शाम को पाँच बजे जब हम शंख , थाली व घण्टी लेकर बाहर निकले तो अद्भुत नजारा देखने को मिला । लोग अपने घर के बाहर तैयारी के साथ खड़े थे । थाली , ताली ,शंखनाद के द्वारा सभी ने अपनी सहभागिता दी और कोरोना के कर्मवीरों के प्रति अपनी सद्भावना को व्यक्त किया । इस आवाज को सुनने वाले वहाँ आस- पास हों या न हों परन्तु एक - दूसरे का सबने हौसला बढ़ाया और दूर रहकर भी यह संदेश दिया कि मुसीबत की इस घड़ी में हम साथ हैं । इस वक्त न कोई वर्गभेद था न कोई जातिभेद , सभी सिर्फ और सिर्फ भारतीय थे । यह हमारी संस्कृति है जो हमें उदार , शांतिप्रिय और समन्वयशील बनाती है । यह नजारा वाकई मर्मस्पर्शी था । शाहीनबाग में धरना दे रहे और विदेशों से आकर छिपने व अलग न रहकर दूसरों को संक्रमित करने वाले लोगों के प्रति हर किसी के मन में आक्रोश है । काश ! वे स्थिति की भयावहता को समझते और सावधान रहते तो बीमारों की संख्या इतनी भी न होती ।
यह हमारे समाज और देश के हित में है कि हर व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी समझे , सतर्कता बरते , कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए बताये जा रहे नियमों का पालन करे , भीड़भाड़ वाले जगहों पर जाने से बचें ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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