशे ,
एहसासों  से बुनना ।
लिखना , मिटाना ,
फाड़कर फिर लिखना ।
उसे जेहन में रख ,
चूमा था खत कई बार ।
प्रेम की स्याही से ,
घर की दीवारें रंगना ।
लफ़्ज़ों में उसका ,
चेहरा नजर आना ।
ख्यालों से उसके ,
फिजां महक जाना ।
सन्देशा पहुँचाने को ,
था दिल बेकरार ।
उसका मुड़कर देखना ,
देख कर मुस्कुराना ।
चाहतों का जादू ,
दिल पर छा जाना ।
निगाहों निगाहों में ,
किया था इकरार ।

*** डॉ. दीक्षा चौबे

Monday, 22 July 2019

उपकार ( लघुकथा )

डिप्टी कलेक्टर के पद पर चयनित होने पर ग्राम सभा द्वारा आज नीरज को सम्मानित किया जा रहा था । जब नीरज को दो शब्द कहने के लिए बुलाया गया तो सबसे पहले उसने अपनी माँ को स्टेज पर बुलाया जो दूसरों के घरों में बर्तन माँजती थी । उनके चरण छूकर उसने अपना स्मृति चिन्ह उन्हें ही देते हुए कहा कि यह माँ के #उपकार हैं कि आज मैं इस पद पर पहुँच पाया। स्वयं भूखी रहकर इन्होंने मुझे पढ़ाया ...साथ ही उन दोस्तों का मैं सदैव शुक्रगुजार रहूँगा जिन्होंने कदम - कदम पर मुझे यह याद दिलाया कि मैं एक काम करने वाली बाई का बेटा हूँ । उन्होंने मुझे अपमानित करने के लिए ऐसा किया पर यह मेरे लिए सम्मान की बात है क्योंकि ईमानदारी से किया जाने वाला कोई भी  काम तुच्छ नहीं होता । उनकी  टिप्पणियों की वजह से मुझे अपने जीवन का लक्ष्य हमेशा याद रहा और मुझे मेहनत करने की प्रेरणा मिली । उन्होंने  अप्रत्यक्ष रूप से मुझ पर उपकार ही किया  इसके लिए मैं उनका बहुत आभारी हूँ। आज उन सब विरोधियों के सिर शर्मिंदगी से झुके हुए थे ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

Wednesday, 17 July 2019

सावन

खेतों में हरियाली छाई , दृश्य हुआ मनभावन ।
मेघों के रथ पर चढ़कर , बरसता आया सावन ।।

तृप्त हुई प्यासी धरा , नेह से भीगा  तन - मन ।
बढ़ गया दर्द बिछोह का , याद आ गये साजन।।

दादुर , मोर , पपीहा बोले , गरजे बदरा घन घनन ।
मद मस्त हो नाची गोरी , पायल छनके छन छनन।।

पेड़ों पर झूले पड़ गये , सखियों संग आया बचपन ।
मगन हो थिरक उठी मैं , पीहर का भाया आँगन ।।

बारिश की रिमझिम फुहार में बौराया जग का मन ।
झूम उठे सब मस्ती में , अंकुरित हुआ नव - जीवन ।।

मिट्टी की गंध घुली पवन में , सुवासित हुआ चमन ।
खुशहाली में झूमे धरती , हुआ शुभ्र धवल गगन ।।

कर्मस्थली को पग बढ़ाता , हलधर प्रफुल्लित मन ।
उमंग औ उत्साह भर जाता , जमकर जो बरसे सावन ।।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

Monday, 15 July 2019

भोर


भोर की स्वर्णिम आभा  से ,
आच्छादित हुआ आसमान है ।
अरुणाभ सूर्य की लालिमा से,
रंगे  नभ के #अरमान हैं ।

उषा ने बिखराई  रंगोली ,
चिड़ियों के मधुर मधु गान हैं ।
अंगड़ाई ले  प्रकृति जाग उठी ,
क्षितिज तक फैली #मुस्कान है ।

झुकी पलक सी बंद फलक ,
कमलिनी का हुआ विहान है ।
रवि के स्पर्श से खुले पटल ,
प्रिय के #विश्वास का सम्मान है ।

शबनम ने नहलाये पत्ते ,
कलियों , पुष्पों ने बढ़ाया मान है ।
#मेहनत से धरा की चूनर ,
रंगने को तत्पर # इंसान है ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

Sunday, 14 July 2019

बारिश

घास - फूस की छत है , मिट्टी की दीवार ,
कभी सताये आंधी , कभी पानी की बौछार ।

पानी भरा घर - आँगन ,निकाल रही माँ बुहार ,
चौबारे  बैठा मुर्गा  लगा रहा दाने  की गुहार ।

सीली सी दीवारें हैं , उनमें पड़ रही दरार ,
चूल्हा ठंडा पड़ा , बारिश में बंद रोजगार ।

मुफलिसी है किस्मत , पड़ी सावन की मार,
जिंदगी की नाव बह रही , मजबूरी की धार ।

पक्के घर खुशी मनाते , कच्चे घर बेजार ,
ईश्वर क्यूँ न सुनता इनकी करुणा भरी पुकार ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

Thursday, 11 July 2019

उम्मीद

उम्मीद....
किसी सूखे पेड़ पर
उगी हुई नन्हीं सी कोंपल ,
मृत्यु शय्या पर पड़े रोगी को
कुछ और पल  मिल जाने की आस ।
उम्मीद....
भूखे को रोटी ,
प्यासे को पानी की
अनाथ को आसरे की
पीड़ित को न्याय का विश्वास ।
उम्मीद....
विद्यार्थी को सफलता की
बेरोजगार को नौकरी की
भटके हुए को लक्ष्य की तलाश ।
उम्मीद....
रोगी की दवा
बुजुर्ग की  दुआ
जीने की चाह खुद पर विश्वास ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

श्रद्धांजलि

मामाजी ...आप बहुत याद आयेंगे
****************

  आज जब भैया ने फोन किया कि पापा नहीं रहे तो कुछ पल के लिए  मैं स्तब्ध रह गई । उनकी नाजुक हालत के बारे में जानते हुए भी मन यह स्वीकार करने को तैयार नहीं था कि वे अब इस दुनिया में नहीं रहे । मैं उन्हें देखने जाना चाहती थी पर यह डर बना रहा  कि जिन्हें मैंने हमेशा अदम्य ऊर्जा से भरपूर , स्नेहिल व प्रेरणादायी रूप में देखा , उन्हें असहाय अवस्था में बिस्तर पर लेटे कैसे देख पाऊँगी । किसी अपने को मृत्यु की ओर शनैः शनैः जाते देखना अत्यंत पीड़ादायक होता है इस जगह पर आकर इंसान कितना बेबस हो जाता है ना उस अदृश्य सत्ता के आगे । माँ को भी जाते हुए बस देखती रही , कुछ नहीं कर पाई ...अब मामाजी भी ।
             मैंने अपने नाना जी को कभी नहीं देखा परन्तु डॉ. मामा में उनकी झलक अवश्य देखती थी । माँ को मामाजी एक अभिभावक की तरह ही दुलार करते थे । माँ के निधन के पश्चात उनसे मिलने पर माँ की स्मृतियाँ मानस पटल पर किसी चलचित्र की भांति जीवंत हो उठती थी । माँ की छबि मामा में दिखती है इसलिए शायद यह रिश्ता इतना प्यारा होता है । मेरे बचपन की समृतियों में डॉ. मामा का महत्वपूर्ण स्थान है । उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व और विचारों की मेरे मन में गहरी छाप थी । बलौदा , डॉ. मामा और गर्मी की छुट्टियाँ एक - दूसरे का पर्याय थी । वे चाहते थे कि मैं डॉ . बनूँ पर वह हो नहीं पाया  , लेकिन मेरे पी एच. डी. करने के बाद उन्होने कहा था डॉ. तो तुम्हें बनना ही था । जीवन के प्रति उनका सकारात्मक नजरिया हमेशा आगे बढ़ने को प्रेरित करता था । बरगद के वृक्ष की तरह कई रिश्तों को उन्होंने अपने स्नेह की छाया में सहेजकर रखा था । उनके जाने के बाद समझ आ रहा है कि हमने क्या खोया है । उनका जाना एक अपूरणीय क्षति है । उनका हँसता मुस्कुराता , मुझे चिढ़ाता चित्र ही मैं आजीवन अपने हृदय में सँजोये रखना चाहती हूँ । वे   आज चिरनिद्रा  में लीन हो गये हैं परन्तु हमारी स्मृतियों में वे सदैव बने रहेंगे । ईश्वर उनकी आत्मा को सुकून प्रदान करे । मेरे प्यारे डॉ. मामा  को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि व सादर नमन 🙏🙏🙏

Monday, 8 July 2019

वक्त गुजरने से पहले

मन को स्वच्छ करना होगा ,
गंगा में  उतरने  से पहले ।
जीवन सफल करना होगा ,
#वक्त गुजरने से पहले ।

सीरत को सुधारना  होगा ,
सूरत सँवारने से पहले ।
देना  भी सीखना होगा ,
हाथ पसारने से पहले ।

गहराई में जाना होगा ,
मोती निकालने से पहले ।
लहरों से लड़ना होगा ,
समंदर फतह करने से पहले।

कीचड़ में धँसना होगा ,
कमल तोड़ लाने से पहले ।
जीत तक लड़ना होगा ,
मैदान छोड़ जाने से पहले ।

पेड़ तो लगाना होगा ,
फूल फल पाने से पहले ।
हल को चलाना होगा ,
फसल उगाने से पहले ।

सुर को साधना होगा ,
संगीत बनाने से पहले ।
शब्दों को सजाना होगा ,
गीत में ढल जाने से पहले ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

दूर के ढोल ( कविता )

स्वार्थ के तराजू में , इस दिल को न  तू तौल  ,
सोने के चंद सिक्के , चुका न पायें इसका मोल ।

बिकता न हाट बाजार , न कर इसका व्यापार ,
कद्र कर  सहेज इसको  , ये प्यार बड़ा अनमोल ।

छल कपट से परे रह ,  मधुर  रख  व्यवहार ,
दिलों को जीत लोगे  , बस बोल दो मीठे बोल ।

सही - गलत की परख कर, पकड़  सही राह ,
न भटक अंधेरी गलियों में ,आँखें अपनी खोल ।

मीठी बातों के जाल हैं , दिखावे की दुनिया ,
बचकर रहना  इनसे ,बड़े सुहाने दूर के ढोल ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

Thursday, 4 July 2019

परवरिश ( लघुकथा )

आज पुलिस की वर्दी में अभय ने  सविता के पैर छुए तो उसकी आँखें भर आईं और पच्चीस वर्ष पहले की घटना याद आ गई । सविता के पति पुलिस अधीक्षक थे उन्होंने जब एक चोर को पकड़ा तो वह अपने छः वर्ष के बेटे की चिंता कर रो पड़ा था और वे उस बालक अभय को अपने घर ले आये थे । जहाँ दो बच्चे पल रहे हैं वहाँ एक और सही ..उनकी दी गई शिक्षा और सही परवरिश का ही नतीजा था कि अभय पढ़ - लिख कर उच्च पद पर पहुँच गया था वरना जिस माहौल में वह रह रहा था शायद चोर उचक्का ही बनता । अभय ने भी बहुत मेहनत की , उन्हें कभी निराश नहीं किया । बच्चे तो मिट्टी की तरह होते हैं , उन्हें जैसा वातावरण मिलता है ढल जाते हैं... सविता अपनी आँखों में आँसू लिये अपने दिवंगत पति को श्रद्धांजलि अर्पित कर रही थी ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

आस

याद है तुम्हें वो दिन ,
जब हम - तुम मिले थे ...
एक - दूजे का हाथ पकड़कर ,
कुछ दूर संग चले थे...
दिलों में नजदीकियां थीं ,
पर दुनिया के फासले थे...
निगाहों में मोहब्बत थी ,
रिवाजों ने लब सिले थे ...
छुप छुप के रोज मिलने के ,
चल पड़े सिलसिले थे ...
प्यार के  इस चमन में ,
खुशियों के गुल खिले थे...
दामन में चाँद - सितारे ,
शिकवे न कोई गिले थे...
नज़र लगी ये किसकी ,
किस आग से घर जले थे ...
मजहबी फ़सादों ने ,
पस्त किये हौसले थे ...
पुरनम इन हवाओं में ,
मतलबपरस्ती के जहर घुले थे...
ख़ाक हो गई देह पर ,
बाकी प्यार की प्यास है...
इस जहां के पार भी ,
रूह को मिलन की आस है..
चलो हम तुम तारों के पार जायें ,
प्यार भरा एक नया जहां बसायें ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

Wednesday, 3 July 2019

मीडिया और हम

सोशल मीडिया आज हमारे जीवन का महत्वपूर्ण अंग बन गया है । सिक्के के दो पहलू की तरह इसके भी सकारात्मक और नकारात्मक दो पक्ष हैं । यह तो हम पर निर्भर करता है कि हम इसका कैसे उपयोग करते हैं । सोशल मीडिया ने जहाँ जिंदगी को एक नई ऊंचाई प्रदान की है , गति दी है वहीं कई अपराधों को भी बढ़ावा दिया है । कई बिछड़े दोस्त मिले हैं , मेल - मुलाकात का दायरा बढ़ा है , दूरियाँ घटी है , जिन लोगों से मिले बरसों हो जाता था वे इसके माध्यम से रोज मिल रहे हैं । एक दूसरे के ख्यालों से रूबरू हो रहे हैं ।
अभिव्यक्ति को कई मंच मिले हैं , कइयों को रोजगार  मिला है , ऑनलाइन शॉपिंग ने लोगों को घर बैठे सामान मंगाने की सुविधा उपलब्ध कराई है । दुनिया छोटी हो गई है , विदेश बैठे मित्र से भी आसानी से मिल पा रहे हैं । दूसरी ओर लोग फोन तक ही सिमटकर रह गए हैं , दिखावे की प्रवृत्ति बढ़ी है , जो है वह दिखता नहीं है , जो नहीं है वह दिखता है । जालसाजी और ठगी बढ़ी है , ब्लैकमेलिंग  ,  धोखेबाजी की घटनाओं में वृद्धि होती जा रही है , लोग रिश्तों में सन्देह करने लगे हैं । जहाँ फायदे हैं वहाँ नुकसान भी होता है ।
    हमारे लिए जरूरी यह है कि हम अपने आप पर नियंत्रण रखें । मीडिया को अपने आदर्शों पर हावी न होने दें । इसका उपयोग सोच समझकर करें । इसका लाभ उठायें पर अपने आपको इसका गुलाम न बनने दें । जिस प्रकार डंडे का उपयोग हम अपनी सुरक्षा के लिए भी कर सकते हैं और दूसरों पर आक्रमण करने के लिए भी । इसमें डंडे का क्या अपराध है उसी प्रकार सोशल मीडिया का उपयोग या दुरुपयोग हमारे ऊपर निर्भर है । हम सावधान रहें तो कोई हमें बेवकूफ नहीं बना सकता । परिचय का दायरा बढाइये मगर सम्भलकर । इसके माध्यम से हमें कई प्यारे दोस्त , रिश्ते मिले जिनसे हमारा मिलना असम्भव था ।" हमारा संसार " परिवार मिला इसके लिए तो सोशल मीडिया का एहसान मानना ही होगा । इसका भरपूर लाभ अपना ज्ञान बढाने , अपनी रुचियों को पूरी करने , साहित्य व किताबें पढ़ने , मनोरंजन , खेल इत्यादि के द्वारा लें और अपने जीवन में खुशियाँ लायें । स्वयं खुश रहें और लोगों में खुशियाँ बांटे ।
   आप सभी को मेरा सादर अभिवादन 🙏🙏

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

Tuesday, 2 July 2019

मुक्तक

हृदय के भावों का उद्गार है कविता ,
एहसासों  की कल्पनागार है कविता ।
असम्भव को सम्भव बना दे जो _
विचारों का अद्भुत संसार है कविता ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़