एक हुए आज हम
एक सबका कर्म है ।
न जात है न पात है
न वर्ग है न धर्म है
मंजिल है एक हमारी
एक सबका कर्म है ।
इरादे बुलन्द हैं
मदद को बढ़े हाथ है
मानव - कल्याण हित
आज हम साथ हैं
पीड़ा है एक हमारी
एक सबका मर्म हैं ।
एक हुए आज हम
एक सबका कर्म है ।
मुसीबत जो आई है
वो रंग न पहचानती
राज्य , देश और विदेश
कोई सीमा न जानती
मिटाना है इसे हमें
यह युद्ध राष्ट्रधर्म है ।
एक हुए आज हम
एक सबका कर्म है ।
हौसलों के पर हैं
उमंगों के परवाज हैं
प्रकृति की आपदा के
खिलाफ मुखर आवाज है
चुनौती ये स्वीकार कर
हुआ खून गर्म है ।
एक हुए आज हम
एक सबका कर्म है ।
सावधान रहें सभी
कोई न संशय हो
हराना है विषाणु को
मन में न कोई भय हो
संक्रमित जो हो गये
बोलने में क्या शर्म है ।
एक हुए आज हम
एक सबका कर्म है ।
पावन है ये वसुंधरा
संस्कृति मनभावनी
शांति और सद्भावना
भारत की पहचान बनी
जीतेंगे जरूर हम
आरम्भ किया जो जंग है ।
एक हुए आज हम
एक सबका कर्म है ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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