भोर की स्वर्णिम आभा से ,
आच्छादित हुआ आसमान है ।
अरुणाभ सूर्य की लालिमा से,
रंगे नभ के #अरमान हैं ।
उषा ने बिखराई रंगोली ,
चिड़ियों के मधुर मधु गान हैं ।
अंगड़ाई ले प्रकृति जाग उठी ,
क्षितिज तक फैली #मुस्कान है ।
झुकी पलक सी बंद फलक ,
कमलिनी का हुआ विहान है ।
रवि के स्पर्श से खुले पटल ,
प्रिय के #विश्वास का सम्मान है ।
शबनम ने नहलाये पत्ते ,
कलियों , पुष्पों ने बढ़ाया मान है ।
#मेहनत से धरा की चूनर ,
रंगने को तत्पर # इंसान है ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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