मजबूरी के साये में सोता बचपन ।
गरीबी , तंगहाली में खटता बचपन ।।
रोटी की चिंता खेलने की उम्र में ।
डिब्बे और प्लास्टिक बीनता बचपन ।म
जूतों की पालिश या टेबल पर पोंछा।
घर की जिम्मेदारी में दबता बचपन ।।
बच्चों के हिस्से नहीं खेलना-पढ़ना ।
अभावों के अँधेरों में गुमता बचपन ।।
मानव अधिकारों को दे रहा चुनौती ।
बेबसी के चक्रों में घूमता बचपन ।।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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