प्रिय दीक्षा ,
मुझे ऐसा लगता है कि दूसरों को पहचानने से पहले स्वयं को पहचानना आवश्यक है । कभी - कभी अपने आपसे बात करने का समय अवश्य निकालना चाहिए ताकि अपनी कमियों को दूर कर सकें और खूबियों को माँज सकें । मैं तुम्हें पसन्द करती हूँ और चाहती हूँ कि ऐसे कार्य करूँ कि दूसरे भी तुम्हें पसंद करें । दूसरों को खुश करने के लिए तुम बनावटी व्यवहार नहीं कर सकती । दूसरों को खुश करने के लिए कई लोग खूब दिखावा करते हैं । उनके सामने उनका व्यवहार बहुत मधुर रहता है परंतु उनकी पीठ पीछे वे बुराई करने लगते हैं । ऐसे लोग न तो तुम्हें पसंद आते हैं न तुम ऐसा व्यवहार कर सकती हो। कोई कुछ गलत करता है तो तुम उसे टोक देती हो भले वे तुम्हें पसंद करें या न करें ।
इस वजह से कई लोग नाराज हो जाते हैं। शायद यह आज के जमाने की आवश्यकता हो गई है कि आपको लोगों को खुश करना आना चाहिए भले ही आप दिखावा करें । नौकरी में , समाज में , दोस्तों में हर जगह " शो ऑफ "की प्रवृत्ति ही फल - फूल रही है । आपके अंदर योग्यता होते हुए भी आप दूसरों से पीछे हो जाते हैं । परंतु ऐसी प्रसिद्धि या सफलता मिलने से बेहतर है गुमनाम रहो और अपना काम किये जाओ ।
बहुत अधिक भावुक होना भी कई बार कमजोरी बन जाती है । कई बार शायद तुम उतनी कठोर नहीं हो पाती जितनी परिस्थितियों की माँग होती है । सरल होना कई बार दुर्गुण लगने लगता है । खैर , दुनियावी उलझनों को सुलझाने की जद्दोजहद तो चलती रहेगी और जीवन को बेहतर बनाने की भी । अपनी कमियों को जानने के बाद सुधारने का प्रयास भी चलता रहेगा ।छोटी - छोटी बातों में खुशियों को ढूंढना शायद तुम्हारी सबसे बड़ी विशेषता है जो विषम परिस्थितियों में तुम्हें जीना सिखाती है ।
" जिंदगी तू कितने भी दाँव आजमा ले ,
हार न मानेंगे ठान लिया हमने । "
जीवन के सफर में अपनों का प्यार भरा साथ इसे और भी खूबसूरत बना देता है । यदि आपके जीवन में अच्छे लोग आते हैं तो आप उनसे बहुत कुछ सीख पाते हैं और उनके साथ को प्यार से जी पाते हैं । मैं तुम्हें बहुत सौभाग्यशाली समझती हूँ क्योंकि तुम्हें सभी से बहुत प्यार मिला । दोस्त , परिवार , रिश्तेदार सबने तुम्हें यह एहसास कराया कि तुम कितनी खास हो । उन्होंने तुम्हारे हूनर को तराशा , तुम्हें आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा दी , यह ईश्वर का वरदान है तुम्हें । बहुत सी ख्वाहिशें अभी भी मन के दरवाजे पर दस्तक दे रही हैं जिन्हें पूरा करने के लिए प्रयास करना है , पर घर - परिवार के लिए अपने दायित्वों को पूरा करते हुए ... उन्हें नजरअंदाज करके नहीं । तब तक इस मन को संतुष्टि के ताले में बंद करके रखना है । चलो , फिर समय और एकांत मिलने पर तुमसे बातें करती हूँ ।
तुम्हारे ही भावों की अभिव्यक्ति
दीक्षा
दुर्ग , छत्तीसगढ़
आसमान में उड़ते बादलों की तरह भाव मेरे मन में उमड़ते -घुमड़ते रहते हैं , मैं प्यासी धरा की तरह बेचैन रहती हूँ जब तक उन्हें पन्नों में उतार न लूँ !
Wednesday, 25 September 2019
एक पत्र स्वयं के नाम
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