कभी किसी के काम न आया ज्ञान समझिए थोथा है
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शांत रहे वह सदा ज्ञान का जो अथाह भंडार रहे
आधी भरी गगरी का जल ही बहुत उछलता है
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दौड़ लगानी होगी तुमको साथ - साथ चलकर
समय किसी के लिए भला कब और कहाँ ये रुकता है
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बैठ किनारे रह जाने से नहीं कभी कुछ मिलता है
डूब गया जो गहरे तक उसको ही मोती मिलता है
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पूरी उम्र बीत जाती है तब जाकर मिलता अनुभव
नहीं लौटकर आता है वो पल जो कर से छूटा है
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स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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