Sunday, 15 September 2019

सजल ( बचपन ) -12

मजबूरी के साये में सोता बचपन ।
गरीबी , तंगहाली में  खटता बचपन ।।

रोटी की चिंता  खेलने की उम्र में ।
डिब्बे  और प्लास्टिक बीनता बचपन ।म

जूतों की पालिश या टेबल पर पोंछा।
घर की जिम्मेदारी में दबता बचपन ।।

 बच्चों के हिस्से नहीं खेलना-पढ़ना ।
अभावों के अँधेरों में गुमता बचपन ।।

मानव अधिकारों को दे रहा चुनौती ।
बेबसी के चक्रों में घूमता बचपन ।।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

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