चुरा लिया गुलों से शबनम हमने ,
अश्कों से यादों को किया पुरनम हमने ।
साथी जरा तुम भी गुनगुना देना ,
भीगे जज्बातों से बनाया सरगम हमने ।
खुशियों से महकता रहे घर- आँगन ,
अपनी दुआओं में माँगा हरदम हमने ।
हसरत नहीं कुछ और पाने की अब ,
नगीनों में चुना है नीलम हमने ।
बेखौफ हो जीने का हुनर सीख लिया ,
इश्क का फहराया जब से परचम हमने ।
हौसला जो मिला हमसफ़र तुझसे,
मंजिल की ओर उठाया हर कदम हमने ।
दौर- ए-आजमाइशों से निकल" दीक्षा ",
दुश्वारियाँ सह कर पाया सनम हमने ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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