याद है तुम्हें वो दिन ,
जब हम - तुम मिले थे ...
एक - दूजे का हाथ पकड़कर ,
कुछ दूर संग चले थे...
दिलों में नजदीकियां थीं ,
पर दुनिया के फासले थे...
निगाहों में मोहब्बत थी ,
रिवाजों ने लब सिले थे ...
छुप छुप के रोज मिलने के ,
चल पड़े सिलसिले थे ...
प्यार के इस चमन में ,
खुशियों के गुल खिले थे...
दामन में चाँद - सितारे ,
शिकवे न कोई गिले थे...
नज़र लगी ये किसकी ,
किस आग से घर जले थे ...
मजहबी फ़सादों ने ,
पस्त किये हौसले थे ...
पुरनम इन हवाओं में ,
मतलबपरस्ती के जहर घुले थे...
ख़ाक हो गई देह पर ,
बाकी प्यार की प्यास है...
इस जहां के पार भी ,
रूह को मिलन की आस है..
चलो हम तुम तारों के पार जायें ,
प्यार भरा एक नया जहां बसायें ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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