भृमर गुनगुनाया ।
टेसू की गंध घुली पवन में ,
आम भी बौराया ।
फाल्गुन मास आया ।।
नगाड़े की थाप ने ,
मन को गुदगुदाया ।
होलिका - दहन की तैयारी ,
मस्ती का आलम छाया ।
फाल्गुन मास आया ।।
बिखरे रंग खुशी के ,
अबीर ने चेहरों को रँगाया ।
पुलकित , उमंगित प्रकृति ने ,
फूलों का सेज बिछाया ।
फाल्गुन मास आया ।।
ढोल - नगाड़ों के संग ,
रंग - गुलाल बरसाया ।
फ़ाग की मस्ती में सब झूमे - नाचे ,
प्यार के रंगों ने दिलों को मिलाया ।।
फाल्गुन मास आया ।।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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