मामाजी ...आप बहुत याद आयेंगे
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आज जब भैया ने फोन किया कि पापा नहीं रहे तो कुछ पल के लिए मैं स्तब्ध रह गई । उनकी नाजुक हालत के बारे में जानते हुए भी मन यह स्वीकार करने को तैयार नहीं था कि वे अब इस दुनिया में नहीं रहे । मैं उन्हें देखने जाना चाहती थी पर यह डर बना रहा कि जिन्हें मैंने हमेशा अदम्य ऊर्जा से भरपूर , स्नेहिल व प्रेरणादायी रूप में देखा , उन्हें असहाय अवस्था में बिस्तर पर लेटे कैसे देख पाऊँगी । किसी अपने को मृत्यु की ओर शनैः शनैः जाते देखना अत्यंत पीड़ादायक होता है इस जगह पर आकर इंसान कितना बेबस हो जाता है ना उस अदृश्य सत्ता के आगे । माँ को भी जाते हुए बस देखती रही , कुछ नहीं कर पाई ...अब मामाजी भी ।
मैंने अपने नाना जी को कभी नहीं देखा परन्तु डॉ. मामा में उनकी झलक अवश्य देखती थी । माँ को मामाजी एक अभिभावक की तरह ही दुलार करते थे । माँ के निधन के पश्चात उनसे मिलने पर माँ की स्मृतियाँ मानस पटल पर किसी चलचित्र की भांति जीवंत हो उठती थी । माँ की छबि मामा में दिखती है इसलिए शायद यह रिश्ता इतना प्यारा होता है । मेरे बचपन की समृतियों में डॉ. मामा का महत्वपूर्ण स्थान है । उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व और विचारों की मेरे मन में गहरी छाप थी । बलौदा , डॉ. मामा और गर्मी की छुट्टियाँ एक - दूसरे का पर्याय थी । वे चाहते थे कि मैं डॉ . बनूँ पर वह हो नहीं पाया , लेकिन मेरे पी एच. डी. करने के बाद उन्होने कहा था डॉ. तो तुम्हें बनना ही था । जीवन के प्रति उनका सकारात्मक नजरिया हमेशा आगे बढ़ने को प्रेरित करता था । बरगद के वृक्ष की तरह कई रिश्तों को उन्होंने अपने स्नेह की छाया में सहेजकर रखा था । उनके जाने के बाद समझ आ रहा है कि हमने क्या खोया है । उनका जाना एक अपूरणीय क्षति है । उनका हँसता मुस्कुराता , मुझे चिढ़ाता चित्र ही मैं आजीवन अपने हृदय में सँजोये रखना चाहती हूँ । वे आज चिरनिद्रा में लीन हो गये हैं परन्तु हमारी स्मृतियों में वे सदैव बने रहेंगे । ईश्वर उनकी आत्मा को सुकून प्रदान करे । मेरे प्यारे डॉ. मामा को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि व सादर नमन 🙏🙏🙏
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