Friday, 27 September 2019

ग़ज़ल

अपनी हथेली पे प्यार  लिखा कर लाई हो ,
जिंदगी में खुशी की बहार बन कर आई हो ।

लड़ जाती हो  दुनिया से तोड़ के सारे बन्धन ,
लकीर रूढ़ियों की मिटाने की कसम खाई हो ।

संवर जायेगी मेरी तकदीर तेरा साथ पाकर ,
दुआओं से  हो रोशन राहें ,गमों की रिहाई हो ।

अरमान मचल उठे हैं दीवानों के इस अदा पे ,
बिजली -सी कोई गिरी है या  ली अँगड़ाई हो ।

मिल गई मंजूरी मेरी दीवानगी को " दीक्षा " ,
मुड़कर जो तूने  देखा और देखकर मुस्काई  हो ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

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