मन की कली खिल उठी , दिल का चमन गुलज़ार है,
तेरे आने से जीवन में आई बहार ,क्या यही प्यार है ।
नजारा उनका करके जो नज़रें मेरी झुक जाती हैं ,
झंकृत हो उठे हृद - वीणा के तार , क्या यही प्यार है ।
कातिल निगाहों से उसने जो छू लिया मुझको ,
हया से हो गये गुलाबी रुख़सार , क्या यही प्यार है ।
रूबरू पाकर उन्हें बढ़ जाती है मेरी धड़कन ,
थरथराते लब कर देते इजहार , क्या यही प्यार है ।
हर ओर नज़र आती है पिया तेरी ही सूरत ,
मिलने को दिल रहता बेकरार , क्या यही प्यार है ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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