Monday, 30 September 2019

प्रेम विवाह ( लघुकथा )

आज  राज फिर शराब पीकर आया था  और नियति से झगड़ा कर रहा था । कभी - कभार उस पर हाथ भी उठाने लगा था । नियति ने इतनी कोशिश की उसे समझाने की कि यह आदत सही नहीं , बेटा भी अब बड़ा हो रहा है , उसके बाल - मन  पर गलत असर पड़ेगा । नशा उतरने के बाद राज अपनी गलती पर पछताता पर अपनी आदत से मजबूर हो फिर पीकर आ जाता । चार वर्ष पहले उन्होंने प्रेम - विवाह किया था पापा ने कितना मना किया था उसे , परन्तु नियति की आँखों पर तो राज के प्रेम की पट्टी बंधी हुई थी । उसने मम्मी - पापा की बात नहीं मानी । अब किस मुँह से उन्हें अपनी तकलीफ बताने जाये । आज उसे अपने एकतरफा निर्णय पर अफ़सोस हो रहा था , अपने परिवार को विश्वास में लेकर विवाह करती तो आज अधिकार से उनकी मदद माँगने चली जाती ।
           माँ बनकर समझ आया था कि बच्चों के भविष्य को लेकर अभिभावक क्यों  चिंतित रहते हैं । आज वह अपने पिता के कंधे का सहारा लेना चाहती थी , अपने बच्चे के भविष्य के लिए अपने अहम को परे रखकर पिता से माफी माँगने का दृढ़ निश्चय कर लिया था उसने।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

काश !

काश ! अखण्ड रहता भारत ,
देश के दो टुकड़े न होते ।
न बिछड़ता भाई से भाई ,
साम्प्रदायिक दंगे न होते ।

काश ! धरा के स्वर्ग में ,
आतंक के साये न होते ।
खून से न रंगती यह धरती ,
लाडले जवानों को न खोते ।

काश !  फूलों की घाटी के ,
रहवासी बेहाल न होते  ।
हवा में न होती बारूदी गंध ,
अपनी बर्बादी पर न रोते ।

काश !  छँट जाये गम का धुंआ ,
तरक्की के द्वार खुले होते ।
खुशियों से भीगा होता समां ,
सभी नींद चैन की सोते ।

काश ! बदलाव के बादल ,
दिलों को नेह से भिगोते ।
खुशहाली की उर्वर धरा पर ,
चैन ओ अमन  के बीज बोते ।

काश ! घाटी की सर्द रातों को ,
अभावों की झील में न डुबोते ।
हर हाथ को मिलता काम यहाँ ,
सुखमय जीवन के ख्वाब पूरे होते ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

Friday, 27 September 2019

लड़ने का मजा ( लघुकथा )

इति स्पष्टवादी है । कोई उसे गलत समझे या उस पर आक्षेप करे तो वह फौरन प्रतिवाद करती है और अपनी बात स्पष्ट करने का प्रयास करती है । उसकी इस आदत को उसके पति व बच्चे उसके चिढ़ने के रूप में लेते थे और अक्सर उसका मजाक उड़ाते रहते । इति को भी ऐसा लगा कि शायद उसे अपनी इस प्रवृत्ति में सुधार करना होगा और वह कोशिश करने लगी कि उन बेकार की बातों को नजरअंदाज करे जो उसे चिढ़कर जवाब देने को मजबूर करती हैं । उसके पतिदेव जो जान - बूझकर उसे खिझाने का प्रयास करते रहते वे भी इस बदलाव को महसूस कर रहे थे ।
       अक्सर शाम को ड्यूटी से आने के बाद वे टी. वी. पर बहस और समाचार देखते रहते थे लेकिन इति व उसकी बेटी आजकल कबड्डी में रुचि होने के कारण वही देखते रहते । आज टी. वी. देखते समय पतिदेव बेटी पर चिल्ला रहे थे कि  तुम लोगों के कारण मुझे न्यूज़ देखने को नहीं मिलता । इति जो रसोई में काम कर रही थी ,थोड़ी देर धैर्य बनाये रही फिर नहीं रहा गया तो बेटी से बोली -" कोई जरूरत नहीं कल से कबड्डी देखने की । कल से तेरे पापा न्यूज़ ही देखेंगे । हम लोग तेरे कमरे में लैपटॉप पर सीरीज़ देखेंगे । "
अचानक उसके पति बोल पड़े  -" वाह! मज़ा आ गया , बहुत दिन बाद तेरी मम्मी  लड़ी है । " उनका यह वाक्य सुनकर इति भी मुस्कुरा उठी  और समझ गई कि उसे अपने - आपको बदलने की जरूरत नहीं है ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

ग़ज़ल

अपनी हथेली पे प्यार  लिखा कर लाई हो ,
जिंदगी में खुशी की बहार बन कर आई हो ।

लड़ जाती हो  दुनिया से तोड़ के सारे बन्धन ,
लकीर रूढ़ियों की मिटाने की कसम खाई हो ।

संवर जायेगी मेरी तकदीर तेरा साथ पाकर ,
दुआओं से  हो रोशन राहें ,गमों की रिहाई हो ।

अरमान मचल उठे हैं दीवानों के इस अदा पे ,
बिजली -सी कोई गिरी है या  ली अँगड़ाई हो ।

मिल गई मंजूरी मेरी दीवानगी को " दीक्षा " ,
मुड़कर जो तूने  देखा और देखकर मुस्काई  हो ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

Wednesday, 25 September 2019

एक पत्र स्वयं के नाम

प्रिय दीक्षा ,
       मुझे ऐसा लगता है कि दूसरों को पहचानने से पहले स्वयं को पहचानना आवश्यक है । कभी - कभी अपने आपसे बात करने का समय अवश्य निकालना चाहिए ताकि अपनी कमियों को दूर कर सकें और खूबियों को माँज सकें । मैं तुम्हें  पसन्द करती हूँ और चाहती हूँ कि ऐसे कार्य करूँ कि दूसरे भी तुम्हें पसंद करें । दूसरों को खुश करने के लिए तुम बनावटी व्यवहार नहीं कर सकती ।  दूसरों को खुश करने के लिए कई लोग खूब दिखावा करते हैं । उनके सामने उनका व्यवहार बहुत मधुर रहता है परंतु उनकी पीठ पीछे वे बुराई करने लगते हैं । ऐसे लोग न तो तुम्हें पसंद आते हैं न तुम ऐसा व्यवहार कर सकती हो। कोई कुछ गलत  करता है तो तुम  उसे टोक देती हो भले वे तुम्हें पसंद करें या न करें ।
    इस वजह से कई लोग नाराज हो जाते हैं। शायद यह आज के जमाने की आवश्यकता हो गई है कि आपको लोगों को खुश करना आना चाहिए भले ही आप दिखावा करें । नौकरी में , समाज में , दोस्तों में हर जगह " शो ऑफ "की प्रवृत्ति ही फल - फूल रही है । आपके अंदर योग्यता होते हुए भी आप दूसरों से पीछे हो जाते हैं । परंतु ऐसी प्रसिद्धि या सफलता मिलने से बेहतर है गुमनाम रहो और अपना काम किये जाओ ।
    बहुत अधिक भावुक होना भी कई बार कमजोरी बन जाती है । कई बार शायद तुम उतनी कठोर नहीं हो पाती जितनी परिस्थितियों की माँग होती है । सरल होना कई बार दुर्गुण लगने लगता है ।  खैर , दुनियावी उलझनों को सुलझाने की जद्दोजहद तो चलती रहेगी और जीवन को बेहतर बनाने की भी । अपनी कमियों को जानने के बाद सुधारने का प्रयास भी चलता रहेगा ।छोटी - छोटी बातों में  खुशियों को  ढूंढना शायद तुम्हारी सबसे बड़ी विशेषता है जो विषम परिस्थितियों में तुम्हें जीना सिखाती है ।
" जिंदगी तू कितने भी दाँव आजमा ले ,
          हार न मानेंगे ठान लिया हमने । "
        जीवन के सफर में अपनों का प्यार भरा साथ इसे और भी खूबसूरत बना देता है । यदि आपके जीवन में अच्छे लोग आते हैं तो आप उनसे बहुत कुछ सीख पाते हैं और उनके साथ को प्यार से जी पाते हैं । मैं तुम्हें बहुत सौभाग्यशाली समझती हूँ क्योंकि तुम्हें सभी से बहुत प्यार मिला । दोस्त , परिवार , रिश्तेदार सबने तुम्हें  यह एहसास कराया कि तुम कितनी खास हो । उन्होंने तुम्हारे हूनर को तराशा , तुम्हें  आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा दी , यह ईश्वर का वरदान है तुम्हें । बहुत सी ख्वाहिशें अभी भी मन के दरवाजे पर दस्तक दे रही हैं जिन्हें पूरा करने के लिए प्रयास करना है  , पर घर - परिवार के लिए अपने दायित्वों को पूरा करते हुए ... उन्हें नजरअंदाज करके नहीं । तब तक इस मन को संतुष्टि के ताले में बंद करके रखना है । चलो , फिर समय और एकांत मिलने पर  तुमसे बातें करती हूँ ।
तुम्हारे ही भावों की अभिव्यक्ति
        दीक्षा
दुर्ग , छत्तीसगढ़

Tuesday, 24 September 2019

एक पत्र स्वयं के नाम

प्रिय दीक्षा ,
       मुझे ऐसा लगता है कि दूसरों को पहचानने से पहले स्वयं को पहचानना आवश्यक है । कभी - कभी अपने आपसे बात करने का समय अवश्य निकालना चाहिए ताकि अपनी कमियों को दूर कर सकें और खूबियों को माँज सकें । मैं तुम्हें  पसन्द करती हूँ और चाहती हूँ कि ऐसे कार्य करूँ कि दूसरे भी तुम्हें पसंद करें । दूसरों को खुश करने के लिए तुम बनावटी व्यवहार नहीं कर सकती ।  दूसरों को खुश करने के लिए कई लोग खूब दिखावा करते हैं । उनके सामने उनका व्यवहार बहुत मधुर रहता है परंतु उनकी पीठ पीछे वे बुराई करने लगते हैं । ऐसे लोग न तो तुम्हें पसंद आते हैं न तुम ऐसा व्यवहार कर सकती हो। कोई कुछ गलत  करता है तो तुम  उसे टोक देती हो भले वे तुम्हें पसंद करें या न करें ।
    इस वजह से कई लोग नाराज हो जाते हैं। शायद यह आज के जमाने की आवश्यकता हो गई है कि आपको लोगों को खुश करना आना चाहिए भले ही आप दिखावा करें । नौकरी में , समाज में , दोस्तों में हर जगह " शो ऑफ "की प्रवृत्ति ही फल - फूल रही है । आपके अंदर योग्यता होते हुए भी आप दूसरों से पीछे हो जाते हैं । परंतु ऐसी प्रसिद्धि या सफलता मिलने से बेहतर है गुमनाम रहो और अपना काम किये जाओ ।
    बहुत अधिक भावुक होना भी कई बार कमजोरी बन जाती है । कई बार शायद तुम उतनी कठोर नहीं हो पाती जितनी परिस्थितियों की माँग होती है । सरल होना कई बार दुर्गुण लगने लगता है ।  खैर , दुनियावी उलझनों को सुलझाने की जद्दोजहद तो चलती रहेगी और जीवन को बेहतर बनाने की भी । अपनी कमियों को जानने के बाद सुधारने का प्रयास भी चलता रहेगा ।छोटी - छोटी बातों में  खुशियों को  ढूंढना शायद तुम्हारी सबसे बड़ी विशेषता है जो विषम परिस्थितियों में तुम्हें जीना सिखाती है ।
" जिंदगी तू कितने भी दाँव आजमा ले ,
          हार न मानेंगे ठान लिया हमने । "
        जीवन के सफर में अपनों का प्यार भरा साथ इसे और भी खूबसूरत बना देता है । यदि आपके जीवन में अच्छे लोग आते हैं तो आप उनसे बहुत कुछ सीख पाते हैं और उनके साथ को प्यार से जी पाते हैं । मैं तुम्हें बहुत सौभाग्यशाली समझती हूँ क्योंकि तुम्हें सभी से बहुत प्यार मिला । दोस्त , परिवार , रिश्तेदार सबने तुम्हें  यह एहसास कराया कि तुम कितनी खास हो । उन्होंने तुम्हारे हूनर को तराशा , तुम्हें  आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा दी , यह ईश्वर का वरदान है तुम्हें । बहुत सी ख्वाहिशें अभी भी मन के दरवाजे पर दस्तक दे रही हैं जिन्हें पूरा करने के लिए प्रयास करना है  , पर घर - परिवार के लिए अपने दायित्वों को पूरा करते हुए ... उन्हें नजरअंदाज करके नहीं । तब तक इस मन को संतुष्टि के ताले में बंद करके रखना है । चलो , फिर समय और एकांत मिलने पर  तुमसे बातें करती हूँ ।
तुम्हारे ही भावों की अभिव्यक्ति
        दीक्षा
दुर्ग , छत्तीसगढ़

हमारे पितर और हम

#हमारे  पितर और हम#

बचपन की मीठी गोलियों के साथ जुड़ी हैं दादी - नानी की यादें ....उनका  सुनहरा बटुआ  हम बच्चों के आकर्षण का विशेष केंद्र होता था क्योंकि मम्मी पापा के मना करने के बाद मीठी गोली , लेमनचूस , बरफ का गोला इन सब के लिए  पैसे उसी से मिलते थे । मम्मी की सख्ती पर वो चुपके से हमारी फरमाइशें पूरी कर देती थीं । बड़ा प्यारा था उनका बटुआ...सुनहरे कपड़े का बना हुआ जिसकी डोरी में दो फुँदने लटकते रहते । उनके पोपले मुँह की झुर्रियों की तरह चुन्नटें बन जाती जब वो डोरियों को खींचती । उस बटुए से हमारे काम की और भी चीजें निकलती रहती... जड़ी बूटी , इलायची दाना , और उनका अतीत । हमारे खाँसने पर हर्रे के टुकड़े जिन्हें आग में भुना गया होता  मिलता , वह कसैला लगता पर उनको मना भी नहीं करते बनता क्योंकि हमारा सुरक्षा कवच थी दादी...माँ या पिताजी की डाँट ,मार से बचने के लिए हम उन्हीं की गोद में शरण लेते । माँ उनका लिहाज भी करतीं तो सीधे कुछ बोल नहीं पाती।  हाँ , पापा के द्वारा बच्चों को बिगाड़ने के लिए सन्देशा जरूर  भिजवाती पर दादी उनके बचपन की कोई बात छेड़ कर...कि तू भी तो ऐसा था कहते उनकी पोल खोलने लगती तो पापा जी चलते बनते । दादी तुम कितनी अच्छी हो कहकर हम उनकी पीठ पर चढ़ जाते ...कितनी खूबसूरत मुस्कान आ जाती थी उस झुर्रीदार चेहरे में...उन झुर्रियों में मानो उनके अनुभवों की कहानियाँ थीं । रिश्तों को बाँधे रखने की अपूर्व आभा थी ...परिवार के प्रति लगाव था... अपने बच्चों के लिए  दुआएँ थीं । हमारे बुजुर्ग हमारे आदरणीय हैं...हम पर  खुशियाँ लुटाने वाले  , सिर्फ और सिर्फ देने वाले पूर्वज यदि आप हमसे बिछड़ कर पुनः  धरती पर आए हैं तो आपका स्वागत है दिल से  । आपकी दुआओं के उजाले में जी रहे हैं हम और आपकी स्मृतियों की मिठास हमारे जीवन की अनमोल धरोहर है । प्रणाम ।🙏🙏

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़

Friday, 20 September 2019

ग़ज़ल

चुरा लिया गुलों से  शबनम हमने ,
अश्कों से यादों को किया पुरनम हमने ।

साथी जरा तुम भी गुनगुना देना ,
भीगे जज्बातों  से बनाया सरगम हमने ।

खुशियों से महकता रहे घर- आँगन ,
अपनी दुआओं में  माँगा हरदम हमने ।

हसरत नहीं कुछ और पाने की  अब ,
नगीनों में चुना है  नीलम हमने ।

बेखौफ हो जीने का हुनर सीख लिया ,
इश्क का फहराया जब से परचम हमने ।

हौसला जो मिला हमसफ़र तुझसे,
मंजिल की ओर उठाया हर कदम हमने ।

दौर- ए-आजमाइशों से निकल" दीक्षा ",
दुश्वारियाँ सह कर पाया  सनम हमने ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

Monday, 16 September 2019

जागो हे भारत की बेटियों

जागो हे भारत की बेटियों ,
आत्म विश्वास का वरण करो ।
दबना नहीं डरना किसी से ,
लज्जा ,संकोच का हरण करो ।
कमजोर बनाते जो तुमको ,
रूढ़ियों से मुक्त बंधन करो ।
बुरी नजर जो डाले तुम पर ,
दुष्ट दानवों का दमन करो  ।
कुचल डालो  विषधर का फन ,
अत्याचारियों  का शमन करो ।
उड़ो हौसलों के पर लेकर ,
लक्ष्य को विस्तृत गगन करो ।
शिक्षा की उजास जीवन में  ,
 भर लो साहस को नमन करो ।
धैर्य शक्ति की मिसाल बनना ,
सरस्वती सा आचरण करो ।
रौद्र रूप  काली का धरकर ,
अन्यायी का संहरण करो ।
ज्ञान - विज्ञान की वेदी पर ,
अज्ञानता का हवन करो ।
अपने अधिकारों की खातिर ,
जुल्मों से युद्ध आमरण करो ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

Sunday, 15 September 2019

सजल ( बचपन ) -12

मजबूरी के साये में सोता बचपन ।
गरीबी , तंगहाली में  खटता बचपन ।।

रोटी की चिंता  खेलने की उम्र में ।
डिब्बे  और प्लास्टिक बीनता बचपन ।म

जूतों की पालिश या टेबल पर पोंछा।
घर की जिम्मेदारी में दबता बचपन ।।

 बच्चों के हिस्से नहीं खेलना-पढ़ना ।
अभावों के अँधेरों में गुमता बचपन ।।

मानव अधिकारों को दे रहा चुनौती ।
बेबसी के चक्रों में घूमता बचपन ।।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

Friday, 13 September 2019

संस्कार ( लघुकथा )

शादी की बात चलने पर राजन पहली बार माही से मिलने गया था । एक रेस्टोरेंट में कॉफी के साथ उनकी बातचीत की शुरुआत हुई । राजन माही के शुद्व हिंदी , स्पष्ट उच्चारण से प्रभावित हुआ था । दरअसल माही ने हिंदी में एम. ए. किया था , साथ ही वह पत्रिकाओं में आलेख लिखती थी तो उसकी कोशिश रहती कि अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग कम करे । उसका यही गुण राजन को भा गया और उसने तुरंत शादी के लिए हाँ कह कर दी थी । उसका परिवार बहुत आश्चर्य चकित था क्योंकि इसके पहले राजन को कोई लड़की पसन्द ही नहीं आती थी । सीधी - सादी सी माही पता नहीं कैसे राजन को भा गई , इसकी वजह सभी जानना चाहते थे । उसने कहा - " दरअसल अपनी मातृभाषा के प्रति लगाव ही सबसे बड़ा कारण है , क्योंकि वही तो संस्कारों की जननी है । बाकी और क्या जानना है , लड़कियाँ तो सभी एक जैसी होती हैं । महज उनके संस्कार ही उन्हें परिभाषित करते हैं ।" उसके जवाब ने सबको लाजवाब कर दिया था ।
आप सभी को हिंदी दिवस की शुभकामनाएं । 🙏 ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

दीवाना

दुनिया की बातों को दिल से न लगाना ,
प्यार का दुश्मन है सदियों से जमाना ।

रीत प्रीत की तुम भूल ही गये आखिर ,
वक्त न मिलने का जो बना रहे बहाना ।

बरसों तक कर भी अनथक हैं मेरे नैन ,
अधूरी ख्वाहिशों ने बना दिया दीवाना ।

तुझे ही चाहेंगे हम दम निकलने तक ,
ऐसी क्या मजबूरी जो कर दिया बेगाना ।

सजाये रखा है पलकों पे तेरे सपने को ,
मिलन के गीत गाता रहेगा ये मस्ताना ।

कभी तो मुकम्मल होगी मेरी कहानी ,
ख्वाबों को अपनी हसरतों से सजाना ।

पीर पर्वत सी पिघलेगी एक दिन जरूर ,
इश्क की तपिश में अपना दिल जलाना ।

उड़ जायेंगे एक दिन हम पंछी के मानिंद ,
अश्कों  से  लिख जायेंगे इश्क का फ़साना ।

मुश्किलों से मिलता है प्यार यहाँ " दीक्षा "
इज़हार- ए - इश्क को अब न देर  लगाना ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

Monday, 9 September 2019

सौदा ( लघुकथा )

"अरे स्वाति तुम यहाँ  ! तुम इतनी छोटी नौकरी कर रही हो , मुझे विश्वास नहीं हो रहा । तुम्हारे जैसी टैलेंटेड मॉडल को  बहुत ऊपर जाना था । मैं तुम्हें यहाँ देखकर हतप्रभ हूँ " ,  कई  वर्षों पश्चात मुलाकात  होने पर श्वेता ने अपनी  सहेली स्वाति से पूछा । कॉलेज के जमाने में ही खूबसूरत स्वाति को मॉडलिंग के कई ऑफर आ चुके थे ।'
" श्वेता मैं इस छोटी नौकरी के साथ भी बहुत खुश हूँ , क्योंकि आसमान में उड़ने के लिए मैं अपनी इज्जत के साथ #सौदा नहीं कर सकती ।" श्वेता ने आज स्वाति के आंतरिक सौंदर्य के दर्शन किये थे , स्वाति के लिए उसके मन में अब स्नेह के साथ श्रद्धा के भाव जागृत हो गये थे ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

क्या यही प्यार है ?

मन की कली खिल उठी , दिल का चमन गुलज़ार है,
तेरे  आने से जीवन में आई बहार ,क्या यही प्यार है ।

नजारा उनका करके जो  नज़रें मेरी झुक जाती हैं ,
झंकृत हो उठे हृद - वीणा के तार , क्या यही प्यार है ।

कातिल  निगाहों से उसने जो छू लिया मुझको ,
हया  से हो गये गुलाबी  रुख़सार , क्या यही प्यार है ।

रूबरू पाकर उन्हें  बढ़ जाती है मेरी धड़कन ,
थरथराते लब कर देते इजहार , क्या यही प्यार है ।

हर  ओर नज़र आती है  पिया तेरी  ही  सूरत ,
मिलने को  दिल रहता बेकरार , क्या यही प्यार है ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

पति - पत्नी की जंग

देखो इस परिवार का क्या हो गया हाल ,
छोटी - छोटी बात पर ये मचा रहे बवाल ।
मचा रहे बवाल कि कुछ समझ न आये ,
सहमा है नन्हा बच्चा रोये या चिल्लाये ।
पहले सी नहीं रही, जिंदगी है कि जंजाल ।

पति - पत्नी की जंग में हार- जीत कैसी,
गृहस्थी के ये दो पहिये हालत एक जैसी ।
अविश्वास और जिद ने घर को तोड़ दिया ,
सुख - शांति और चैन ने साथ छोड़ दिया ।
रोज - रोज की झिकझिक से हुए बेहाल ।

आधुनिक वस्त्रों में खो न जाएं  संस्कार ,
झूठी शान और दिखावे  ने मचाया रार ।
घर में जो मिलता रहा प्रेम और सुकून ,
अब  वहाँ है सिर्फ दम्भ , झूठा अहंकार ।
बच्चों के पिस जाने का न कोई मलाल ।
देखो इस परिवार का क्या हो गया हाल ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़