Tuesday, 24 September 2019

हमारे पितर और हम

#हमारे  पितर और हम#

बचपन की मीठी गोलियों के साथ जुड़ी हैं दादी - नानी की यादें ....उनका  सुनहरा बटुआ  हम बच्चों के आकर्षण का विशेष केंद्र होता था क्योंकि मम्मी पापा के मना करने के बाद मीठी गोली , लेमनचूस , बरफ का गोला इन सब के लिए  पैसे उसी से मिलते थे । मम्मी की सख्ती पर वो चुपके से हमारी फरमाइशें पूरी कर देती थीं । बड़ा प्यारा था उनका बटुआ...सुनहरे कपड़े का बना हुआ जिसकी डोरी में दो फुँदने लटकते रहते । उनके पोपले मुँह की झुर्रियों की तरह चुन्नटें बन जाती जब वो डोरियों को खींचती । उस बटुए से हमारे काम की और भी चीजें निकलती रहती... जड़ी बूटी , इलायची दाना , और उनका अतीत । हमारे खाँसने पर हर्रे के टुकड़े जिन्हें आग में भुना गया होता  मिलता , वह कसैला लगता पर उनको मना भी नहीं करते बनता क्योंकि हमारा सुरक्षा कवच थी दादी...माँ या पिताजी की डाँट ,मार से बचने के लिए हम उन्हीं की गोद में शरण लेते । माँ उनका लिहाज भी करतीं तो सीधे कुछ बोल नहीं पाती।  हाँ , पापा के द्वारा बच्चों को बिगाड़ने के लिए सन्देशा जरूर  भिजवाती पर दादी उनके बचपन की कोई बात छेड़ कर...कि तू भी तो ऐसा था कहते उनकी पोल खोलने लगती तो पापा जी चलते बनते । दादी तुम कितनी अच्छी हो कहकर हम उनकी पीठ पर चढ़ जाते ...कितनी खूबसूरत मुस्कान आ जाती थी उस झुर्रीदार चेहरे में...उन झुर्रियों में मानो उनके अनुभवों की कहानियाँ थीं । रिश्तों को बाँधे रखने की अपूर्व आभा थी ...परिवार के प्रति लगाव था... अपने बच्चों के लिए  दुआएँ थीं । हमारे बुजुर्ग हमारे आदरणीय हैं...हम पर  खुशियाँ लुटाने वाले  , सिर्फ और सिर्फ देने वाले पूर्वज यदि आप हमसे बिछड़ कर पुनः  धरती पर आए हैं तो आपका स्वागत है दिल से  । आपकी दुआओं के उजाले में जी रहे हैं हम और आपकी स्मृतियों की मिठास हमारे जीवन की अनमोल धरोहर है । प्रणाम ।🙏🙏

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग , छत्तीसगढ़

No comments:

Post a Comment