दुनिया में सच - झूठ की जंग जारी है ,
यहाँ नेकी बदी से कब कहाँ हारी है ।
बेच दिया ईमान उसने चंद सिक्कों में ,
जरा बच कर रहना यह एक बीमारी है ।
दिखावे की चौंध में छुप गई सच्चाई ,
चेहरा अब मुखौटों की हुई आभारी है ।
शहर खामोश है जरा अदब से रहना ,
हथौड़े की हर चोट पत्थर पर भारी है ।
फिदा न होना किसी की मीठी जुबान पर ,
दाना डालकर तुम्हें फांसने की तैयारी है ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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