Sunday, 14 July 2019

बारिश

घास - फूस की छत है , मिट्टी की दीवार ,
कभी सताये आंधी , कभी पानी की बौछार ।

पानी भरा घर - आँगन ,निकाल रही माँ बुहार ,
चौबारे  बैठा मुर्गा  लगा रहा दाने  की गुहार ।

सीली सी दीवारें हैं , उनमें पड़ रही दरार ,
चूल्हा ठंडा पड़ा , बारिश में बंद रोजगार ।

मुफलिसी है किस्मत , पड़ी सावन की मार,
जिंदगी की नाव बह रही , मजबूरी की धार ।

पक्के घर खुशी मनाते , कच्चे घर बेजार ,
ईश्वर क्यूँ न सुनता इनकी करुणा भरी पुकार ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

No comments:

Post a Comment