Monday, 15 July 2019

भोर


भोर की स्वर्णिम आभा  से ,
आच्छादित हुआ आसमान है ।
अरुणाभ सूर्य की लालिमा से,
रंगे  नभ के #अरमान हैं ।

उषा ने बिखराई  रंगोली ,
चिड़ियों के मधुर मधु गान हैं ।
अंगड़ाई ले  प्रकृति जाग उठी ,
क्षितिज तक फैली #मुस्कान है ।

झुकी पलक सी बंद फलक ,
कमलिनी का हुआ विहान है ।
रवि के स्पर्श से खुले पटल ,
प्रिय के #विश्वास का सम्मान है ।

शबनम ने नहलाये पत्ते ,
कलियों , पुष्पों ने बढ़ाया मान है ।
#मेहनत से धरा की चूनर ,
रंगने को तत्पर # इंसान है ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

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