Tuesday, 24 March 2020

कोरोना

कोरोना

कहते हैं मनुष्य को अपने बुरे कर्मों का
 फल यहीं भुगतना पड़ता है
बहुत किया प्रकृति से छेड़छाड़
वनों का विनाश,असन्तुलित पर्यावरण।
रसायनों का अधिकाधिक  प्रयोग
वायु  , जल , मिट्टी का प्रदूषण।
अत्याधुनिक हथियार , 
अस्त्र - शस्त्र , सुरक्षा के औजार  ।
कल - कारखाने  ।
वो चाँद , ग्रहों की सैर
चमचमाते शहर , बड़ी - बड़ी बिल्डिंग
मजबूत इंफ्रास्ट्रक्चर
यही है ना तरक्की के पैमाने ।
कहाँ हैं ये सब 
आते क्यों नहीं 
मानव  अस्तित्व बचाने ।
अब तो मिल गये  होंगे न तुम्हें ,
अपने सारे सवालों  के  जवाब ।
तुम कुछ भी नहीं हो
उस ईश्वरीय सत्ता के आगे
वो ,उसकी व्यवस्था है लाजवाब।
प्रकृति का दोहन किया तुमने बेहिसाब।
मौत के आगे तुम हो जाते ,
बेबस , लाचार ।
अब तो सुधार लो ,
अपने आचार - विचार , व्यवहार ।
बाढ़ ,तूफान , महामारी , संक्रमण 
ये हैं सिर्फ रूप उसकी  चेतावनी के
मानव ! सुधर , समझ
 तरक्की की अंधाधुंध दौड़ में 
विनाश बन्द करना होगा ।
विज्ञान और पर्यावरण में ,
सन्तुलन रखना होगा ।
अपने अस्तित्व को बचाने ,
प्रकृति के साथ चलना होगा ।
अपनी महत्वाकांक्षाओं पर,
 लगाम कसना होगा ।
बिगड़ा नहीं अभी कुछ
वक्त है अभी भी बहुत ,
मानव तुम्हें सम्भलना होगा
सृष्टि को बचाने ,
तुम्हें सम्भलना ही होगा ।।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

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