अपनी हथेली पे प्यार लिखा कर लाई हो ,
जिंदगी में खुशी की बहार बन कर आई हो ।
लड़ जाती हो दुनिया से तोड़ के सारे बन्धन ,
लकीर रूढ़ियों की मिटाने की कसम खाई हो ।
संवर जायेगी मेरी तकदीर तेरा साथ पाकर ,
दुआओं से हो रोशन राहें ,गमों की रिहाई हो ।
अरमान मचल उठे हैं दीवानों के इस अदा पे ,
बिजली -सी कोई गिरी है या ली अँगड़ाई हो ।
मिल गई मंजूरी मेरी दीवानगी को " दीक्षा " ,
मुड़कर जो तूने देखा और देखकर मुस्काई हो ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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