खेतों में हरियाली छाई , दृश्य हुआ मनभावन ।
मेघों के रथ पर चढ़कर , बरसता आया सावन ।।
तृप्त हुई प्यासी धरा , नेह से भीगा तन - मन ।
बढ़ गया दर्द बिछोह का , याद आ गये साजन।।
दादुर , मोर , पपीहा बोले , गरजे बदरा घन घनन ।
मद मस्त हो नाची गोरी , पायल छनके छन छनन।।
पेड़ों पर झूले पड़ गये , सखियों संग आया बचपन ।
मगन हो थिरक उठी मैं , पीहर का भाया आँगन ।।
बारिश की रिमझिम फुहार में बौराया जग का मन ।
झूम उठे सब मस्ती में , अंकुरित हुआ नव - जीवन ।।
मिट्टी की गंध घुली पवन में , सुवासित हुआ चमन ।
खुशहाली में झूमे धरती , हुआ शुभ्र धवल गगन ।।
कर्मस्थली को पग बढ़ाता , हलधर प्रफुल्लित मन ।
उमंग औ उत्साह भर जाता , जमकर जो बरसे सावन ।।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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