Friday, 26 July 2019

ग़ज़ल

दुनिया में सच - झूठ की जंग जारी है ,
यहाँ  नेकी बदी से कब कहाँ हारी है ।

बेच दिया ईमान उसने  चंद सिक्कों में ,
जरा बच कर रहना  यह एक बीमारी है  ।

दिखावे की चौंध में छुप गई सच्चाई ,
चेहरा अब मुखौटों की  हुई आभारी है ।

शहर खामोश है जरा अदब से रहना ,
हथौड़े की हर  चोट  पत्थर पर भारी है ।

फिदा न होना किसी की  मीठी जुबान पर ,
दाना  डालकर  तुम्हें फांसने  की तैयारी है ।

स्वरचित  - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

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