Friday, 27 September 2019

लड़ने का मजा ( लघुकथा )

इति स्पष्टवादी है । कोई उसे गलत समझे या उस पर आक्षेप करे तो वह फौरन प्रतिवाद करती है और अपनी बात स्पष्ट करने का प्रयास करती है । उसकी इस आदत को उसके पति व बच्चे उसके चिढ़ने के रूप में लेते थे और अक्सर उसका मजाक उड़ाते रहते । इति को भी ऐसा लगा कि शायद उसे अपनी इस प्रवृत्ति में सुधार करना होगा और वह कोशिश करने लगी कि उन बेकार की बातों को नजरअंदाज करे जो उसे चिढ़कर जवाब देने को मजबूर करती हैं । उसके पतिदेव जो जान - बूझकर उसे खिझाने का प्रयास करते रहते वे भी इस बदलाव को महसूस कर रहे थे ।
       अक्सर शाम को ड्यूटी से आने के बाद वे टी. वी. पर बहस और समाचार देखते रहते थे लेकिन इति व उसकी बेटी आजकल कबड्डी में रुचि होने के कारण वही देखते रहते । आज टी. वी. देखते समय पतिदेव बेटी पर चिल्ला रहे थे कि  तुम लोगों के कारण मुझे न्यूज़ देखने को नहीं मिलता । इति जो रसोई में काम कर रही थी ,थोड़ी देर धैर्य बनाये रही फिर नहीं रहा गया तो बेटी से बोली -" कोई जरूरत नहीं कल से कबड्डी देखने की । कल से तेरे पापा न्यूज़ ही देखेंगे । हम लोग तेरे कमरे में लैपटॉप पर सीरीज़ देखेंगे । "
अचानक उसके पति बोल पड़े  -" वाह! मज़ा आ गया , बहुत दिन बाद तेरी मम्मी  लड़ी है । " उनका यह वाक्य सुनकर इति भी मुस्कुरा उठी  और समझ गई कि उसे अपने - आपको बदलने की जरूरत नहीं है ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

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