Sunday, 16 February 2020

अस्तित्व ( लघुकथा )

आज  रमा बेहद  उदास थी । कभी - कभी लगता है कि सब अपने - अपने कार्यों में ही व्यस्त रहते हैं और वह अपने आपको उपेक्षित सी महसूस करती है । वह सबकी व्यवस्था में लगी रहती है  उनकी सुविधाओं का ध्यान रखती है , उनकी पसंद के अनुसार खाना बनाती है और यह सब करना उसे अच्छा भी लगता है । लेकिन कभी उसकी भी बात होनी चाहिए न ! कभी उसके परिवार के सदस्यों को उसकी पसन्द का ध्यान आना चाहिए बस यही बात उसे परेशान किये जा रही थी । उस दिन बाई उसे बिना बताये छुट्टी मार दी थी तो उसे बहुत परेशानी हुई । उसके आने के बाद शिकायत करने पर उसने जो कहा रमा की आँख खोलने के लिए वह काफी था -"नई आंव तभे पता चलथे न मेहर कतना बुता करथंव " अगले दिन रमा बिस्तर पर लेटी हुई थी और सारा घर उसकी तीमारदारी में जुटा हुआ था कि माँ के बिना तो पूरा घर अस्त - व्यस्त हो जाता है । एक दिन की छुट्टी लेकर उसने भी सबको अपने अस्तित्व का ज्ञान करा दिया था ।
स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़

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