Monday, 16 March 2020

सजल

जिंदगी गम की पोषिका हो गई है ।
संतापों से भरी वेदिका हो गई है ।

कल तक जो अधिकारिणी थी ,
आज वक्त की सेविका हो गई है ।

दिखाने लगी है नखरे , नज़ाकत ,
दोस्त से बढ़कर प्रेमिका हो गई है ।

हार गये कर के सौ - सौ जतन  ,
शौक था जो , आजीविका हो गई है ।

पीछे चलकर  देख लिया " दीक्षा ",
अभी तू विद्रोही नाायिका हो गई है ।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

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