Monday, 22 July 2019

उपकार ( लघुकथा )

डिप्टी कलेक्टर के पद पर चयनित होने पर ग्राम सभा द्वारा आज नीरज को सम्मानित किया जा रहा था । जब नीरज को दो शब्द कहने के लिए बुलाया गया तो सबसे पहले उसने अपनी माँ को स्टेज पर बुलाया जो दूसरों के घरों में बर्तन माँजती थी । उनके चरण छूकर उसने अपना स्मृति चिन्ह उन्हें ही देते हुए कहा कि यह माँ के #उपकार हैं कि आज मैं इस पद पर पहुँच पाया। स्वयं भूखी रहकर इन्होंने मुझे पढ़ाया ...साथ ही उन दोस्तों का मैं सदैव शुक्रगुजार रहूँगा जिन्होंने कदम - कदम पर मुझे यह याद दिलाया कि मैं एक काम करने वाली बाई का बेटा हूँ । उन्होंने मुझे अपमानित करने के लिए ऐसा किया पर यह मेरे लिए सम्मान की बात है क्योंकि ईमानदारी से किया जाने वाला कोई भी  काम तुच्छ नहीं होता । उनकी  टिप्पणियों की वजह से मुझे अपने जीवन का लक्ष्य हमेशा याद रहा और मुझे मेहनत करने की प्रेरणा मिली । उन्होंने  अप्रत्यक्ष रूप से मुझ पर उपकार ही किया  इसके लिए मैं उनका बहुत आभारी हूँ। आज उन सब विरोधियों के सिर शर्मिंदगी से झुके हुए थे ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

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