कोरोना
कहते हैं मनुष्य को अपने बुरे कर्मों का
फल यहीं भुगतना पड़ता है
बहुत किया प्रकृति से छेड़छाड़
वनों का विनाश,असन्तुलित पर्यावरण।
रसायनों का अधिकाधिक प्रयोग
वायु , जल , मिट्टी का प्रदूषण।
अत्याधुनिक हथियार ,
अस्त्र - शस्त्र , सुरक्षा के औजार ।
कल - कारखाने ।
वो चाँद , ग्रहों की सैर
चमचमाते शहर , बड़ी - बड़ी बिल्डिंग
मजबूत इंफ्रास्ट्रक्चर
यही है ना तरक्की के पैमाने ।
कहाँ हैं ये सब
आते क्यों नहीं
मानव अस्तित्व बचाने ।
अब तो मिल गये होंगे न तुम्हें ,
अपने सारे सवालों के जवाब ।
तुम कुछ भी नहीं हो
उस ईश्वरीय सत्ता के आगे
वो ,उसकी व्यवस्था है लाजवाब।
प्रकृति का दोहन किया तुमने बेहिसाब।
मौत के आगे तुम हो जाते ,
बेबस , लाचार ।
अब तो सुधार लो ,
अपने आचार - विचार , व्यवहार ।
बाढ़ ,तूफान , महामारी , संक्रमण
ये हैं सिर्फ रूप उसकी चेतावनी के
मानव ! सुधर , समझ
तरक्की की अंधाधुंध दौड़ में
विनाश बन्द करना होगा ।
विज्ञान और पर्यावरण में ,
सन्तुलन रखना होगा ।
अपने अस्तित्व को बचाने ,
प्रकृति के साथ चलना होगा ।
अपनी महत्वाकांक्षाओं पर,
लगाम कसना होगा ।
बिगड़ा नहीं अभी कुछ
वक्त है अभी भी बहुत ,
मानव तुम्हें सम्भलना होगा
सृष्टि को बचाने ,
तुम्हें सम्भलना ही होगा ।।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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