Friday, 20 March 2020

कोरोना ब्रेक ( लघुकथा )

    एक कामकाजी गृहिणी के लिए अपनी अभिरुचियों के लिए वक्त निकालना मुश्किल होता है । कोरोना के कारण मिले आकस्मिक अवकाश ने शिखा को यह अवसर दे दिया था । पतिदेव से पेंट - ब्रश मंगाकर उसने एक पेंटिंग बनाना शुरू कर दिया , बचपन से ही यह कला उसे एक अलग दुनिया में ले जाती थी ..उसकी अपनी दुनिया जहाँ न कोई नियम - कानून थे और न ही कोई बंदिश । उसके अपने खास रंग थे जो नये - नये खाके में उभरने लगते । वह मंत्रमुग्ध हो कर पेंटिंग बनाती किसी को वह पसन्द आये न आये पर अपने सृजन को देखकर  उसे जो खुशी मिलती वह अनमोल थी । 
             आज का दिन कुछ विशेष था उसकी पेंटिंग देखकर दोनों बच्चे अत्यंत प्रफुल्लित हुए साथ ही चकित भी। " माँ ! आप तो बहुत खूबसूरत पेंटिंग बनाती हैं बिल्कुल बाजार में मिलने वाली पेंटिंग्स की तरह ।  आप हमेशा क्यों नहीं बनाती ? " बिटिया ने आँखें फैलाकर कहा । उसके आठ वर्षीय भाई ने  समर्थन किया और पापा ने भी । उतना वक्त नहीं निकाल पाती.. धीमी आवाज में शिखा ने उत्तर दिया था । " मम्मा आज के बाद आप अपनी पेंटिंग्स के लिए समय निकालेंगी और हाँ मेरे कमरे के लिए आपको बड़ी वाली तस्वीर बनानी होगी " बिटिया ने उसके गले में अपनी बाहें डालकर मनुहार की तो शिखा मुस्कुराए बिना नहीं रह सकी । इस कोरोना ब्रेक ने रोजमर्रा के कामों से ऊबते सीले से मन को ताजगी की धूप दिखा दी थी ।
         *******************
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
 

No comments:

Post a Comment